पश्चिम बंगाल : पौष मेले में ठंड और शीतलहरी के बावजूद जुट रहे है उत्साहित पर्यटक
24 से 28 दिसंबर तक उक्त मेला जारी रहेगा. संगीत प्रदर्शन के साथ सांस्कृतिक मेला में हमेशा से ही बंगाल हस्तशिल्प, हथकरघा और कलाकृतियों की एक विस्तृत श्रृंखला का प्रदर्शन किया जाता रहा है. हर साल, इसने दूर-दूर से लोगों को आकर्षित किया है.
बोलपुर, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलपुर पूर्वपल्ली में आयोजित पांच दिवसीय पौषमेला में लोगों की भीड़ लगातार उमड़ रही है. इस मेले में अनगिनत कहानियां भी छिपी हुई है.आखिर तीन वर्षो के बाद शांति निकेतन के पूर्व पल्ली में बीरभूम जिला प्रशासन द्वारा इस ऐतिहासिक मेला का आयोजन किया गया. प्रतिदिन मेला प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी जारी है. मेले में जिला पुलिस की कड़ी निगरानी रखी गई है.आने वाले लोगों और पर्यटकों को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए कार्यकर्ता भी तैनात किए गए है. मेले में उत्साहित लोगों की भीड़ देखने योग्य जुट रही है.
हस्तशिल्पियों के लिए पौष मेला पारंपरिक सामानों के लिए हमेशा से सुनाम कमाता रहा है.1894 से हो रहा पारंपरिक पौष मेला गत तीन वर्षो से कोरोना और अन्य मुद्दों के कारण विश्वभारती द्वारा रद्द कर दिया गया था. जिला प्रशासन द्वारा वैकल्पिक पौष मेला का आयोजन डाक बंगला मैदान में आयोजित किया जा रहा था. लेकिन इस वर्ष भी शांति निकेतन द्वारा पारंपरिक पौष मेला नहीं गया लेकिन जिला प्रशासन द्वारा पूर्व पल्ली मैदान में पारंपरिक पौष मेला का आयोजन किया गया.
शांतिनिकेतन के आश्रम में रहने वाले निवासियों में इस बात की खुशी है की कम से कम पूर्व पल्ली मैदान में यह पौष मेला एक बार फिर शुरू हुआ. नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के पिता, माहर्षी देवेंद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1894 में पहली बार मेले का आयोजन किया था. विश्व भारती सूत्रों से पता चला है कि वर्ष 1894 में महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर जब सैंया पर थे, तब उन्हीं के आदेश पर उनके ज्येष्ठ पुत्र द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर उपासना गृह का उद्घाटन किया था.इस दौरान स्वयं रवींद्रनाथ ठाकुर भी उपस्थित थे .
बताया जाता है कि उपासना गृह के पास ही कांच घर के सामने मैदान में 1 दिन का पौष मेला लगता था. तब इलेक्ट्रिक लाइट और विद्युत उपलब्ध नहीं थे फलस्वरूप दिन में ही विभिन्न कार्यक्रम और जात्रा होता था. बताया जाता है कि वर्ष 1894 से 1921 तक 1 दिन का पौष मेला चलता रहा. 1921 में विश्व भारती विश्वविद्यालय के गठन के बाद वर्ष 1961तक 2 दिन पौष मेला का आयोजन रखा गया . इसे लेकर पर्यटकों का समागम शुरू हो गया .तब से उक्त मेला पूर्वपल्ली मैदान में आयोजित होने लगा .
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बताया जाता है कि 1961 से 2015 तक मूल मेला 3 दिन का चलता रहा. लेकिन परिवेश अदालत के निर्देश के बाद 3 दिन के मेले को लेकर कोर्ट ने ग्राउंड खाली कर देने का आदेश विश्वभारती प्रबंधन को दिया था .जिसे लेकर काफी बहस भी हुई थी.इस वर्ष भी पांचदिन पौष मेला चलेगा.आधिकारिक तौर पर पांच दिन पौष मेला कर दिया गया है.जिसे लेकर मेला आयोजन व व्यवस्थापको में उत्साह का माहौल देखा जा रहा है.
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24 से 28 दिसंबर तक उक्त मेला जारी रहेगा. संगीत प्रदर्शन के साथ सांस्कृतिक मेला में हमेशा से ही बंगाल हस्तशिल्प, हथकरघा और कलाकृतियों की एक विस्तृत श्रृंखला का प्रदर्शन किया जाता रहा है. हर साल, इसने दूर-दूर से लोगों को आकर्षित किया है. और इस वर्ष भी व्यापारियों के दुखों को कुछ हद तक दूर करने के लिए पौष मेला का आयोजन किया गया है. जिसे लेकर पर्यटकों में उत्साह कई गुना बढ़ गया है.
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