Prabhat Khabar Special: पारसनाथ की तलहटी से निकलकर दामोदर नदी में समाहित होने वाली कतरी नदी की धार को अतिक्रमण व कूड़े-कचरे ने रोक दी है. कभी यह नदी कलकल करती हुई बहती थी. बताया जाता है कि कतरी के नाम से ही कतरास का नाम पड़ा. आज यह नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.
कोयलांचल पर न्योछावर है कतरी नदी
पारसनाथ से निकलकर तोपचांची, राजगंज, कतरास, महुदा होते हुए दामोदर नदी में समा जाती है. कोयलांचल को हरा-भरा कर सब कुछ न्योछावर करने वाली नदी का अस्तित्व खतरे में है. अत्यधिक अतिक्रमण हो गया है. जगह-जगह डैम के साथ राजगंज से लेकर गजलीटांड़ तक नदी के बगल में फैक्टरी, कई कोलियरियों का कचरा इसमें मिलता है.
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कतरी में मिलता है कई जोरिया का पानी
नदी के पानी से कई ईंट-भट्ठों का संचालन किया जा रहा है. यही कारण है कि नदी अपने स्वरूप में बह नहीं पा रही है. कतरी नदी में गंगापुर से आने-वाली एक छोटी जोरिया धावाचिता (राजगंज) के पास मिलती है. इसके बाद यह नदी रामकनाली के गुंदलीबेड़ा, कुमारजोर, बागडेगी जोड़ के अलावा अन्य छोटी-छोटी जोरिया का पानी कतरी में मिलता है. धावाचिता से लेकर गजलीटांड़ तक दर्जनों गांव और शहर के लोग इस नदी के पानी पर ही निर्भर हैं.
कोयलांचल की जीवनदायिनी का लोगों ने देखा था रौद्र रूप
कतरास रेलवे कॉलोनी को कांको छपुलवा से ही पानी की सप्लाई होती है. इस नदी के किनारे कतरासगढ़ राजघराना के साथ यहां की मां लिलौरी का मंदिर भी बना है. कोयलांचल की जीवनदायिनी कही जाने वाली इस नदी का रौद्र रूप लोगों ने 26 सितंबर 1995 को देखा था, जब गजलीटांड़ कोलियरी डूबी थी और 64 कोलकर्मी डूब गये थे.
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अतिक्रमण नहीं हटा, तो नहीं बचेगा नदी का अस्तित्व
सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र प्रसाद राजा कहते हैं कि नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए सबसे पहले नदी के किनारे किये गये अतिक्रमण को हटाना होगा. नदी में गाद हो गया है. साफ-सफाई बहुत जरूरी है. इस पर संबंधित विभाग को गंभीरता से सोचना होगा, तभी नदी फिर से अपनी धारा में बह सकेगी.
रिपोर्ट- कामदेव सिंह, कतरास