ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि प्रदोष व्रत बृहस्पतिवार को पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा. इस साल अक्टूबर यानि अश्विन मास का आखिरी प्रदोष व्रत 26 अक्टूबर दिन गुरुवार को रखा जाएगा. धार्मिक मान्यता है कि गुरु प्रदोष व्रत रखने से शत्रुओं पर विजयी मिलती है और जातक के सभी कार्य बिना विघ्न-बाधा के पूरे होते हैं.
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 26 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 44 मिनट से शुरू होगी और 27 अक्टूबर को 6 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी. प्रदोष व्रत में प्रदोष काल पूजा का बड़ा महत्व है. इसलिए प्रदोष काल मुहूर्त का ध्यान रखते हुए इस बार 26 अक्टूबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा.
अश्विन मास का प्रदोष व्रत 26 अक्टूबर दिन गुरुवार को रखा जाएगा. गुरुवार को शाम 5 बजकर 41 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 16 मिनट तक प्रदोष काल पूजा का शुभ मुहूर्त है.
गुरुवार को सुबह स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें, इसके बाद मंदिर में धूप-दीप जलाएं. शिवलिंग पर जलाभिषेक करें. भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी की पूजा करें, इसके बाद शिवजी को भोग लगाएं. भोलेनाथ समेत सभी देवी-देवताओं की आरती उतारें. शिव मंत्रों का जाप करें.
गुरु प्रदोष के दिन एक लोटे में जल भरकर रखें. अब इस जल में गुड़ और काला तिल मिलाएं और शिवलिंग पर अर्पित करें. मान्यता है कि इस उपाय से वैवाहिक लाइफ की दिक्कतें दूर होती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है.
प्रदोष व्रत के दिन शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को सूखा नारियल अर्पित करना चाहिए. ऐसा करने से स्वास्थ्य में सुधार आता है और सभी रोग-दोषों से छुटकारा मिलता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन काले तिल को छत पर रख देना चाहिए. इन तिलों का सेवन पक्षियों द्वारा करने से जीवन की हर दुख-बाधा दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के गायत्री मंत्र ‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि! तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।। ‘ के जाप को बहुत ही प्रभावशाली माना गया है. भगवान शिव के गायत्री मंत्र को लेकर मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में आ रही बाधाएं हमेशा के लिए दूर होती हैं.
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