Loading election data...

Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत पर जरूर करें इस कथा का पाठ, जीवन से सभी संकट होंगे दूर

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं. प्रदोष व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है, इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है. आइए जानते है प्रदोष व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण व्रत कथा...

By Radheshyam Kushwaha | December 22, 2023 2:08 PM

Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में सभी व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक महत्व और कथा होती है. स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती थी. प्रत्येक दिन संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा, लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है. कथा के अनुसार उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मारकर राज्य को अपने अधीन कर लिया था. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया. धर्म की खबरें

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे, तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह के लिए अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया.

Also Read: Magh Purnima 2024: माघ पूर्णिमा कब है? जानें तारीख-शुभ मुहूर्त और स्नान-दान का महत्व

राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया. कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा.

Next Article

Exit mobile version