जीवन को सहर्ष स्वीकार करो तो हर पल है हर्ष : प्रमाण सागर जी महाराज

हमारे ऋषियों और मुनियों ने माघ महीने को सर्वाधिक 'हरिओम' की कृपा वर्षा का काल माना है. माघ का अर्थ विद्वानों ने कुंद नाम सुंगंधित पुष्प से किया है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 21, 2023 10:43 AM

मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज : हमारा जीवन संघर्षों से भरा है. संघर्ष की कहानी हमारे जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है. मनुष्य जब जन्म लेता है, तो उसे काफी संघर्ष करना पड़ता है. संघर्ष से जन्म होता है और जीवन भर संघर्ष चलता है. संघर्ष होना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन संघर्षों को झेलते हुए भी दृढ़ता पूर्वक उनका सामना करना और संघर्ष को एक उपलब्धि में परिवर्तित करना सबसे बड़ी बात है. गुरुदेव का हाइकु है –

संघर्ष में भी, चंदन सम सदा, सुगन्धि बाटूं

चंदन को जितना घिसा जाता है, वह उतना ही सुगंध बिखेरता है. गुरुदेव ने बड़ी उच्च भावना प्रकट की कि जीवन में जब भी कोई संघर्ष हो तो उस घड़ी भी घिसते हुए भी सुगंध बांटो.

अपने लिए संघर्ष सब करते हैं, कोई बड़ी बात नहीं है. एक नन्हा-सा कीड़ा भी अपने जीवन को बनाये रखने के लिए अपनी आखिरी सांस तक संघर्ष करता है. जो संघर्ष में सफल हो जाता है, तो उसके जीवन उपलब्धियां आती हैं और जो हार जाता है, तो उसका जीवन यूं ही बर्बाद होता है. एक बीज जब धरती में बोया जाता है तो बीज को अंकुरित होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष में खुद को मिटाना पड़ता है. बीज जब मिटता है, तो उससे अंकुर फूटता है और फिर वह एक पौधा बनता है. वह पौधा धूप, गर्मी, सर्दी, बरसात सबका सामना करता है, तब कहीं जाकर वह वृक्ष का रूप धारण करता है. बीज जब मिटता है तब विकसित होकर वृक्ष बनता है, ऐसे ही जब हम संघर्ष करते हैं, तब हमारी क्षमताएं विकसित होती हैं और हमारा वास्तविक उत्कर्ष होता है.

जीवन को अगर आगे बढ़ाना है, तो कठिनाई मत देखो, बल्कि कठिनाई में भी अवसर देखो. इसी का नाम संघर्ष है, उसी से तुम उत्कर्ष कर पाओगे. अपने लिए संघर्ष करना यानी अपने स्वार्थ के लिए लड़ना और अपनों के लिए संघर्ष करना यानी औरों की भलाई के लिए लड़ना है. एक सत्पुरुष और साधारण पुरुष में यही अंतर होता है, साधारण व्यक्ति केवल अपने लिए रोता है, अपने लिए लड़ता है और जो सत्पुरुष होते हैं, वह अपने लिए नहीं, बल्कि औरों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं.

यदि तुम्हारे मन में भय है, कुंठा है, चिंता है, अवसाद है, तो तुम सतत् अपने आप से ही जूझते हुए महसूस करोगे और तुम्हारी सारी आत्मशक्तियां कुंठित हो उठेंगी, फिर तुम कुछ करने की स्थिति में नहीं रहोगे. संत कहते हैं- ‘अपने आप से मत लड़ो, अपने आप से जूझकर के तुम हारोगे ही, बल्कि अपने आप को मजबूत बनाओ.’ आध्यात्मिकता का रास्ता अपनाओ. तुम्हारे अंदर अंतर्द्वंद्व का कोई स्थान ही नहीं बचेगा और हर पल आनंद रहेगा. जब हम अपने जीवन में घटित प्रसंगों को सहर्ष स्वीकारना शुरू कर देते हैं तो संघर्ष खत्म हो जाता है. ‘जीवन में जो जब जैसा घटे, उसे सहर्ष स्वीकार कर लो तो संघर्ष का नाम ही नहीं, हर पल हर्ष है और जीवन का उत्कर्ष है.’

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जीवन को अगर आगे बढ़ाना है, तो कठिनाई मत देखो, बल्कि कठिनाई में भी अवसर देखो. इसी का नाम संघर्ष है, उसी से तुम उत्कर्ष कर पाओगे. अपने लिए संघर्ष करना यानी अपने स्वार्थ के लिए लड़ना और अपनों के लिए संघर्ष करना यानी औरों की भलाई के लिए लड़ना है.

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