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Dhanbad: प्रमोद सिंह हत्याकांड के अपराधियों को 19 साल बाद भी नहीं खोज सकी CBI, सभी आरोपी बरी, जानें मामला

प्रमोद सिंह हत्याकांड के सभी आरोपी बरी हो गये हैं, उनके खिलाफ हत्या व षड्यंत्र का साक्ष्य नहीं मिला जिस कारण उन्हें सीबीआई की विशेष अदालत ने बरी कर दिया

धनबाद : डॉन बृजेश सिंह के रिश्तेदार कोयला कारोबारी प्रमोद कुमार सिंह की हत्या के मामले में शुक्रवार को सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश रजनीकांत पाठक की अदालत ने कांग्रेस नेता रणविजय सिंह और संतोष कुमार सिंह समेत सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया. फैसला सुनाये जाने के दौरान रणविजय सिंह, संतोष कुमार सिंह, सरायढेला थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी मदन प्रसाद खरवार, हीरा खान, सैयद अरशद अली और मो अयूब खान उपस्थित थे.

इनके खिलाफ हत्या व षड्यंत्र का साक्ष्य नहीं मिलने के कारण कोर्ट ने इन्हें बरी कर दिया. इस दौरान अदालत ने यह भी कहा कि प्रमोद सिंह को किसने मारा, सीबीआइ यह प्रमाणित नहीं कर सकी. केस में कांग्रेस नेता सुरेश सिंह, खड़ग सिंह व कश्मीरी खान भी ट्रायल फेस कर रहे थे. तीनों की ट्रायल के दौरान मौत हो गयी थी.

घर की सीढ़ियां चढ़ते मारी थी गोली

कोयला कारोबारी प्रमोद सिंह तीन अक्टूबर 2003 को बनारस से ट्रेन से धनबाद स्टेशन पर उतरे. वहां से अपने निजी वाहन से धनसार स्थित बीएम अग्रवाल कॉलोनी पहुंचे. वह अपने घर की सीढ़ियां चढ़ ही रहे थे कि बाइक सवार अपराधियों ने गोली मार दी. घायल हालत में उन्हें केंद्रीय अस्पताल धनबाद में भर्ती कराया. वहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी. धनसार थाना में हत्या की प्राथमिकी दर्ज हुई थी.

बाद में 12 दिसंबर 2003 को केस सीबीआइ के हाथ में चला गया और उसने प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान शुरू किया. 21 नवंबर 2006 को सीबीआइ ने अनुसंधान पूरा कर नौ आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र समर्पित किया. 11 सितंबर 2013 को अदालत ने उपरोक्त आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 120(बी), 302, 218, 193, 194/34 सहपठित 27 आर्म्स एक्ट के तहत आरोप तय कर केस विचारण शुरू किया. अभियोजन पक्ष सीबीआइ ने केस विचारण के दौरान 37 गवाहों की गवाही करायी थी.

किसी ने तो की हत्या, फैसले से संतुष्ट नहीं

धनबाद. प्रमोद सिंह हत्याकांड में सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले पर उनके बड़े भाई विनोद सिंह ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट नहीं है. उनके छोटे भाई की हत्या दिनदहाड़े हुई थी. किसी न किसी के इशारे पर हत्या हुई. कोई तो हत्या में जरूर शामिल था. सीबीआइ जांच में कई मोड़ आये. सीबीआइ ने अपने इंवेस्टिगेशन के दौरान खुद ही मामले में नौ लोगों को आरोपी बनाया था. कई लोगों के नाम बाद में जोड़े गये थे. 19 साल के बाद आरोपियों को मामले में बरी करने का फैसला समझ से परे है. फैसले से यही लग रहा है कि सीबीआइ मामले का पर्दाफाश करने और सच्चाई सामने लाने में विफल रही.

Posted By : Sameer Oraon

Prabhat Khabar News Desk
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