दुलमी (रामगढ़), धनेश्वर कुंदन : आदिम जनजाति के उत्थान के लिए केंद्र और झारखंड सरकार द्वारा कई योजनाएं चलायी जा रही हैं, लेकिन इसका लाभ उन्हें मिल रहा है या नहीं, इसकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है. अगर आदिम जनजातियों की दुर्दशा का कोई मामला सामने आता है, तो प्रशासनिक अधिकारी उनकी दशा सुधारने की बजाय पूरे मामले की लीपापोती करने में जुट जाते हैं. मामले को खारिज करने की कोशिश करते हैं या गलतबयानी शुरू कर देते हैं.
रामगढ़ जिले के दुलमी प्रखंड में एक ऐसा मामला सामने आया है, जो किसी सभ्य समाज के माथे पर कलंक के समान है. प्रखंड के भालू गांव में एक बिरहोर दंपती पिछले तीन वर्षों से सामूहिक शौचालय में जिंदगी गुजार रहा है. जानकारी के अनुसार, भालू गांव निवासी सुशीला कुमारी व पति हरि बिरहोर का अपना घर नहीं है. इसकी वजह से दोनों ने शौचालय को ही अपना आशियाना बना लिया.
पति-पत्नी शौचालय में ही खाना बनाते हैं, उसी में खाते हैं और रात भी शौचालय में ही गुजारते हैं. बिरहोर जनजाति की सुशीला कुमारी ने बताया कि हमलोगों का अपना घर नहीं है. हमलोग अपने भाई के घर में रहते थे. रामगढ़ के दुलमी प्रखंड में अनुसेवक के पद पर कार्यरत भाई पुना बिरहोर की मौत के बाद भाभी की नौकरी दुलमी प्रखंड में लगी. इसके बाद भाभी ने उनके लिए अपने घर के दरवाजे बंद कर दिये. वह घर बंद करके दुलमी चली गयी. इसके कारण हमें शौचालय में रहना पड़ रहा है.
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वहीं, दूसरी ओर इस गांव में पेयजल की भी गंभीर समस्या है. एक जलमीनार है, लेकिन वह भी पिछले तीन माह से खराब है. गांव में बिरहोर के चार-पांच परिवार हैं. ये लोग गुमला के जंगल में जाकर जड़ी -बूटी खोजकर उसे बेचते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं. बरसात के मौसम में वापस घर आ जाते हैं. इस संबंध में जब प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) रवींद्र कुमार से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि पारिवारिक विवाद के कारण वे लोग शौचालय में रह रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) में पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड अंतर्गत तामुकबेड़ा सबर टोला में एक परिवार के शौचालय में जीवन गुजारने की खबर प्रकाशित हुई थी. यहां एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाये गये 3 बाई 3 के शौचालय में जिंदगी काट रही है.
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