फसल को कीटनाशक से बचाने के लिए किसान करें बीजोपचार, अच्छी फसल और बेहतर पैदावार का मिलेगा लाभ
खरीफ मौसम में फसलों के अधिक उत्पादन के लिए बीजों का उपचार बहुत जरूरी है. इससे फसलों को होने वाले कीटनाशक के नुकसान से बचाया जा सकता है. वहीं, फसल अच्छी होगी और उत्पादन भी बढ़ेगा.
Jharkhand News: फसल के उत्पादन में बीज की अहम भूमिका होती है. इसलिए फसलों के अधिक उत्पादन के लिए बीज का उपचार जरूरी हो जाता है. बीज के उपचार को फसल के अधिक उत्पादन के लिए एक सफल तकनीक माना गया है. एक स्वस्थ एवं उन्नत बीज ही अच्छे फसल का मुख्य आधार होता है. किसान यदि बीज बोने से पहले बीज का अच्छे से उपचार कर लें, तो न केवल फसल अच्छी होगी, बल्कि फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा.
फसलों को नुकसान होने से बचाने के लिए बीजोपचार जरूरी
कृषि विभाग के अनुसार फसलों में प्राय: दो प्रकार के बीज जनित रोग अंत: एवं बाह्य रोग पाये जाते हैं. इसमें बीन एंथ्रेक्नोज, बंधागोभी का ब्लैक लेग, धान का जीवाणु पत्ती अंगमारी, कपास का जीवाणु अंगमारी, गेहूं एवं जौ का अनावृत कंड तथा धान का आभासी कंड अंत: बीज जनित रोग एवं अल्टरनेरिया (आलू एवं टमाटर का अगेती झुलसा, सरसों कुल का अंगारी एवं प्याज में अंगमारी), फ्यूजेरियम, हेल्मिंथोस्पोरियम, सर्कोस्पोरा आदि बाह्य बीज जनित रोग एवं रोग कारक हैं. इनसे अनाज तथा सब्जी फसलों को काफी नुकसान होता है. फसलों को इन नुकसान से बचाने के लिए बीज उपचार जरूरी हो जाता है.
रासायनिक विधियों से बीजोपचार किया जा सकता
कृषि वैज्ञानिक अटल तिवारी ने कहा कि बीज के उपचार की कई विधियां है. जिसमें सूर्यताप, गर्म जल, गर्म वायु, विकिरण, रासायनिक विधियों से बीजोपचार किया जा सकता है. सूर्यताप द्वारा बीजोपचार की बात करें, तो बीज के आंतरिक भाग (भ्रूण) में रोगजनक को नष्ट करने के लिए रोगजनक की सुषुप्तावस्था को तोड़ना होता है. जिसके बाद रोगजनक बिल्कुल नाजुक अवस्था में आ जाता है. जिसे सूर्य की गर्मी द्वारा नष्ट किया जाता है.
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ऐसे करें बीजोपचार
श्री तिवारी ने कहा कि गेहूं, जौ एवं जई का छिदरा कंडवा रोग आंतरिक बीज जन्य रोग है. इनके नियंत्रण के लिए बीज को पहले पानी में तीन से चार घंटे भिंगोते हैं और फिर सूर्य ताप में चार घंटे तक रखते हैं. इससे बीज के आंतरिक भाग में उपस्थित रोगजनक का कवकजाल नष्ट हो जाता है. गर्म जल से बीजापचार विधि का प्रयोग अधिकतर जीवाणु एवं विषाणुओं की रोकथाम के लिए किया जाता है. इस विधि में बीज या बीज के रूप में प्रयोग होने वाले भागों को 53-54 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 15 मिनट तक रखा जाता है. जिससे रोगजनक नष्ट हो जाते हैं. गर्म वायु से बीजापचार की विधि द्वारा भी बीजों को उपचारित किया जा सकता है. विकिरण विधि की बात करें तो इस विधि में विभिन्न तीव्रता की अल्ट्रावायलेट या एक्स किरणों को अलग-अलग समय तक बीजों पर गुजारा जाता है. जिससे रोगजनक नष्ट हो जाते हैं.
बीजोपचार विधि
रासायनिक बीजोपचार विधि में रासायनिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है. ये दैहिक या अदैहिक फफूंदनाशक या एंटीबायोटिक हो सकते हैं. रासायनिक फफूंदनाशक बीज के अंदर अवशोषित होकर अंत: बीज जनित रोगाणुओं को नष्ट करते हैं या यह एक संरक्षक कवज के रूप में बीज के चारों ओर एक घेरा बना लेते हैं. जिससे बीज पर रोगाणुओं का संक्रमण नहीं हो पाता है. इसके अतिरिक्त फफूंदनाशक दवाओं विभिन्न प्रकार के फसलों के बीज का सूख उपचार, गीला उपचार, स्लीरी विधि, धूमीकरण एवं जैविक उपचार भी कर सकते हैं.
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रिपोर्ट : जगरनाथ, गुमला.