Purnea: फिल्म से प्रेरित हो पूर्णिया की दो बहनों ने शुरू किया ‘दंगल’, महावीर फोगाट की भूमिका में आये पिता
Purnea: हरियाणा निवासी पहलवान और वरिष्ठ ओलंपिक कोच रहे महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों गीता फोगाट व बबीता फोगाट पर बनी फिल्म से प्रेरित होकर उनकी कहानी पूर्णिया में दोहरायी जा रही है.
Purnea: (अरुण कुमार) : हरियाणा निवासी पहलवान और वरिष्ठ ओलंपिक कोच रहे महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों गीता फोगाट व बबीता फोगाट पर बनी फिल्म दंगल से प्रेरित होकर उनकी कहानी पूर्णिया में दोहरायी जा रही है. महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘दंगल’ से प्रेरित होकर जमाने की परवाह किये बगैर पूर्णिया की दो बहनें अखाड़े में कुश्ती के दांव सीख रही हैं.
बेटीऔर भांजी को नये मुकाम दिलाने में जुटे शिवनारायण पंडितदोनों बच्चियों के पहलवान बनने में एक बच्ची के पिता शिवनारायण पंडित की भूमिका सबसे बड़ी है. वे भी पहलवान महावीर सिंह फोगाट की तरह अपनी बेटी और भांजी को नये मुकाम तक पहुंचाने में अपना अहम योगदान दे रहे हैं. दोनों बेटियों ने हाल ही में राज्यस्तरीय चैंपियनशिप के विभिन्न भार वर्ग में सिल्वर मेडल जीतकर ना केवल अपने पिता बल्कि पूर्णिया का नाम रोशन किया है.
पूर्णिया की कोसी कॉलोनी में अपने माता-पिता के साथ रह रही रूचि और रजनी दोनों रिश्ते में ममेरी-फुफेरी बहन हैं. रुचि के पिता शिवनारायण पंडित फ्लड कंट्रोल विभाग में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी हैं. रूचि की उम्र 17 वर्ष और रजनी की उम्र 15 साल है. रूचि इंटर पास कर चुकी है, जबकि रजनी इसबार मैट्रिक की परीक्षा देगी.
परिवार वालों का सहयोग व पापा का मिल रहा प्रोत्साहनरूचि कहती है कि वह जब स्कूल में पढ़ती थी, तभी उसने दंगल फिल्म देखी थी. यह फिल्म उसके दिलोदिमाग में इस कदर छा गयी कि वह अंदर ही अंदर दंगल गर्ल बनने का सपना देखने लगी. लेकिन, सामाजिक बंधन और घर की आर्थिक स्थिति को देख वह कुछ नहीं कर पा रही थी. एक दिन ऐसा आया, जब पापा ने इसके लिए अपनी रजामंदी दे दी. इसके बाद पापा ने कोच अमरकांत झा से बात की और हमदोनों तब से तैयारी में जुट गये. रूचि और रजनी कहती है कि दुनिया में कोई काम बुरा नहीं है. उसके साथ और भी लड़कियां कुश्ती सीखने आती थी, पर सामाजिक बंधन के कारण वह आगे नहीं बढ़ सकी.
सिल्वर मेडल जीतने के बाद रूचि और रजनी के हौसले बुलंदराज्यस्तरीय प्रतियोगिता में सिल्वर जीतने के बाद रूचि और रजनी के हौसले बुलंद हैं. रूचि कहती है कि वह आगे भी खेल जारी रखेगी. सुबह हर रोज एक घंटे प्रैक्टिस करती है और रोज नये-नये दांव-पेच सीख रही है. रूचि कहती है कि उसे इस बात का कोई परवाह नहीं कि कौन क्या कहता है. मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि उसे अपने परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करना है. रजनी कहती है कि सरकार और समाज समुचित संसाधन मुहैया कराये, तो वह दिन दूर नहीं जब वह दोनों देश के लिए गोल्ड लायेंगी.
बेटी दौड़ सकती है तो कुश्ती क्यों नहीं लड़ सकती? : शिवनारायण पंडितशिवनारायण पंडित से पूछे जाने पर कि क्या पहलवान महाबीर फोगाट से आपको प्रेरणा मिली? उन्होंने कहा कि हमने बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं किया. अगर लड़का कर सकता है, तो लड़की क्यों नहीं? आज लड़कियां सभी क्षेत्र में आगे है. मेरी बेटी बचपन से दौड़ती थी. मेरे मन में ख्याल आया कि दौड़ सकती है, तो कुश्ती क्यों नहीं लड़ सकती है. इससे स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा.
कम अभ्यास के बावजूद दोनों बेटियों ने मारी बाजीशिवनारायण पंडित ने जब दोनों से पूछा, तो वे दोनों तैयार हो गयीं. हमलोग यहां अक्सर लड़कों को कुश्ती करते और सीखते देखते थे. अमरकांत झा बच्चों को कुश्ती सिखाते हैं. उनसे मिलकर अपनी बातें रखी. अमरकांत जी तैयार हो गये. इसी बीच राज्यस्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता की तारीख नजदीक आ गयी. काफी कम अभ्यास के बावजूद दोनों बेटियों ने बाजी मारी, यह काबिले तारीफ है. हम चाहते हैं कि दोनों देश के लिए गोल्ड लाये. यही इच्छा है.