Loading election data...

Putrada Ekadashi 2022: कल रखा जाएगा पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें इस व्रत की कथा, पूजा विधि और मुहूर्त

Putrada Ekadashi 2022: पौष मास में पड़ने वाले पुत्रदा एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है. इस व्रत को करने से संतान की कामना पूरी होती है. जानें कब है पौष पुत्रदा एकादशी, पूजा विधि, मुहूर्त और व्रत कथा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2022 10:34 AM

Putrada Ekadashi 2022: पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इसे वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी भी कहा जाता है. साल में दो बार पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा है. एक पौष मास में और दूसरा सावन मास में. पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति के लिए और संतान के जीवन में आ रहे कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है. इस बार ये व्रत 13 जनवरी को रखा जाएगा.

पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है. भगवान को धूप, दीप, अक्षत, रोली, फूल, नैवेद्य चढ़ाया जाता है और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनी जाती है.

पुत्रदा एकादशी की पूजा के बाद, पहले इस व्रत की कथा पढ़ना चाहिए और फिर विष्णु आरती करनी चाहिए. इस व्रत कथा के बिना पुत्रदा एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता है. इस व्रत कथा को सुनने से व्रत करने वाले की सभी मनाकामनाएं पूरी होती है.

व्रत पूजा सामग्री

श्री विष्णु जी व बाल कृष्ण का मूर्ति या चित्र, फूल, फल, मिठाई, अक्षत, तुलसी दल, नारियल, सुपारी, लौंग, चंदन, धूप, दीप, घी और पंचामृत

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त

पौष पुत्रदा एकादशी 12 जनवरी की शाम 04 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी.

उदया तिथि के हिसाब से यह व्रत 13 जनवरी को ही रखा जाएगा. 14 जनवरी 2022 को व्रत का पारण किया जाएगा.

एकादशी व्रत-पूजा विधि

  • पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा भी करनी चाहिए, ताकि बाल कृष्ण सी सुयोग्य संतान की प्राप्ति हो.

  • इस दिन सुबह सूर्योदय के साथ स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

  • पुत्रदा एकादशी व्रत का संकल्प लें और बाल कृष्ण के साथ भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें.

  • पूजा में भगवान को पीला फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि अर्पित करें.

  • दंपति एक साथ व्रत का संकल्प लें और व्रत का पूजन करना चाहिए.

  • पूजा के व्रत कथा पढ़ें या सुनें.

  • कथा के बाद आरती करें

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

एक समय में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे. उनकी रानी का नाम चम्पा था. उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे. इसी शोक में एक दिन राजा राजा सुकेतुमान वन में चले गये. जब राजा को प्यास लगी तो वे एक सरोवर के निकट पहुंचे. वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे. राजा ने उन सभी मुनियों को वंदना की. प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा. मुनि बोले कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकदाशी कहते हैं. उस दिन व्रत रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है. तुम भी वही व्रत करो. ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया. कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया. उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा न्यायपूर्वक शासन किया.

Next Article

Exit mobile version