कोलकाता: देश के जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा है कि राजा राम मोहन राय किसानों पर अत्याचार के विरोधी थे. किसानों के संबंध में उनके विचार आज भी पथ प्रदर्शक हैं. द एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता द्वारा राजा राममोहन राय की 250वीं जयंती शनिवार को आयोजित ‘नवजागरण के संदर्भ में राजा राम मोहन राय की भूमिका’ विषय पर वेबीनार में प्रो इरफान हबीब ने ये बातें कहीं.
उन्होंने कहा कि राजा राम मोहन राय फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित थे. वे अंग्रेजी सरकार के पिछलग्गू नहीं थे, बल्कि वे देश की स्वतंत्रता के साथ-साथ व्यक्ति स्वातंत्र्य के भी हिमायती थे. उन्होंने वर्ष 1828 में मुगल सम्राट द्वारा दिये गये ‘राजा’ की उपाधि पर अंग्रेज सरकार की नाराजगी का राजा राम मोहन राय ने मुंहतोड़ जवाब दिया.
प्रो हबीब ने कहा कि राजा राममोहन राय किसानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ थे. वे जाति प्रथा के भी समर्थक नहीं थे, जो आधुनिक चेतना का पर्याय है. प्रो हबीब ने कहा कि 1830 में जब राजा राममोहन राय इंग्लैंड गये थे, तब उन्होंने वहां किसानों की दुर्दशा को देखते हुए कहा की लगान को स्थायी कर दिया जाये, जिसे कोई भी शासक बदल न पाये. इसे नियम बना दिया जाये. राजा राम मोहन राय ने देश के विकास में जाति प्रथा को सर्वाधिक बाधक बताया था.
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो रमेश रावत ने विस्तार से राजा राममोहन राय के व्यक्तित्व-कृतित्व और उनके जीवन-दर्शन को रेखांकित किया. कहा कि राजा राम मोहन राय आधुनिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के मूल कर्णधारों में थे. उन पर ईसाईयत का जो आरोप लगाया जाता है, वह नितांत भ्रामक है, क्योंकि वे ईसामसीह को महापुरुष के रूप में स्वीकार करते थे, ईश्वर के रूप में नहीं.
रमेश रावत ने गांधी एवं टैगोर के विचारों के माध्यम से राजा राममोहन राय के व्यक्तित्व का भी विश्लेषण किया और कहा कि वे चाहते थे कि बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत हो, क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा विकास का नवीन द्वार खोल रही थी. इसे मुक्तिबोध के शब्दों में ‘विश्व-चेतस् एवं आत्म-चेतस्’ के माध्यम से समझा जा सकता है, जहां अंग्रेजी शिक्षा आत्मबोध को जागृत कर रही थी. वहीं, उसकी नकारात्मकता भारतीय संस्कृति के अवमूल्यन को भी दर्शा रही थी. एक प्रकार से राजा राम मोहन राय भारतीय नवजागरण के अग्रदूत थे.
राजा राम मोहन राय ने सदैव शांति एवं मैत्री का दिया संदेश
कलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और प्रोफेसर राम आह्लाद चौधरी ने कहा कि राजा राम मोहन राय ने अमानवीय कृत्य सती-प्रथा का उन्मूलन किया. प्रेस की स्थापना और देशी भाषा तथा पत्र-पत्रिकाओं के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि जब 1827 में हिंदी का पहला पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ बंद हो गया, तो राजा राममोहन राय ने हिंदी भाषा में 1827 में ही ‘बंगदूत’ का प्रकाशन किया और बंगाल में हिंदी के विकास को सुनिश्चित किया. इससे हिंदी गद्य के विकास को भी बल मिला. राजा राममोहन राय नवजागरण के पुरोधा थे, जिन्होंने सदैव शांति एवं मैत्री का संदेश दिया.
प्रख्यात कथा-शिल्पी श्री लाल सिंह ने बताया कि राजा राम मोहन राय तर्क एवं वैज्ञानिक सोच को तथा मानवीय चेतना और मनुष्यता बोध को सर्वोपरि गुण मानते थे. वे अपने से बाहर निरंतर देश और समाज को देखते हैं. उन्हें ‘ग्लोबल नॉलेज’ था और उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र एवं भाषा से ज्ञान ग्रहण किया था.
सोसाइटी के सचिव सत्यव्रत चक्रवर्ती ने अतिथियों तथा वक्ताओं का स्वागत करते हुए राजा राम मोहन राय के वैश्विक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम का संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो राम आह्लाद चौधरी ने किया.
Posted By: Mithilesh Jha