Raksha Bandhan 2022: स्नेह का बंधन सदियों से चला आ रहा है और सदियों तक रहेगा. सांसारिक अनमोल रिश्तों में बहन-भाई का रिश्ता अटूट होता है. दोनों एक दूसरे के लिए हर विपरीत परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं. लड़ना, रूठना, लाड़ जताना ये तो चलता ही रहता है लेकिन ये रिश्ता उस समय ज्यादा प्रगाढ़ होता है जब बहन या भाई पर कोई मुसीबत आती है. दोनों एक दूसरे का साथ देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. कुछ बहनें ऐसी हैं जिनकी जिंदगी उनके भाई के लिए है. भाई की जिंदगी बचाने-संवारने के लिए अपने सपने, अपनी ख्वाहिशें उन्होंने दरकिनार कर दी.
किडनी देकर बचायी भाई का जीवन
धनबाद जिले के झारूडीह की रहनेवाली कीर्ति सिंह ने अपने बड़े भाई ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को अपनी किडनी देकर उनका जीवन बचाया. कीर्ति बताती हैं कि जब मैं छह माह की थी, मेरी मां चल बसी थी. मेरे दो भाई हैं. बड़े भैया ज्ञानेंद्र और छोटे भैया महेंद्र. मुझे भाइयों से मां का भी प्यार मिला है. बारह साल पहले मेरे भैया की दोनों किडनी फेल्योर हो गयी. किसी की किडनी मैच नहीं कर रहा था. मैं अपने ससुराल पटना में थी. जैसे ही मुझे जानकारी मिली. मैं भागकर आयी और किडनी देने की बात कही. सब कह रहे थे तेरे दो छोटे बच्चे हैं. मुझे बस एक ही चीज दिख रही थी. एक बार मां को खो चुकी थी दूसरी बार भाई के रूप में मिली मां को नहीं खोना है. दिल्ली गंगाराम अस्पताल में किडनी स्पेशलिस्ट डॉ कुल्लर ने किडनी ट्रांसप्लांट किया. हमें इस बात की खुशी है कि मेरे भइया का सुखी संसार है.
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कुसुम विहार की रहनेवाली रिया सिंह ने अपने इकलौते छोटे भाई को इंजीनियर बनाया. रिया किड्स केयर स्कूल चलाती हैं. उन्होंने बताया कि उनका मायका बोकारो में है. तीन बहन भाई में वे दूसरे स्थान पर हैं. रिया कहती हैं कि उनके पिता किसान हैं. घर में पढ़ाई का माहौल वैसा नहीं था कि भाई इंजीनियर बन सके. मेरा भाई बीटेक करना चाहता था. मैंने दसवीं कक्षा से लेकर बीटेक कराने तक अपने भाई की जिम्मेवारी ली. ट्यूशन कराने से लेकर लोन लेने तक मैं भाई के साथ लगी रही. कलिंगा इंजीनियरिंग कॉलेज भुवनेश्वर से भाई ने बीटेक किया. अभी जॉब कर रहा है. मई 2022 में उसकी शादी भी हो गयी है. 2016 में मेरी भी शादी धनबाद हो गयी, लेकिन भाई के सपने को धूमल नहीं होने दिया. पति ने भी सहयोग किया. जब भाई के नाम के साथ इंजीनियर कुंदन सिंह लिखा देखती हूं, तब लगता है मेरी तपस्या सार्थक हुई.
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जोड़ाफाटक की रहनेवाली जसमीत कौर तीन बहन हैं और उनका एक भाई है. जसमीत दूसरे नंबर पर हैं. बड़ी बहन तरनजीत कौर, छोटी बहन सतनाम कौर भाई कंवलप्रीत सबसे छोटा है. जसमीत बताती हैं कि जून 2015 जब अचानक डैडी का साया हमारे सिर से उठ गया. उस समय मेरा भाई पांच साल का था. हमारी दुनिया अंधेरी हो गयी थी. धनबाद पब्लिक स्कूल में भाई एलकेजी में पढ़ रहा था. मैं उस स्कूल में टीचर थी. हमारा भाई हम तीनों बहनों की जान है. डैडी के जाने जाने के बाद उसकी आंखों में एक सवाल देखा करती थी, मानो पूछ रहा हो मेरा क्या होगा. हम बहनों ने ठाना चाहे जो हो जाये भाई को संभालना है, उसके सपनों संग जीना है. अभी वो सातवीं का स्टूडेंट है. जीवन में वो जो करना चाहेगा, हर पल उसके साथ थी और रहूंगी. जब डैडी थे गुरूद्वारा के कार्यक्रम में मैं हारमोनियम बजाकर अरदास गाया करती थी. डैडी तबला पर संगत करते थे. आज मेरा भाई मेरे साथ संगत करता है.
रिपोर्ट : सत्या राज, धनबाद