Raksha Bandhan 2023: आज पूरे दिन राखी बांधना शुभ नहीं, यहां जानें राखी बांधने का सही समय और महत्व
Raksha Bandhan 2023: आज पूर्णिमा तिथि है. इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन आज पूर्णिमा तिथि के साथ भद्रा काल लग गया है. भद्रा रात 9 बजे के बाद समाप्त होगी. आइए जानते है रक्षाबंधन से जुड़ी जरुरी बातें.
रक्षाबंधन का त्योहार 31 अगस्त को मनाया जाएगा. हालांकि कुछ लोग आज रात 9 बजे के बाद भी मनाएंगे. हिंदू पंचांग के मुताबिक सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि इस बार दो दिन पड़ रही है. हर साल रक्षाबंधन का त्योहार पूर्णिमा तिथि मनाया जाता है, लेकिन इस साल आज पूरे दिन भद्रा का साया है. भद्रा काल आज रात 9 बजे के बाद समाप्त होगा.
आज सावन मास की पूर्णिमा तिथिकाशी विश्व पंचांग के अनुसार सावन मास की पूर्णिमा तिथि आज 10 बजकर 59 मिनट से शुरू हो चुकी है. पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा काल शुरू हो गया है, जो रात 09 बजकर 02 मिनट के बाद समाप्त होगा. इसके बाद ही बहनें राखी बांध सकेंगी. ज्योतिष अनुसंधान केंद्र लखनऊ के संस्थापक वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में बताया गया है कि भद्रा काल में राखी बांधना शुभ नहीं माना गया है. इसलिए आज रात 09 बजकर 02 मिनट के बाद ही रक्षाबंधन ज्यादा उपयुक्त रहेगा.
पूर्णिमा तिथि में राखी बांधने के लिए दोपहर का समय शुभ होता है. लेकिन आज पूरे दिन भद्रा काल है. भद्रा काल में राखी बांधना शुभ नहीं माना गया है. भद्रा काल रात 09 बजकर 03 मिनट के बाद समाप्त हो जाएगा. कुछ पंडित बता रहे है कि रात 09 बजे भद्रा समाप्त होने के बाद राखी बांध सकते है. वहीं कुछ पंडितों का कहना है कि रात में सोने के समय रक्षाबंधन करना शुभ नहीं रहेगा. इसलिए 31 अगस्त दिन गुरुवार की सुबह सूर्योदय काल से 07 बजकर 05 मिनट से पहले राखी बांधना ज्यादा शुभ रहेगा.
31 अगस्त शुरू हो जाएगा भाद्र पद मासआज सावन मास का आखिरी तिथि पूर्णिमा है. कल 31 अगस्त की सुबह 7 बजकर 05 मिनट तक पूर्णिमा रहेगी. इसके बाद से भाद्रपद मास शुरू हो जाएगा. रक्षाबंधन और सावन पूर्णिमा से जुड़े धर्म कर्म करना ज्यादा शुभ रहेगा. हालांकि पूर्णिमा तिथि के साथ भद्रा काल शुरू होने के रक्षाबंधन का त्योहार कल मनाया जाएगा. वहीं कुछ लोग आज रात 09 बजे के बाद, जब भद्रा काल समाप्त हो जाएगा तो रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगे.
रक्षाबंधन का महत्वरक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. उनमें से एक है, भगवान इंद्र और उनकी पत्नी शची का जिक्र कथा में है. भविष्य पुराण के अनुसार असुरों का राजा बलि ने जब देवताओं पर हमला किया तो इंद्र की पत्नी शची काफी परेशान हो गई थी. इसके बाद वह मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंची. भगवान विष्णु ने शची को एक धागा दिया और कहा कि इसे अपने पति की कलाई पर बांध देना. जिससे उनकी जीत होगी. शची ने ऐसा ही किया और इस युद्ध में देवताओं की जीत हुई.
राखी बांधने की विधिराखी बांधने से पहले बहनें राखी की थाली सजातीं है. इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीच दीपक रखतीं हैं. इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी राखी बांधने का विधान है. राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारना चाहिए. फिर भाई को मिठाई खिलाकर मुंह मिठा कराए. अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद लें. वहीं अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श करना चाहिए. राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और समर्थ के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए.
भद्रा काल में नहीं बांधनी चाहिए राखीभद्र शनि देव की बहन और क्रूर स्वभाव वाली है. ज्योतिष में भद्रा को एक विशेष काल कहते हैं. भद्रा काल में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य शुरू नहीं करने की सलाह सभी ज्योतिषी देते हैं. शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र बांधना आदि शामिल है. सरल शब्दों में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है. मान्यता है कि सूर्य देव और छाया की पुत्री भद्रा का स्वरूप बहुत डरावना है. इस कारण सूर्य देव भाद्रा के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहते थे. भद्रा शुभ कार्यों में बाधा डालती थी. भाद्रा के ऐसे स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा था. उस समय ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा था कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे समय में कोई शुभ काम करता है, तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो. लेकिन जो लोग तुम्हारा काल छोड़कर शुभ काम करते हैं तो तुम उनके कार्यों में बाधा नहीं डालोगी. इस वजह से भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं.
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