पर्व-त्योहारों की तिथियों को लेकर पंडितों के बीच पहले भी हो चुकी है बहस, जानें कब कैसे निकाला समाधान

Raksha Bandhan 2023: इस साल राखी बांधने की समय को लेकर भ्रम की परिस्थितियां बन गई है. वहीं अयोध्या राममन्दिर शिलान्यास के पुरोहित आचार्य गंगाधर पाठक और धार्मिक विशेषज्ञ भवनाथ झा का कहना है कि जानबूझकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है.

By Radheshyam Kushwaha | August 29, 2023 3:53 PM
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Raksha Bandhan 2023: इस साल राखी बांधने की समय को लेकर भ्रम की परिस्थितियां बन गई है. वहीं अयोध्या राममन्दिर शिलान्यास के पुरोहित आचार्य गंगाधर पाठक और धार्मिक विशेषज्ञ भवनाथ झा का कहना है कि मैथिल-बनारस पंचांग की बात कर भेदभाव-फैलाना जो लोग चाहते हैं, उन्हें एक बार अनन्तदेव का ग्रन्थ स्मृतिकौस्तुभ भी देख लेना चाहिए. अनन्तदेव ने स्पष्ट लिखा है कि यह तिथि उदय की वक्त की होनी चाहिए. बनारस के भी विद्वान् प्राचीनकाल में उदया तिथि मानते रहे हैं. रात में रक्षाबन्धन का विधान अतीत में नहीं हुआ है, तो इस बार लोगों को भ्रमित क्यों किया जा रहा है. उन्होंने लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी है. भवनाथ झा का कहना है कि कोई ‘एजेंसी’ काम कर रही है जो हर जगह मतभेद फैला कर हमें कमजोर करने के लिए पुरजोर कोशिश में लगी है. हमे सतर्क रहने की जरुरत है. बहुत कम ही पर्व में Mithila School of Law तथा Benaras School of law में अंतर है. रक्षाबन्धन में बनारस के प्राचीन विद्वानों का मत तथा मिथिला के विद्वानों का मत एक ही है. आज तक रात्रि में किसी ने रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया है. इसलिए हम सब उदया तिथि में 31 अगस्त 2023 दिन गुरुवार को रक्षाबन्धन का त्योहार मनाएंगे.

सभा में ये धर्मशास्त्री हुए थे शामिल

मिथिला की परंपरा पर्याप्त उर्वर रही है. धर्मशास्त्र के क्षेत्र में भी महर्षि याज्ञवल्क्य के काल से ही हमें पर्याप्त पुष्ट परंपरा का दर्शन होता है. इस बात के लिए अनेक प्रमाण है कि ईसा के आठवीं सदी से लेकर 14वीं सदी तक मीमांसा दर्शन पर मिथिला क्षेत्र के विद्वानों का सर्वाधिकार रहा है. 12वीं सदी से मिथिला में अनेक धर्मशास्त्री हुए हैं, जिन्होंने धर्मशास्त्र के विषयों पर निबन्धों के माध्यम से समाज का पथ-प्रदर्शन किया है. इनमें महेश्वर मिश्र, गणेश्वर मिश्र, श्रीदत्तोपाध्याय, गणेश्वर ठक्कुर, चण्डेश्वर ठक्कुर, रामदत्त ठक्कुर, हरिनाथोपाध्याय, पद्मनाभ, श्रीदत्त मिश्र, विद्यापति, इन्द्रपति, प्रेमनिधि ठाकुर, लक्ष्मीपति उपाध्याय, शंकर मिश्र, वाचस्पति मिश्र, वर्धमानोपाध्याय, म.म. महेश ठाकुर, पशुपति उपाध्याय, रुद्रधर उपाध्याय, नरसिंह ठाकुर, आदि अनेक अति प्रसिद्ध धर्मशास्त्री हुए है.

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आज भी अनेक ऐसे धर्मशास्त्रियों के ग्रन्थों के नाम उपलब्ध हैं, जिनकी पाण्डुलिपि भी उपलब्ध नहीं हैं. बाढ़ और अगलगी में अनेक ग्रन्थ विलुप्त हो गये, जो उपलब्ध भी हैं, उनमें से कई अप्रकाशित हैं और पाण्डुलिपि-ग्रन्थागारों की शोभा बढ़ा रहे हैं. ऐसे उर्वर क्षेत्र में वर्ष भर के व्रतों, त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के सन्दर्भ में विद्वानों के बीच मतान्तर होना स्वाभाविक है. कदाचित् इन्हीं मतान्तरों को दूर करने के लिए निबन्धकारों ने अतीत में भी अपने निबन्ध लिखे थे. इस मतान्तर को दूर करने के लिए दरभंगा में 1931 ई. में तत्कालीन स्थापित पण्डितों का योगदान मिथिला की धर्मशास्त्र-परम्परा में अविस्मरणीय है. उस समय के प्रख्यात ज्योतिषी पं. कुशेश्वर शर्मा, जिन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक मिथिलादेशीय पंचांग का भी निर्माण किया था. पर्वों के निर्णय के लिए उस समय के विख्यात धर्मशास्त्रियों का आह्वान किया और एक एक पर्व पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर प्रमाण के साथ अपना मन्तव्य देने का अनुरोध किया. इसके अन्तर्गत कुल 83 पर्वों पर निवन्ध आये, जिनमें कुछ विषयों पर दो दो विद्वानों ने पृथक् पृथक् अपना निर्णय लिखा. इन लेखों की समीक्षा के लिए दरभंगा में ज्योतिषियों और धर्मशास्त्रियों की एक स्थायी समिति बनायी गयी, जिसके संयोजक पं. कुशेश्वर (कुमर) शर्मा थे तथा तत्कालीन अन्य 15 विद्वान् सदस्य थे.

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  • (1) पं. श्री श्रीकान्त मिश्र, सलमपुर निवासी वयोवृद्ध पण्डित

  • (2) महावैयाकरण पं. दीनबन्धु झा, प्राचार्य, लक्ष्मीवती संस्कृत विद्यालय, सरिसव

  • (3) म. म. पं. बालकृष्ण मिश्र, प्राचार्य, प्राच्यविद्या महाविद्यालय, वाराणसी

  • (4) पं. मार्कण्डेय मिश्र, प्राचार्य, महाराणा संस्कृत महाविद्यालय, उदयपुर

  • (5) पं. श्री निरसन मिश्र, प्राचार्य, चन्द्रधारी संस्कृत महाविद्यालय, मधुबनी

  • (6) पं. ब्रजविहारी झा, द्वारपण्डित, ड्योढ़ी, महारानी लक्ष्मीवती साहिबा, काशी

  • (7) पं. श्री त्रिलोकनाथ मिश्र, प्राचार्य, लोहना विद्यापीठ, (झंझारपुर) मधुवनी

  • (पं.) श्री मुक्तिनाथ मिश्र, प्राचार्य, संस्कृत विद्यालय, दरभंगा

  • (9) पं. श्री षष्ठीनाथ मिश्र,

  • (10 ) पं. श्रीबलदेव मिश्र, राजपण्डित, दरभंगा राज्य, दरभंगा

  • (11) पं. श्री गेनालाल चौधरी, प्राचार्य, टीकमणि संस्कृत विद्यालय, काशी

  • (12) पं. श्री गङ्गाधर मिश्र, प्राचार्य, श्रीबालानन्द संस्कृत विद्यालय, देवधर

  • (13) पं. श्री श्रीनन्दन मिश्र,

  • (14) पं. श्री हरिनन्दन मिश्र,

  • (15) पं. श्री दयानाथ झा, प्राचार्य, धर्मसमाज संस्कृत विद्यालय, मुजप्फरपुर

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इस पण्डित-मण्डली ने 1938 ई. में सभी निबन्धों का अवलोकन कर उसे प्रकाशित करने की अनुमति दे दी, किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के आरम्भ हो जाने के कारण छपाई का खर्च बढ़ने लगा अतः उसका प्रकाशन स्थगित होता गया, लेकिन इसकी पाण्डुलिपि सुरक्षित रही. अन्ततः 1985 ई. में नगेन्द्र कुमार शर्मा के सम्पादन में इस ‘पर्व निर्णय’ नामक ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ, जिसमें उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती ने पुरोवाक् लिखी और नगेन्द्र कुमार शर्मा ने सभी पर्वों के विषय में अंग्रेजी में सारांश लिखा. इसकी पाण्डुलिपि के सभी आलेख मिथिलाक्षर में लिखे थे तथा संस्कृत भाषा में थे. अतः इसके सम्पादन के लिए किसी पाण्डुलिपि-विज्ञानी तथा संस्कृत के विद्वान् की अपेक्षा थी. सर्वतोमुखी प्रतिभा से सम्पन्न पं. गोविन्द झा ने यह भार उठाया और यह प्रामाणिक ग्रन्थ प्रकाशित हो सका.यह ‘पर्व निर्णय’ ग्रन्थ आज उपलब्ध है और विद्वानों के बीच अतिशय आदर है. चूंकि यह एक संकलन है और अनेक विद्वानों ने विचार कर इसका अनुमोदन किया है, अतः इसे किसी भी वैयक्तिक निबन्ध से अधिक प्रामाणिक मानना चाहिए.

रक्षाबन्धन पर विचार

इस पर्व निर्णय में पं. ऋद्धिनाथ झा ने रक्षाबन्धन पर आलेख लिखा है. वे अपना निष्कर्ष इस प्रकार देते हैं.

“रक्षाबन्धने भद्रारहितत्वं नितरामपेक्षितम्।

पूर्णिमायां च पूर्वार्द्धं भद्रेति शास्त्रसिद्धम्।।

रक्षाबन्धन में भद्रा नहीं होनी चाहिए. यह सबसे आवश्यक है. पूर्णिमा का पूर्वार्द्ध भद्रा कहलाती है. यह शास्त्र से सिद्ध है.

उभयदिनव्याप्तेः पूर्णिमायाः पूर्वदिवा समांशत्वेऽपि अधिकांशस्य भद्रात्वेन न तत्र रक्षाबन्धनस्यावकाशः।

दोनों दिनों में पूर्णिमा होने पर पहले दिन हो सकता है, पर उसके अधिकांश भाग में भद्रा होगी. अतः रक्षाबन्धन का अवसर नहीं मिलेगा.

रात्रौ तदवसरेपि तत्र आशिषामादानप्रदाने शास्त्रविरुद्धे।

दानं चापि ग्रहणावसरातिरिक्तं रात्रौ निषिद्धम्।।

रात में यह अवसर आने पर भी रात के समय आशीर्वाद लेन और देना वर्जित है. दान भी ग्रहण के अवसर को छोड़कर रात में वर्जित है.

सुतरां औदयिक्यामेव परविद्धायां प्राप्तम्।

इसलिए हर तरह से उदयव्यापिनी और अगली तिथि पड़िबा से युक्त पूर्णिमामे अवसर मिलेगा.

रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते इति।

तदपि विषं भुंक्ष्व मास्य गृहे भुंक्थाः इति वद् भद्राधिकरणक-रक्षाबन्धनमत्यन्तनिषिद्धम् इत्यत्रैव तात्पर्यबोधकम्, न तु रात्र्यधिकरणरक्षाबन्धनविधानम्। अथवा दाक्षिणात्यग्रन्थे भट्टोद्धृतमेतद्वचन-मनादेयमेवेति। तदुक्तं तूफानीशर्मणा कृत्यशिरोमणौ।

दिनार्द्धात् परतश्चेत् स्याच्छ्रावणी कालयोगतः।

रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।।

इति दाक्षिणात्याः। मैथिलैस्तु तन्नाद्रियते इति।

यह जो कहा गया है कि रात में भद्रा बीतने पर रक्षाबन्धन प्रशस्त है, यह ‘भले जहर खा लो पर इसके घर मत खाओ’ कथन के समान भद्रा में रक्षाबन्धन का गहरे विरोध करने का तात्पर्य है, न कि रात में रक्षाबन्धन का विधान है. अथवा, दक्षिण भारत के ग्रन्थ में कहे गए इस वचन का जो उल्लेख कमलाकर भट्ट करते हैं उसका आदर नहीं करना चाहिए. मिथिला के धर्मशास्त्री तूफानी शर्मा अपने ग्रन्थ कृत्यचिन्तामणि में यह बात स्पष्ट करते हैं. कमलाकर भट्ट कहते हैं कि रात में भद्रा बीतने पर रक्षाबन्धन प्रशस्त है. यह दक्षिण भारत का मत है. इसे मैथिल आदर नहीं देते हैं. मिथिला के बाहर के विद्वान भी इसी बात को स्पष्ट करते हैं. स्मृति-कौस्तुभ में अनन्तदेव ने लिखा है कि यह पर्व जिस दिन उदय के समय पूर्णिमा रहे उस दिन मनाया जाना चाहिए. क्योंकि ‘पूर्णिमा में सूर्योदय रहे’ ऐसा कहा गया है. साथ ही उपाकर्म प्रातःकाल कर उसके बाद दोपहर में रक्षाबन्धन हो ऐसा भी कहा गया है.

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उदया वक्त पूर्णिमा तिथि में रक्षाबंधन शुभ

यह मत केवल मिथिला का नहीं है बल्कि बनारस के विद्वान् भी अतीत में यही मानते रहे हैं कि यदि रात में भद्रा समाप्त होती है तो अगले दिन उदया तिथि में रक्षाबन्धन मनावें. अयोध्या राममन्दिर के शिलान्यास के पुरोहित पण्डित गंगाधर पाठक लिखते हैं कि काशी की महाविभूति महामहोपाध्याय श्रीविद्याधर शर्मा गौड़जी ने 1931ई. में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया था. उस समय पूर्व दिन चतुर्दशी 0/47 पल के बाद पूर्णिमा का आगमन हो गया था एवं सूर्यास्त के कुछ काल बाद ही भद्रा का समापन हुआ था. पुन: पर दिन मात्र 3/58 घटी पूर्णिमा थी, तथापि उन्होंने रात्रि में रक्षाबन्धन को प्रशस्त नहीं माना और दूसरे दिन की उदया पूर्णिमा में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया. इस वर्ष तो पर दिन 5/28 घटी की पूर्णिमा मिल रही है. ‘रक्षाबन्धनस्य तु पूर्वदिने भद्रायोगात् उपाकर्मरक्षाबन्धनयो: अङ्गाङ्गिभावस्य गृह्यनिबन्धकाराद्यनभिमतत्वात् परेद्यु: एव अनुष्ठानम् इति निर्णय:’ दूसरे दिन यानी मात्र 3/58 घटी की उदया पूर्णिमा तिथि में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया गया था. इस बार रक्षाबन्धन 31 अगस्त को निश्चित है.

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