Loading election data...

प्रभु श्रीराम कौन से जंगल में वनवास गए थे? जानें अयोध्या से शुरू यात्रा लंका पर कैसे हुआ खत्म

Ramayan: प्रभु श्रीराम वनवास काल में कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की. तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया.

By Radheshyam Kushwaha | January 21, 2024 12:49 PM
an image

Ramayan: श्री राम नर रूप में साक्षात नारायण ही थे. भगवान ने इंसान के रूप में लीला की थी, जब जब अधर्म धर्म पर हावी होता है तब तब भगवान अवतरित होते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं. रामायण ग्रंथ के अनुसार प्रभु श्रीराम अयोध्या नगरी में अवतरित हुए थे. भगवान मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला था. उनके साथ उनकी पत्‍नी सीता और भाई लक्ष्‍मण वन में गए थे. श्रीराम-लक्ष्मण और माता सीता 14 वर्ष तक भारत-भूमि पर विभिन्‍न स्‍थानों पर रहे. प्रभु श्रीराम ने 14 साल में उत्तरी भाग से लेकर दक्षिण में समुद्र तट पार कर लंका तक गए.

प्रभु श्रीराम वनवास काल में कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की. तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया. रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की. इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ताओं ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे.

केवट प्रसंग

अयोध्या में श्रीराम को जब वनवास हुआ तो वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है, इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था. यहीं पर प्रभु श्रीराम ने गंगा के तट पर केवट से गंगा पार करने को कहा था. रमायण में इलाहाबाद से 22 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित ‘सिंगरौर’ इस नगर का उल्लेख आता है. यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था.

कुरई

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में कुरई नामक जगह है. गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई है. कहा जाता है कि सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे. इस गांव में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है.

चित्रकूट

कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता सहित प्रयाग पहुंचे थे. श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर चित्रकूट पहुंच गए. चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे.

Also Read: कैकेयी ने क्यों मांगा था राम के लिए वनवास, जानें भगवान श्रीराम से जुड़े अनोखे रहस्य
अत्रि ऋषि का आश्रम

मध्यप्रदेश स्थित चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था. महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहते थे. वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया. अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी. चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम घने जंगलों में पहुंचे.

दंडकारण्य

अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया. यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था. यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे. दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा. यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था. यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है.

मध्यप्रदेश के सतना

अत्रि-आश्रम’ से भगवान श्रीराम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां ‘रामवन’ हैं. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया.

Exit mobile version