Ram Navami 2023: आशीष झा. पटना. राम जैसा बेटा पाने के लिए अवध नरेश दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या को कठोर तप करना पड़ा था. कहते हैं कि स्वयंभू मनु कहे जानेवाले राजा दशरथ और शतरूपा रानी कौशल्या दोनों ने सतयुग में भगवान विष्णु को अपने पुत्र के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. भगवान विष्णु उनके इस तप से प्रसन्न हुए और उन्हें त्रेतायुग में माता-पिता बनने का वरदान दिया. राम के रूप में विष्णु के अवतार का इंतजार हर किसी को था, लेकिन राम के माता-पिता बनने का वर पा चुके दशरथ और कौशल्या का धैर्य जवाब दे रहा था.
तीन रानियों में पैदा हुए चार पुत्र
बाल्मिकी रामायण के अनुसार धैर्यहीन हो चुके राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. जिसे श्रृंगी ऋषि ने संपन्न किया. कहा जाता है कि यज्ञ संपन्न हुआ, तो यज्ञ कुंड से अग्निदेव स्वंय दोनों हाथों में खीर के दो पात्र लेकर प्रकट हुए. राजा दशरथ ने दोनों पात्र अपनी तीनों रानियों कौशल्या, कैकई और सुमित्रा के बीच बांट दिया. एक पात्र का आधा कौशल्या और बचा हुआ सुमित्रा ने खाया, उसी प्रकार दूसरे पात्र का आधा कैकई और बचा हुआ सुमित्रा ने खाया. खीर खाने के कुछ दिन बाद कौशल्या के गर्भ से भगवान राम, कैकई के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ.
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ऋष्यशृंग की देखरेख में राजा दशरथ ने किया था पुत्रेष्टि यज्ञ
इस संबंध में महावीर मंदिर पटना के पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 15वें सर्ग में स्पष्ट उल्लेख है कि ऋष्यशृंग की देखरेख में राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि नामक यज्ञ किया था. वैदिक यज्ञों में किसी विशेष कामना को लेकर अनेक प्रकार के ग्राम-इष्टि, पशु-इष्टि आदि यज्ञों का विधान किया गया है, जिनके करने से उन यज्ञों के देवता प्रसन्न होकर यजमान की कामना की पूर्ति करते हैं. इन्हीं में से एक है- पुत्रेष्टि, यानी संतान की कामना से किया गया यज्ञ. रामायण के अनुसार महामुनि ऋष्यशृंग ने यह यज्ञ अथर्वशीर्ष के मन्त्रों से सम्पन्न कराया था.
उत्तम स्वास्थ्य देनेवाला भी होता है हुतशेष खीर
पंडित भवनाथ झा आगे कहते हैं कि रामायण के 16वें सर्ग के वर्णन के अनुसार उस यज्ञ के समाप्त होने पर जब सभी देव आहुतियाँ लेकर प्रसन्न होकर चले गये, तब उस अग्नि से एक विशिष्ट प्राणी प्रकट हुआ, जिसके हाथों में दिव्य पायस(खीर) से भरा पात्र था. वह पायस और कुछ नहीं, देवताओं का प्रसाद था. (रामायण : 1.16.18) वह न केवल संतान प्रदान करनेवाला था, बल्कि उसे उत्तम स्वास्थ्य देनेवाला भी कहा गया है. यदि हम वैदिक यज्ञ की विधि के रूप में इसे देखें तो यह हुतशेष चरु है. प्रत्येक यज्ञ में जहां पायस से हवन होता है, हवन के बाद यजमान की मनोकामना की पूर्ति के लिए उसी हुतशेष चरु का प्राशन (भक्षण) विहित है.
हुतशेष खीर बनाने की विधि
पंडित झा कहते हैं कि जिस प्रकार पूजा का फल उसके प्रसाद भक्षण से होता है, उसी प्रकार इस पुत्रेष्टि यज्ञ से संतान की प्राप्ति में इस हुतशेष पायस का भक्षण फलदायी होता है. इसी विशिष्ट चरु को यहां आलंकारिक शैली में कहा गया है कि अग्नि से प्रकट दिव्य पुरुष ने दशरथ को यह खीर सौंपा था. इसी प्रकार ग्रामेष्टि यज्ञ में इसी हुतशेष चरु के प्राशन से यजमान को राजा बनने की बात मानी गयी है. पंडित संजीव झा कहते हैं कि इस खीर का निर्माण भी विशिष्ट प्रकार से होता है. इसके लिए कामधेनु गौवंश के प्रथम दूध की आवश्यकता होती है साथ ही ऐसे खेत की जरुरत होती है जहां कभी खेती न हुई हो. धरती के प्रथम सीत से पैदा हुए धान के चावल से यह खीर बनता है. इसमें खजूर के गुड़ का प्रयोग होता है.