21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पौने दो सौ साल पुराना है रमचौरा के केले का इतिहास, अब जीआई की रेस में

रमचौरा का केला नेपाल, बिहार और वाराणसी तक मशहूर है. इसका सौदा खेत से ही हो जाता है.

लखनऊ: पौने दो सौ साल पुराने रमचौरा का केला अब जीआई (GI) लेने की रेस में है. कभी यहां के कच्चे केले की दूर-दूर तक धूम थी. एक फंगस के कारण इस स्थानीय प्रजाति का रकबा सिमटता गया. लेकिन यूपी सरकार जीआई के जरिए इसे पुनर्जीवन देने में लगी हैृ. सब्जी के लिए इस कच्चे केले की अच्छी मांग थी.

गोरखपुर  35  किलोमीटर है रमचौरा

गोरखपुर से करीब 35 किलोमीटर उत्तर सोनौली रोड पर कैंपियरगंज से पहले रमचौरा है. कभी गोरखपुर और महराजगंज में केले का पर्याय कैंपियरगंज से लगे रमचौरा का केला ही हुआ करता था. आस-पास के जिलों के अलावा नेपाल और बिहार तक यह केला जाता. वाराणसी के आढ़ती यहां फसली सीजन के पहले ही डेरा डाल देते थे. फसल देखकर खेत का ही सौदा हो जाता था. खेत से ही पूरी फसल व्यापारी उठा ले जाते थे.

केले की पकौड़ी थी मशहूर

रमचौरा से ही लगे एक जगह थी मीनागंज. वहां इसी केले की पकौड़ी मिलती थी. साथ में खास चटनी भी. इस चटनी की खासियत यह थी कि यह कुनरू (परवल जैसी दिखने वाली सब्जी), पंचफोरन, बिना छिले लहसुन, हरी मिर्च और सेंधा नमक को कूटकर बनाई जाती थी. इसे खाने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर चार और दो पहिया वाहनों की कतार लगी रहती थी.

Also Read: सीएम योगी ने किया बी पैक्स महाभियान का शुभारंभ, वन डिस्ट्रिक्ट वन कोऑपरेटिव बैंक की दिशा में आगे बढ़ेगा यूपी
घट गया खेती का रकबा

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के अनुसार दरअसल एकल खेती से यहां की मिट्टी में बिल्ट नामक फंगस आ गया. चूंकि पूर्वांचल की आबादी और जोत छोटे हैं. लिहाजा दूसरे खेत में खेती का विकल्प नहीं था. इसलिए धीरे-धीरे इसका रकबा घटता गया. यहां केले की खेती का रकबा सिमटकर 25 फीसद पर आ गया. अगल-बगल के कुछ गावों में इसकी खेती होती है. अब जो करते हैं उनको मंडी तक माल खुद पहुंचना पड़ता है.

1840 में हुई थी खेती की शुरुआत

बताया जाता है कि रमचौरा के केले का इतिहास पौने दो सौ साल पुराना है. मगहर से 1840 में यहां आए कुछ परिवार अपने साथ केले की पुत्ती भी लाए थे. जमीन और जलवायु फसल के अनुकूल निकली. उत्पादन और गुणवत्ता के कारण माल की मांग भी थी. लिहाजा इसकी खेती का विस्तार होता गया. लेकिन रोग इसके लिए ग्रहण बन कर आया और इसकी खेती सिमटती गई.

जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. रजनीकांत कहते हैं कि अगर किसी उत्पाद का इतिहास पुराना है, लोग उस उत्पाद को उस जगह के नाम से जानते हैं तो उसे जीआई टैगिंग मिलने की संभावना बढ़ जाती है. रमचौरा का केला इन मानकों पर फिट बैठता है. अन्य उत्पादों की तरह यह आने वाले समय का संभावित जीआई उत्पाद है. इस पर काम भी शुरू हो चुका है.

Also Read: No Parking: लखनऊ की प्रमुख सड़कों के किनारे अब नो पार्किंग, जानें कहां-कहां हो सकता है चालान
क्या होती है जीआई टैंगिग और क्या होता है इसका लाभ

जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत के मुताबिक जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा संबंधित उत्पाद या उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है. साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है. विशिष्ट उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार-प्रसार करने में आसानी होती है.

जीआई टैग से हैंडीक्राफ्ट सेक्टर को मिला बूम

2014 के बाद उत्तर प्रदेश के जिन 50 से अधिक उत्पादों को जीआई टैग मिला है. उनमें से करीब एक दर्जन को छोड़ सभी हैंडीक्राफ्ट सेक्टर के ही हैं. इनमें अकेले बनारस से ब्रोकेड की साड़ियां, गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के समान, मेटल रिपाउज क्राफ्ट, ग्लास बीड्स, वुड कार्विंग, हैंड ब्लॉक प्रिंट आदि हैं.

जीआई टैग से निर्यात बढ़ा

उत्तर प्रदेश के जिन तमाम उत्पादों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में जीआई मिला, उनमें से लगभग सभी किसी न जिले की ओडीओपी थे. जिन उत्पादों को सरकार ने ओडीओपी घोषित किया और जिनको इस दौरान जीआई टैग मिला, उनमें से अधिकतर हैंडीक्राफ्ट से संबंधित थे. एमएसएमई सेक्टर में इनका ही सर्वाधिक हिस्सा भी है. इन सबने मिलकर प्रदेश सरकार के एमएसएमई सेक्टर को संजीवनी दे दी. इससे उत्तर प्रदेश की पहचान मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में बनी. इनके जरिये प्रदेश का निर्यात बढ़कर दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

केंद्र से मिली सराहना

वर्ष 2018 में पहले उत्तर प्रदेश दिवस पर “नई उड़ान, नई पहचान” हैशटैग से जारी ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) योजना के दायरे में आने वाले तमाम उत्पादों से जुड़े शिल्पकारों का हुनर निखारने के लिए दूसरी योजना थी, विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना. बाद में योगी सरकार की इन सफलतम योजनाओं को केंद्र सरकार ने न केवल सराहा बल्कि इनको लागू भी किया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें