रामगढ़ उपचुनाव में आजसू की जीत से NDA रिचार्ज, 2024 का प्लॉट करेंगे तैयार, UPA को हराने के लिए क्या थी रणनीति?
आजसू और भाजपा के नेताओं ने अपने-अपने कैडर को बिखरने नहीं दिया. इस गठबंधन ने तरीके से गठबंधन के वोट बैंक में सेंधमारी की. जातीय समीकरण को अपने पक्ष में मोड़ने में गठबंधन कामयाब रहा.
रांची, आनंद मोहन: रामगढ़ उपचुनाव में एनडीए ने जीत का परचम लहराया है. आजसू की जमीन से एनडीए रिचार्ज हुआ है. वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल का यह पांचवां उपचुनाव था. चार उपचुनाव में यूपीए की जीत हुई थी. दुमका, मधुपुर, बेरमो व मांडर में उपचुनाव जीत चुका यूपीए विजय रथ पर सवार था, पर एनडीए ने पूरी रणनीति के साथ इसे रोका. भाजपा-आजसू का गठबंधन काम आया. यह गठबंधन जमीन पर भी दिखा.
आजसू और भाजपा के नेताओं ने अपने-अपने कैडर को बिखरने नहीं दिया. इस गठबंधन ने तरीके से गठबंधन के वोट बैंक में सेंधमारी की. जातीय समीकरण को अपने पक्ष में मोड़ने में गठबंधन कामयाब रहा. वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा और आजसू का गठबंधन टूटा था. भाजपा के उम्मीदवार ने 32 हजार से ज्यादा वोट लाकर इस चुनाव में जीत हासिल करनेवाली आजसू उम्मीदवार सुनीता चौधरी के रास्ते में कांटे बिछाये थे. यह उपचुनाव एनडीए के लिए बड़ी परीक्षा थी.
भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक किसी तरह की चूक नहीं करना चाहता था. रामगढ़ उपचुनाव वर्ष 2024 में होनेवाले चुनाव का प्लॉट तैयार कर सकता है. इस चुनाव का साफ मैसेज है : यूपीए के खिलाफ भाजपा-आजसू की राजनीतिक गलबहियां निहायत ही जरूरी है. ‘एकला चलो’ के रास्ते पर दोनों का नुकसान तय है. जमीनी स्तर पर भाजपा-आजसू का चुनावी गणित आनेवाले समय में यूपीए के लिए भी चुनौती होगी.
इधर, उपचुनाव में आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो की रणनीति भी काम आयी. आजसू ने चूल्हा प्रमुख बना कर गांव-गांव में अपने कार्यकर्ताओं को लगाया. इस चुनाव में महिला वोटर आजसू की बड़ी ताकत बनीं. सुदेश महतो ने चुनाव में अकेले छोटी-बड़ी लगभग सौ से अधिक सभाएं कीं.
वहीं, सांसद चंद्रप्रकाश चाैधरी और डॉ लंबोदर महतो सहित अन्य नेताओं ने गांव-गांव में अपने संपर्क को साधा. भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, आदित्य साहू सहित कई नेता लगातार कैंप करते रहे. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, अन्नपूर्णा देवी सहित आला नेता चुनावी अभियान में जुटे रहे. भाजपा ने खुले मन से आजसू का सहयोग किया.
नियोजन युवाओं के बीच था मुद्दा :
यूपीए-एनडीए के नेताओं की मानें, तो युवा भी चुनावी माहौल का एक हिस्सा थे. नियोजन नीति के मामले में सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया. रोजगार को एजेंडा बनाने में एनडीए सफल रहा. यूपीए के पास इसका मौजूं जवाब नहीं था. यूपीए ने 1932 खतियान के मामले में एनडीए को घेरने का प्रयास जरूर किया, लेकिन खतियान से कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा रोजगार बना. चुनावी परिणाम यूपीए को कई मोर्चे पर सचेत कर रहा है.