फ़िल्म- राष्ट्र कवच ओम
निर्देशक-कपिल वर्मा
कलाकार-आदित्य रॉय कपूर,संजना सांघी,आशुतोष राणा,प्रकाश राज,जैकी श्रॉफ और अन्य
प्लेटफार्म-सिनेमाघर
रेटिंग-डेढ़
मौजूदा दौर में अगर फ़िल्म के मेकर्स को लगता है कि एक मसाला एक्शन फिल्म में हर पंद्रह मिनट में एक एक्शन सीक्वेंस, उसके बाद थोड़ा सा मेलोड्रामा और देशभक्ति का जज्बा फिर एक आइटम सॉन्ग और थोड़ा सा ट्विस्ट डालने से फ़िल्म बन जाती है. तो मेकर्स की ऐसी सोच पर तरस आता है. इसी छोटी सोच से फ़िल्म राष्ट्र कवच ओम भी बनायी गयी है.
कहानी सुपर हीरो टाइप सैनिक ओम(आदित्य रॉय कपूर) की है. जो एन्टी न्यूक्लियर मिसाइल सिस्टम से देश को सुरक्षित रखने वाले एक सिस्टम की तलाश में है. इसी बीच उस मिशन में उसे गोली लग जाती है. जिससे उसकी यादाश्त चली जाती है,लेकिन उसे अपने बचपन की एक घटना याद आ जाती है , जिसमे उसके पिता देव(जैकी श्रॉफ) पर देशद्रोही होने का आरोप है. वो अपने पिता के नाम से कलंक को मिटाना चाहता है. उसे अपने पिता की तलाश भी है. क्या वह पिता को ढूंढ पाएगा. इसी के इर्द- गिर्द फ़िल्म की कहानी है. फ़िल्म की कहानी बहुत घिसीपिटी है.
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परदे पर जो कुछ भी चल रहा है. वह किसी 80 के दशक की फ़िल्म की याद दिलाता है. फ़िल्म में जो ट्विस्ट है ,वह किसी बी ग्रेड उपन्यास से भी बदतर है. वह जबरदस्ती ठूंसे हुए से लगते हैं. फ़िल्म के किरदार कभी भी किसी भी लोकेशन पर पहुंच जाते हैं. ओम अपने पिता देव से 15 सालों के बाद मिलता है,लेकिन उसे मालूम हो जाता है कि उसका बेटा वही है. फ़िल्म और लॉजिक का दूर -दूर तक कोई कनेक्शन है. किरदार को गोली लगने के बाद भी कभी भी उठकर ना सिर्फ खड़ा हो जाता है बल्कि वह एकदम नॉर्मल भी नज़र आता है,जैसे कुछ हुआ ही नहीं है.
बेजान है हर डिपार्टमेंट में
फ़िल्म की कहानी ही नहीं,उसके संवाद भी एकदम घिसे -पिटे हैं. देशभक्ति की भावना वाले संवाद बहुत कमजोर हैं. फ़िल्म का गीत संगीत भी पुराना है. एक्शन सीक्वेंस टाइगर ज़िंदा है से प्रेरित लगते हैं.
कमज़ोर स्क्रिप्ट कमज़ोर अभिनय
अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म में आदित्य रॉय कपूर एकदम अलहदा अंदाज़ में दिख रहे हैं. उन्होंने पहली बार इस कदर एक्शन भूमिका की है. वे अच्छे लगे हैं, लेकिन कमज़ोर स्क्रीनप्ले ना सिर्फ उनके किरदार बल्कि बाकी के किरदार को भी पूरी तरह से पर्दे पर कमज़ोर कर गया है. जैकी श्रॉफ का किरदार बुरा क्यों है,ये स्क्रिप्ट में सही तरह से आया नहीं है और ना ही उनके अभिनय में. प्रकाश राज एक बार फिर खुद को दोहराते दिखे हैं.
देखें या नहीं
आखिर में इस फ़िल्म से दूर रहने में ही भलाई है. यह बेहद कमजोर कवच है.