बरेली में पेठा की खेती पर मंदी की मार, फसल का लागत मूल्य न मिलने से अन्नदाता उदास
आम आदमी टमाटर से लेकर हरी सब्जियों की महंगाई से परेशान है. मगर, बरेली में पेठा किसान पेठे की मंदी से दुखी हैं. उनकी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है.
Bareilly : आम आदमी टमाटर से लेकर हरी सब्जियों की महंगाई से परेशान है. मगर, पेठा किसान पेठे की मंदी से दुखी हैं. उनकी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है. आम दिनों में पेठा 800 से 1500 रूपये क्विंटल तक बिकता है. मगर, बाजार में पेठे की कीमत सिर्फ 200 रूपये क्विंटल तक है. इससे पेठा किसान बड़े नुकसान में हैं.बरेली के किसानों की पेठा फसल तैयार हो चुकीं है. मगर, दाम न मिलने के कारण किसान फसल नहीं तोड़ पा रहे हैं. उन्हें बाजार में पेठा फसल के दाम बढ़ने की उम्मीद है.
बरेली के उमरिया गांव निवासी पेठा किसान रजा खां का कहना है कि महीनों पहले फसल तैयार हो चुकीं है. मगर, फसल के दाम नहीं मिल रहे हैं. दाम बढ़ने की उम्मीद में फसल खेतों में तैयार खड़ी है. रजा खां ने बताया कि इस बार पेठा की फसल सबसे सस्ती है. हमेशा 800 से 1500 रूपये क्विंटल तक बिकती है. मगर, इस बार 200 रूपये क्विंटल से आगे भाव नहीं मिल रहा है. हालांकि, आम दिनों में पेठा कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाली खेती मानी जाती है. इसीलिए किसान पेठा की खेती करना अधिक पसंद करते हैं.
जानें क्या-क्या बोलते हैं पेठे को
यूपी में पेठा की खेती कद्दू वर्गीय फसल के रूप में की जाती है.इसको कुम्हड़ा, कूष्माण्ड, और काशीफल के नाम से भी जाना जाता है. इसके पौधे लताओं के रूप में फैलते हैं. इसकी कुछ प्रजातियों में फल 1 से 2 मीटर तक लंबा होता है. इसके साथ ही फलों पर हल्के सफेद रंग की पाउडर नुमा परत दिखाई देती है. पेठा के कच्चे फल से सब्जी, और पके फल से पेठा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इसको सब्जी के लिए काफी कम उपयोग किया जाता है.
बरेली से दिल्ली और गुवाहाटी तक सप्लाई
बरेली के उमरिया, ठिरिया निजावत खां, मोहनपुर, फरीदपुर, और भूता के गांवों में पेठा की खेती होती है.मगर, इसकी सप्लाई दिल्ली, उत्तराखंड, गुवाहाटी, पंजाब, और साउथ इंडिया तक होता है. बरेली के पेठा सप्लायर अबरार खां कहना है कि मांग न होने के कारण पेठा की कीमत नहीं मिल पा रही है. पेठे का सेवन करने से मानसिक शक्ति में इजाफा होता है. इससे च्यवनप्राश भी बनाया जाता है. पेठा खाने से छोटी-मोटी बीमारिया भी नहीं आती.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली