भारत में पिछले कुछ वर्षों से अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए खूब प्रयास किये जा रहे हैं. इस दिशा में भारत ने कुछ लक्ष्य तय कर रखे हैं. इनमें एक महत्वपूर्ण लक्ष्य 2030 तक अक्षय ऊर्जा के स्रोतों से 500 गीगावाट बिजली का उत्पादन करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के 26वें सम्मेलन में पांच संकल्पों की घोषणा की थी, और उन्हें पंचामृत नाम दिया था. इनमें पहला संकल्प, 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से बिजली उत्पादन की अपनी क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट कर देना था. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि भारत इस लक्ष्य को 2030 की समयसीमा से पहले ही हासिल कर लेगा. ग्लासगो सम्मेलन में भारत के घोषित पांच लक्ष्यों में दूसरा 2030 तक देश की कुल ऊर्जा जरूरत का 50 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा से पूरा करने का था.
मंत्री ने कहा है कि भारत इस लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में भी तेज प्रगति कर रहा है, और यदि कोरोना महामारी की वजह से दो वर्ष का नुकसान नहीं होता तो भारत अभी तक इसे प्राप्त कर चुका होता. भारत अगली पीढ़ी को एक स्वस्थ और सुरक्षित विश्व देने के लिए प्रतिबद्ध है. उनकी यह टिप्पणी अक्षय ऊर्जा के विकास के एक महत्वपूर्ण उद्देश्य को रेखांकित करती है. दरअसल, दुनियाभर में उन्नति का हर लक्ष्य आज ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर हो चुका है. भारत में ऊर्जा की खपत उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है. भारत की ऊर्जा जरूरत का अधिकांश हिस्सा कोयला और तेल व गैस जैसे स्रोतों से पूरा होता है. लेकिन जीवाश्म ईंधन के ये भंडार सीमित हैं. ऐसे में यदि विकल्पों की खोज नहीं की गयी, तो एक दिन ये भंडार समाप्त हो जायेंगे. फिर अगली पीढ़ी क्या करेगी?
दुनियाभर में इसे लेकर विचार हुआ और सर्वसम्मति से तय हुआ कि ऊर्जा के इन साधनों का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करने के साथ ऊर्जा के ऐसे स्रोतों पर निर्भरता बढ़ायी जायेगी जो खत्म नहीं होते हैं. ये स्रोत पर्यावरण के भी अनुकूल हैं और जलवायु परिवर्तन की चुनौती का कारगर समाधान पेश करते हैं. भारत ने अक्षय ऊर्जा का विकास जारी रख दुनिया को संदेश दिया है कि वह आर्थिक प्रगति की राह पर जिम्मेदारी के साथ कदम बढ़ा रहा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के अपने पांचवें और सबसे बड़े लक्ष्य को भी समय से पहले प्राप्त कर लेगा.