Rishi Panchami 2021: आज है ऋषि पंचमी का पर्व, जाने-अनजाने हुई गलतियों से मुक्ति दिलाता है यह व्रत
Rishi Panchami 2021: सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है. ऋषि पंचमी एक शुभ त्योहार माना गया है. भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत का विधान है. यह दिन हमारे पौराणिक ऋषि-मुनि वशिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, और भारद्वाज इन सात ऋषियों के पूजन के लिए खास माना गया है.
Rishi Panchami 2021: सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है. ऋषि पंचमी एक शुभ त्योहार माना गया है. भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत का विधान है. यह दिन हमारे पौराणिक ऋषि-मुनि वशिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, और भारद्वाज इन सात ऋषियों के पूजन के लिए खास माना गया है. प्रतिवर्ष ऋषि पंचमी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है.
इस वर्ष यह पर्व शनिवार, 11 सितंबर 2021 को मनाया जा रहा है. ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को यह व्रत करना चाहिए. सभी महिलाओं तथा पुरुषों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए. यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के पक्षालन के लिए बहुत महत्व का माना गया है. इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि ऋषि पंचमी का उपवास रखने से व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है और जीवन में हुए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
पंचमी तिथि का प्रारंभ 10 सितंबर की रात 09 बजकर 57 मिनट से होगा और पंचमी तिथि की समाप्ति 11 सितंबर की शाम 07 बजकर 37 मिनट पर होगी. ऋषि पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01 बजकर 32 मिनट तक रहेगा. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक रहेगा.
आइए जानें कैसे करें ऋषि पंचमी का पूजन
इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. किसी पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं. फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें. इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें. इस मंत्र से अर्घ्य दें
‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें. बिना बोई हुई पृथ्वी से पैदा हुए शाकादि का आहार लें. इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात मूर्तियां बनवाएं. तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें. अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें.
ऋषि पंचमी की कथा
विदर्भ नामक देश में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी एक साथ रहते थे. उस ब्राह्मण की एक पुत्री और एक पुत्र था. वे चारों एक साथ रहते थे, उस ब्राह्मण का नाम उत्तक था. उस समय उस उत्तक ब्राह्मण की पुत्री शादी योग्य हो गई थी और उस ब्राह्मण ने अपने उस पुत्री का विवाह सुयोग्य वर के साथ कर दिया.
उस विवाह के बाद ब्राह्मण की पूत्री के पति की अकाल मृत्यु हो गई और उस ब्राह्मण की पुत्री विधवा हो गई. उसके बाद उस ब्राह्मण की पुत्री वापस अपने मायके अपने माता-पिता के पास लौट जाती हैं. कुछ समय बाद की बात हैं वो ब्राह्मण की पुत्री एक रात अकेले सो रही थी. तब उसकी माँ ने देखा कि उसक शरीर में कीड़े पड़ गये हैं.
ब्राह्मण की पत्नी अपनी पुत्री की व्यथा देख कर अपनी पुत्री को अपने प्राणनाथ के पास ले गई और उनसे पूछा, हे प्राणनाथ, मेरी पुत्री की यह क्या व्यथा हो गई. उस ब्राह्मण ने ध्यान लगा कर देखा तो उसको पता चला कि यह इसके पिछले जन्म में भी एक ब्राह्मण की ही पुत्री थी. लेकिन राजस्वला के दौरान ब्राह्मण की पुत्री ने पूजा के बर्तन छू लिए और इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया, जिसकी वजह से इस जन्म में कीड़े पड़े.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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