बढ़ता मेडिकल खर्च

अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी को जारी रखने के लिए यह आवश्यक है कि हमारी श्रमशक्ति स्वस्थ हो और आवश्यकतानुसार उसे मेडिकल बीमा की सुविधा मिले.

By संपादकीय | November 27, 2023 8:32 AM

भारत में स्वास्थ्य के मद में सरकारी खर्च बढ़ने के बावजूद मरीज को इलाज के लिए औसतन आधा खर्च स्वयं उठाना पड़ता है. अनेक राज्यों में यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक है. ऐसे में अगर उपचार महंगा होता जायेगा, तो बड़ी आबादी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बीमा-तकनीक कंपनी प्लम की एक हालिया रिपोर्ट का आकलन है कि भारत में मेडिकल मुद्रास्फीति की दर 14 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच चुकी है. बीमा नहीं होने के कारण देश की श्रमबल में शामिल 71 प्रतिशत लोगों को इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है. केवल 15 प्रतिशत कामगारों को ही उनके नियोक्ता द्वारा बीमा उपलब्ध कराया जाता है. रिपोर्ट ने रेखांकित किया है कि नौ करोड़ लोग मेडिकल महंगाई से बेहद प्रभावित हैं, क्योंकि उनके कुल खर्च में स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा 10 प्रतिशत से भी अधिक है. एक समस्या यह भी है कि कंपनियां अपने युवा कामगारों को अधिक आयु के कामगारों की तुलना में कम बीमा मुहैया कराती हैं. हमारे देश में 2022 में कामगारों की कुल संख्या लगभग 52.2 करोड़ थी, जो 2030 तक लगभग 57 करोड़ हो जायेगी. अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी को जारी रखने के लिए यह आवश्यक है कि हमारी श्रमशक्ति स्वस्थ हो और आवश्यकतानुसार उसे मेडिकल बीमा की सुविधा मिले. पांच फीसदी से भी कम कंपनियां संपूर्ण बीमा उपलब्ध कराती हैं. रिपोर्ट ने यह चिंताजनक जानकारी भी दी है कि गंभीर बीमारियों से जूझते 85 प्रतिशत कामगारों ने बताया कि उन्हें कंपनी से मदद नहीं मिल रही है.

एक चुनौती यह भी है कि अधिकतर श्रमबल असंगठित क्षेत्र में है. अधिकतर कामगार छोटे उद्यमों या स्वरोजगार में हैं. केंद्र सरकार की आयुष्मान बीमा योजना समेत विभिन्न स्वास्थ्य पहलों से निर्धन वर्ग के लोगों को बड़ी राहत मिली है. राज्य सरकारों की ओर से भी बीमा योजनाएं चलायी जा रही हैं. यह प्रयास किया जाना चाहिए कि अधिक से अधिक लोग इन योजनाओं का लाभ उठाएं. अनेक गंभीर बीमारियों का खर्च इसलिए बहुत होता है कि इनकी दवाइयां और उपकरण महंगे होते हैं तथा इनके इलाज की सुविधा बड़े शहरों तक सीमित है. इन कारणों से निश्चित राशि का बीमा एक सीमा तक ही कारगर हो पाता है और लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है. केंद्र सरकार के प्रयासों से आम दवाओं के साथ-साथ गंभीर रोगों की दवाओं के देश में बनाने तथा सस्ते दाम पर उनकी उपलब्धता से कुछ राहत अवश्य मिली है. इस दिशा में और भी प्रयास किये जा रहे हैं. महंगाई नियंत्रण प्राथमिकता होनी चाहिए.

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