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पितृपक्ष के द्वितीया तिथि को उत्तर-दक्षिण मानस में पिंडदान-तर्पण का विधान, जानें गया में तिथिवार श्राद्ध स्थल

गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थलों पर तीर्थयात्री अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धर्मिक महत्व है.

Pitru Paksha 2023: त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध करने वाले पंचतीर्थों में सर्वप्रथम द्वितीया तिथि यानी इस वर्ष पितृपक्ष महासंगम के रविवार के दिन उत्तर मानस तीर्थ में जाकर आचमन कर कुशा से सिर पर जल छिड़कें और स्नान करें. स्नान आचमन योग्य जल न रहने पर फल्गु तीर्थ के जल से क्रिया करें. मंत्र बोले, आत्मा शुद्धि और सूर्य लोग की प्राप्ति के लिए उत्तर मानस में स्नान करें. स्नान तर्पण करके पितृ विमुक्ति के लिए सपिंडों का श्राद्ध करें. मान सरोवर के साथ उत्पन्न होने से इसे उत्तर मानस कहते हैं. उत्तर मानस में श्राद्ध कर्म का काम पूरा कर मौन धारण कर दक्षिण मानस में जाए, जो आज सूर्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है. दक्षिण मानस तीर्थ में तीन तीर्थ हैं. उसमें स्नान कर तीनों में अलग-अलग श्राद्ध करें. विमुक्तिदायक उदीचि तीर्थ दक्षिण मानस के उत्तर में है. यहां स्नान करने से मनुष्य सशरीर स्वर्ग चला जाता है. निरोग हो जाता है. आइए जानते है ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री से गयाजी में पितृ पक्ष के किस तिथि को किस स्थल पर पिंडदान और तर्पण करने का विधान है.

गयाजी में इन वेदी स्थलों पर पिंडदान करने का महत्व

गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थलों पर पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड कियाा जाता हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धर्मिक महत्व है. मान्यता है कि ब्रह्मा सरोवर, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, सूर्यकुंड, रुक्मिणी सरोवर, ब्रह्मकुंड, रामकुंड व गोदावरी सरोवर ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित कराया गया है. इन सरोवरों पर पितृपक्ष मेले में पिंडदान व तर्पण के कर्मकांड का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है.

ब्रह्मकुंड में पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मिलती है मुक्ति

पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को ब्रह्मकुंड में पिंडदान व तर्पण करने का विधान है. ब्रह्मकुंड पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है.

रामकुंड में पिंडदान से पितरों को विष्णुलोक की होती है प्राप्ति

पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को रामकुंड में पिंडदान व तर्पण करने का विधान है. रामकुंड में पिंडदान व तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है.

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मानस सरोवर में पिंडदान करने पर पितरों को जन्म-मरण से मिलता है छुटकारा

उत्तर मानस सरोवर में पितृपक्ष के द्वितीया तिथि को पिंडदान व तर्पण करने का विधान है. मान्यता है कि यहां पर पिंडदान करने पर पितरों को जन्म-मरण यानी जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है.

सूर्यकुंड में पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को सूर्यलोक की होती हे प्राप्ति

विष्णुपद मंदिर के पास सूर्यकुंड (दक्षिण मानस) सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन यहां पर कर्मकांड करने का विधान है. मान्यता के अनुसार सूर्यकुंड सरोवर में तर्पण करने से पितरों को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है.

ब्रह्म सरोवर में तर्पण करने पर पितरों को होता है उद्धार

पितृपक्ष के चतुर्थी तिथि को ब्रह्म सरोवर में पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण करने का विधान है. मान्यता है कि यहां पर पितृपक्ष के चतुर्थी तिथि को पिंडदान करने पर पितरों का उद्धार होता है और उनको बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.

वैतरणी सरोवर में पिंडदान व तर्पण करने से स्वर्ग के लिए खुल जाते हैं दरवाजे

पितृपक्ष में वैतरणी सरोवर पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है. पितृपक्ष के चतुर्दशी तिथि को यहां कर्मकांड का विधान है. वैतरणी सरोवर में गोदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओ के पितरों को भवसागर की प्राप्ति होती है. उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते है.

जानें रुक्मिणी सरोवर पर पिंडदान करने का महत्व

रुक्मिणी सरोवर पर पिंडदान करने का फल अक्षयवट वेदी जैसा मिलता है. अक्षयवट वेदी पर ज्यादा भीड़ रहने के कारण श्रद्धालु रुक्मिणी सरोवर पर आकर पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण का कर्मकांड करते है. इस स्थल पर कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को अक्षयवट वेदी पर कर्मकांड करने जैसे फल की प्राप्ति होती है.

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पिंडदान का सही समय क्या है?

पिंडदान दोपहर के समय किया जाता है. जिन लोगों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए. पितृ पक्ष में दोनों वेला स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए. कुतप वेला यानी सुबह 11 बजकर 30 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट के बीच का समय बहुत ही अच्छा माना गया है, इस समय में पितरों को तर्पण दें, इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है. तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व होता है. कुश और काले तिल के साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है.

पितृपक्ष में तर्पण करने का विधान

मान्यता है कि पितरों को जब जल और तिल से पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है. पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह और मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावा नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह. वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य सभी स्वर्गवासी सगे-संबंधियों का गोत्र व नाम लेकर तर्पण किया जाता है.

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54 वेदी स्थलों पर श्राद्ध करने का विधान

गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थलों पर तीर्थयात्री अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धार्मिक महत्व है. इसके साथ ही इनका रिश्ता शहर से युगों पुराना है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार ब्रह्मा सरोवर, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, सूर्यकुंड, रुक्मिणी सरोवर, ब्रह्माकुंड, रामकुंड व गोदावरी सरोवर ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित हैं. इन सरोवरों पर पितृपक्ष मेले में पिंडदान व तर्पण के कर्मकांड का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है.

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