फ़िल्म – रॉकेट्री- द नाम्बी इफेक्ट्स
निर्माता और निर्देशक-आर माधवन
कलाकार- आर माधवन,सिमरन,रजीत कपूर और अन्य
प्लेटफार्म-सिनेमाघर
रेटिंग-साढ़े तीन
सिनेमा का क्या मनोरंजन का साधन मात्र ही है ,यह सवाल अक्सर पूछा जाता है ,लेकिन गौर करें तो यही एक कला है, जिसने आम आदमी की ज़िंदगी और सोच को ना सिर्फ प्रभावित किया है, बल्कि कई बार असहज भी कर जाती है. रॉकेट्री द नाम्बी इफेक्ट्स महान वैज्ञानिक नाम्बी नारायण की ऐतिहासिक उपलब्धि,जुनून और जद्दोजहद की कहानी है. जिसे देखते हुए आप इमोशनल होते हैं,सिस्टम की नाकामी आपको असहज भी करती है साथ ही आप निर्माता निर्देशक और अभिनेता आर माधवन के शुक्रगुज़ार होने से भी खुद को नहीं रोक पाते है कि उन्होंने इस महान वैज्ञानिक की कहानी से आपको रूबरू करवाया. जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं,जबकि हर भारतीय को इस अनसंग हीरो की कहानी जाननी चाहिए. फ़िल्म का वीएफएक्स भी अच्छा बन पड़ा है.
द नाम्बी इफेक्ट्स हमारे देश की महान वैज्ञानिक नाम्बी नारायण की कहानी है, जिनके अविष्कार विकास ने देश को अंतरिक्ष विज्ञान में एक खास मुकाम दिलाया है, अपने देश के लिए उन्होंने नासा की नौकरी को भी ठुकराया था,लेकिन हमारे देश के सिस्टम ने उन्हें ही देशद्रोही करार देकर उन्हें और उनके परिवार को मुसीबतों के भंवर में डाल दिया था. यह फ़िल्म इस झूठे आरोपों से उनके लड़ने -झगड़ने की भी जद्दोजहद की कहानी है.फ़िल्म का फर्स्ट हाफ की कहानी उनके महान वैज्ञानिक बनने की कहानी है तो सेकेंड हाफ में उनपर देशद्रोही का दाग लगने के बाद उससे जूझते तिरस्कार और उनके बेगुनाह साबित करने पर फोकस करती है.फ़िल्म की कहानी इस बात पर भी सवाल उठती है कि सुप्रीम कोर्ट ने नाम्बी नारायण को बेगुनाह करार दिया था तो असली दोषी कौन थे.उनको सजा क्यों नहीं मिली. क्या अमेरिका के इशारों पर ये हुआ था? फ़िल्म की कहानी आपको इमोशनल कर जाती है.फ़िल्म के संवाद रियलिस्टिक टच लेते हुए भी एक अलग जोश भरते हैं. फ़िल्म के दृश्यों का संयोजन रोचक है. फ़िल्म अपने पहले ही दृश्य से प्रभावी है.जिससे फ़िल्म में पहले ही दृश्य के साथ एक जुड़ाव हो जाता है. खामियों की बात करें तो फ़िल्म रॉकेट साइंस पर है, तो बहुत सारे टेक्निकल टर्म और प्रयोग की बातें समझ से परे लगती है, लेकिन फ़िल्म इमोशनली पूरी तरह के कनेक्ट करती है और यही फ़िल्म की जीत है.
आर माधवन ने नाम्बी नारायण की भूमिका को लुक,हावभाव से पूरी तरह से आत्मसात किया है. फ़िल्म पूरी तरह से उन्ही के कंधों पर है और उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है.सिमरन ने भी परदे पर माधवन का बखूबी साथ दिया है. एक पत्नी की मानसिक स्थिति को वह शिद्दत के साथ सामने लाती जी.शाहरुख खान की मौजूदगी फ़िल्म में शानदार है. रजित कपूर सहित बाकी के किरदारों ने भी अच्छा सपोर्ट किया है.
यह ऐसी कहानी है,जो आज की युवा पीढ़ी के साथ साथ हर पीढ़ी को देखनी चाहिए ताकि देश के इन अनसंग हीरोज को हम जान सकें, साथ ही इस कहानी से सीख ले सकें कि अदालत के दोषी ठहराने से पहले किसी को दोषी मान लेना कितना गलत होता है.