कोलकाता (नवीन कुमार राय): मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) केंद्रीय कमेटी की तीन दिवसीय बैठक में घमासान मचा हुआ है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी की दुर्गति के लिए अन्य प्रदेश के नेताओं ने लोकल लीडर्स को कठघरे में खड़ा कर दिया है. उनकी अदूरर्दशिता को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है.
शुक्रवार से शुरू हुई इस बैठक में दूसरे दिन भी माहौल गर्म रहा. विधानसभा चुनाव के नतीजों और भविष्य की रणनीति तय करने के लिए यह बैठक हो रही है. केंद्रीय कमेटी की बैठक में जहां केरल के पार्टी नेताओं की सराहना हुई, वहीं पश्चिम बंगाल के नेता बैकफुट पर रहे.
केरल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना सहित कई राज्यों के नेताओं ने आरोप लगाया है कि चुनावी रणनीति में भटककर बंगाल में वामपंथ को बर्बाद कर दिया गया. क्या ‘मोदी और दीदी’ का एक साथ विरोध करना पश्चिम बंगाल में तबाही के कारणों में से एक है, केंद्रीय कमेटी के भीतर भी चल रही बहस छिड़ गयी है.
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हालांकि, बंगाल के नेताओं ने कहा कि उन्होंने धर्मनिरपेक्ष दलों को एक करने के उद्देश्य से पार्टी लाइन पर चलते हुए बंगाल में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. केवल रणनीतिक गलतियों को वोट की विफलता के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. राज्य कमेटी ने आपदा के कारणों के बारे में विस्तार से बताया है.
वर्चुअल बैठक में भाग ले रहे बंगाल माकपा के नेता
केंद्रीय कमेटी की तीन दिवसीय बैठक के पहले चरण में पांच राज्यों की चुनावी समीक्षा भी की जा रही है. अलीमुद्दीन स्ट्रीट पार्टी कार्यालय से ही वर्चुअल बैठक में प्रदेश से केंद्रीय कमेटी के सदस्य भाग ले रहे हैं. पहले दिन कमोबेश 36 वक्ता थे.
पार्टी सूत्रों के अनुसार, केरल माकपा की अभूतपूर्व सफलता के लिए सराहना की गयी है, जबकि बेनजीर के पतन के लिए बंगाल माकपा नेतृत्व की आलोचना की गयी है. कई लोगों ने कहा है कि वाम मोर्चा अपनी पुरानी परंपरा को बनाये रखते हुए वामपंथ की एकता पर भरोसा करके चुनाव लड़ती, तो बेहतर होता.
केंद्रीय नेतृत्व भी सवालों के घेरे में
पश्चिम बंगाल के नेताओं ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को सवालों के घेरे में ला दिया है. कहा है कि कांग्रेस के प्रति सहानुभूति और झुकाव दिखाने वाला केंद्रीय नेतृत्व बंगाल चुनाव में पार्टी की तबाही की जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. हालांकि, बंगाल के नेताओं ने कहा कि वे भाजपा से लड़ेंगे और कांग्रेस से दूरी बनाये रखेंगे. इस लाइन को पार्टी में पहले ही खारिज कर दिया गया है.
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बंगाल में भी उन्होंने भाजपा और तृणमूल को एक रूप में नहीं देखा, बल्कि दोनों पार्टियों का विरोध किया. वे पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि संयुक्त मोर्चा बंगाल में भाजपा को हराने का बेहतर विकल्प बन सकता है. यह बात आम मतदाताओं तक पहुंचाने में वह लोग विफल रहे हैं.
लिहाजा, भाजपा को तृणमूल ही हरा सकती है, लोगों के मन में यह बात बैठ गयी. नतीजा चुनाव परिणाम में देखने को मिला. इस मामले में तृणमूल और भाजपा ने लड़ाई को दो ध्रुवीय बना दिया. इसलिए वे लोग गलतियों को सुधार कर दो सत्तारूढ़ दलों के खिलाफ संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.
केंद्रीय नेतृत्व का खामियाजा भुगतना पड़ा माकपा को
पहले माकपा के राष्ट्रीय नेताओं के एक वर्ग ने कांग्रेस के साथ गठबंधन पर आपत्ति जतायी थी. यही कारण है कि सूर्यकांत मिश्रा ने वर्ष 2016 में केंद्रीय नेतृत्व की नापसंदगी के चलते राज्य में कांग्रेस के साथ एक सीट पर बातचीत की थी. लेकिन, वर्ष 2018 में हैदराबाद पार्टी कांग्रेस में कांग्रेस सहित धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को मजबूत करने का निर्णय लिया गया था. उन्होंने इसका पालन किया.
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बंगाल माकपा के नेताओं के एक वर्ग की तरह अन्य राज्यों में भी कई लोगों ने खुले दिमाग से उस लाइन को स्वीकार नहीं किया था. चुनावी समीक्षा पर बहस के बाद शनिवार से केंद्रीय कमेटी में संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा शुरू हुई. युवा नेतृत्व को और जिम्मेवारी देने के फैसले के अलावा पार्टी सूत्रों के अनुसार आगामी पार्टी कांग्रेस के लिए केरल के कन्नूर को चुना जा सकता है.
Posted By: Mithilesh Jha