सबके अपने-अपने राम
अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले पूरा देश राममय हो गया है. मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को हर किसी ने अपनी-अपनी तरह से पूजा है. आइए, आपको तुलसी, मीरा और कबीर के राम के बारे में बताते हैं...
आंगन में किलकारी मारते तुलसी के राम
तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन
कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि
भूरि अनंग की दूरि धरैं ।।
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों
किलकैं कल बाल बिनोद करैं ।
अवधेस के बालक चारि सदा
तुलसी मन मंदिर में बिहरैं ।।
मीरा के श्याम में राम का नाम
पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा
कर अपनायो ।।
पायो जी मैं तो…
मीरा के प्रभु गिरिधर नगरहर्ष
हर्ष जस गायो।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ।।
संत रविदास के राम की छवि
अब कैसे छूटे राम रट लागी।
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी
अंग-अंग बास समानी ।।
प्रभुजी तुम घन वन हम मोरा, जैसे
चितवत चंद चकोरा ।
प्रभुजी तुम दीया हम बाती, जाकी
जोति बरै दिन राती ।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे
सोनहिं मिलत सोहागा ।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐंसी
भक्ति करै रैदासा ।।
कबीरदास की साखियों में राम
सकल हंस में राम बिराजे ,
राम बिना कोई धाम नहीं।
सब भरमंड में जोत का बासा ,
राम को सिमरण दूजा नही ।।
सकल हंस में राम बिराजे……
नाभि कमल से परख लेना,
हृदय कमल बीच फिरे मणि।
अनहद बाजा बाजे शहर में ,
ब्रह्माण्ड पर आवाज हुयी ।।
सकल हंस में राम बिराजे…