Jharkhand News: सैनिक स्कूल तिलैया में शनिवार को 1968-1975 बैच के पूर्ववर्ती छात्र पहुंचे. वे यहां दो दिवसीय कार्यक्रम में शामिल होने व अपनी पुरानी यादें ताजा करने पहुंचे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में सैन्य सेवा, चिकित्सा सेवा, शिक्षा सेवा में योगदान दे चुके व दे रहे कई पूर्ववर्ती छात्र पहले दिन अपने परिवार के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हुए. कार्यक्रम की शुरुआत स्कूल परिसर में बने वार मेमोरियल में स्कूल के पूर्ववर्ती कैडेट रह चुके सैन्य सेवा के दौरान शहीद अधिकारियों को पुष्प अर्पित कर की गई. इसके बाद पूर्ववर्ती कैडेट्स ने अपने बैचमेट और परिजनों के साथ ग्रुप फोटोग्राफी की.
47 वर्ष बाद जुटे कैडेट्स
सैनिक स्कूल के एकेडमिक ब्लॉक, एडमिन ब्लॉक, क्लासरूम, ऑडिटोरियम समेत अन्य महत्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण कर पूर्ववर्ती कैडेटों ने अपने परिजनों के साथ अपने छात्र जीवन की यादों को ताजा किया. सैनिक स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के करीब 47 वर्षों के बाद वापस अपने परिवार के साथ इस कार्यक्रम में शामिल होने आए केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत एवं रिटायर्ड अधिकारियों ने बताया कि शुरुआत में तो अपने बैचमेट को पहचानने में थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन जब एक दूसरे से बातचीत शुरू हुई तो क्लास रूम में बिताए सभी यादें ताजा हो गईं. स्कूल पहुंचे पूर्ववर्ती छात्रों ने अपने क्लासमेट और बैचमेट के साथ इन 47 वर्षों के दौरान देश सेवा और समाज सेवा के क्षेत्र में विभिन्न स्थान पर किए गए कार्यों के अनुभव को एक दूसरे से साझा किया.
छात्र जीवन में लौटने जैसा अनुभव
एलएस कॉलेज मुजफ्फरपुर में बतौर प्रोफेसर अपनी सेवा दे रहे प्रो अशोक अंशुमान ने बताया कि 47 वर्षों के बाद सैनिक स्कूल में अपने क्लासमेट और बैचमेट से मिलकर आज ऐसा लग रहा है कि हम सभी दूसरी दुनिया से वापस अपने छात्र जीवन में लौट आए हैं. यह एक अलौकिक अनुभव है. इतने लंबे वर्षों के बाद स्कूल के संरचना में काफी बदलाव हुए हैं. कई नए बिल्डिंग्स बनी हैं लेकिन जो पुराने भवन थे, उन्हें भी एक विरासत के रूप में संजोकर रखना चाहिए था. केंद्र सरकार के द्वारा सैनिक स्कूल में छात्राओं के लिए 10% आरक्षण लागू करने पर उन्होंने कहा कि बिल्कुल यह सही निर्णय है. समय के अनुसार यह काफी आवश्यक था.
पहले और अब की स्थिति में काफी आया है बदलाव
आर्मी सर्विस के दौरान राष्ट्रपति से स्वर्ण ध्वज से पुरस्कृत रिटायर्ड कर्नल दीनानाथ गुप्ता ने बताया कि 47 साल पहले के सैनिक स्कूल और अब के सैनिक स्कूल में काफी बदलाव हुए हैं. छात्रों की सुविधा को लेकर आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस छात्रावास और क्लासरूम बन चुके हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त उनके बैच के 17 कैडेट नेशनल डिफेंस एकेडमी की परीक्षा पास कर सैन्य सेवा में गए थे. आज के कैडेट को भी इसे बरकरार रखने की आवश्यकता है. कैडेट्स के लिए उन्होंने संदेश देते हुए कहा कि यदि आप अनुशासन और मेहनत के साथ चलेंगे, तो आप सफलता की ऊंचाइयों तक जरूर पहुंचेंगे.
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सैनिक स्कूल में मिली शिक्षा का अहम योगदान
एयर डिफेंस सर्विस में 37 वर्षों की सेवा के बाद रिटायर हुए कर्नल सुरेंद्र कुमार सिंह ने अपनी सफलता का श्रेय सैनिक स्कूल के शिक्षकों और स्कूल के सभी कर्मचारियों को दिया. उन्होंने कहा कि सैनिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान शिक्षकों के द्वारा शिक्षा एवं खेलकूद समेत अन्य गतिविधियों में दिए गए मार्गदर्शन के बदौलत ही मैं अपने जीवन में एक बेहतर स्थान प्राप्त किया हूं. इसके साथ ही हमारा पूरा परिवार आज स्कूल से प्राप्त अनुशासन से एक अलग पहचान बनाए हैं. इसके लिए उनका पूरा बैच आज भी अपने गुरुजनों का ऋणी है. उन्होंने बताया कि देश के मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम में भी उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
समय के साथ बढ़ता जा रहा स्कूल से जुड़ाव
सेना में 22 वर्षों से अधिक समय सेवा देने के बाद रिटायर हुए कर्नल उदय शंकर वर्मा ने अपने बैचमेट के साथ कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान कारगिल युद्ध के अनुभव को भी साझा किया. उन्होंने बताया कि सैनिक स्कूल ऐसा स्कूल है जहां के शिक्षक एक कुम्हार के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए मिट्टी रूपी छात्रों को सोने की मिट्टी के रूप में तब्दील कर देते हैं. जब हमने इस स्कूल में नामांकन लिया था उस समय हम कुछ नहीं थे लेकिन आज बहुत कुछ है. यह सब इस स्कूल और यहां के शिक्षकों की बदौलत हुआ है. सैनिक स्कूल हमारे लिए चारों धाम के बराबर है. उन्होंने कहा कि जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ रही है स्कूल के साथ लगाव और प्यार भी बढ़ता जा रहा है. हम सभी कभी-कभी यह भी सोचते हैं कि यदि यह स्कूल नहीं होता तो हमारा क्या होता. जिंदगी को लेकर हम सभी ने जो सपना देखा था. इस स्कूल के माध्यम से हम अपने सपने को साकार करने में सफल हुए.
आज याद आ गए स्कूल के दिन
मरीन इंजीनियरिंग में सेवा दे चुके कैप्टन उमेश प्रताप सिंह ने बताया कि 47 वर्षों के बाद अपने सहपाठियों से मिलकर उन्हें स्कूल के दिन याद आ गए हैं. उन्होंने बताया कि आज मरीन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में लोगों की एक गलत अवधारणा है कि उन्हें लंबे समय तक पानी के जहाज पर रहना होता है लेकिन अब समय के साथ इसमें काफी बदलाव हुए हैं. अब 3 महीने की ड्यूटी लगती है और शिप पर बेहतर मेडिकल, कम्युनिकेशन समेत अन्य तरह की सुविधाएं भी बहाल की गई है.
सेना की तैयारी कर रहे युवा अपनी आंखों का रखें ख्याल
धनबाद के बीसीसीएल में चिकित्सक के रूप में सेवा देने के बाद रिटायर हुए डॉक्टर रवि शंकर ने बताया कि सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान नेत्र की समस्या होने की वजह से वह डिफेंस के क्षेत्र में नहीं जा पाए. इसके बाद उन्होंने अपने पिता की सलाह पर मेडिकल की पढ़ाई आरएमसीएच रांची से पूरी की. इसके बाद उन्होंने अपनी सेवा नेत्र चिकित्सक के रूप में दिया. उन्होंने बताया कि सेना में जाने की तैयारी कर रहे युवा एवं ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले छात्र और मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों को अपने आंखों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. स्क्रीन के सामने अधिक समय तक रहने से आंख सूख जाती है. इसके लिए समय-समय पर आंखों में लुब्रिकेट डालना चाहिए ताकि आंख सुरक्षित रहे.
पूर्ववर्ती छात्रों का एक साथ आना विद्यालय के लिए गौरव का पल
सैनिक स्कूल तिलैया के प्राचार्य ग्रुप कैप्टन राहुल सकलानी ने कहा कि सैनिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के 47 वर्षों के बाद एक बैच के पूर्ववर्ती कैडेट्स का एक साथ आना बड़ी बात है. कई कैडेट्स दूसरे देश में भी कार्यरत हैं. इस कार्यक्रम की तैयारी एक डेढ़ वर्षों से चल रही थी. आज सभी ने यहां पहुंचकर अपनी पुरानी यादों को ताजा किया और अपने अनुभव को साझा किया. स्कूल का प्रयास रहता है कि पूर्ववर्ती कैडेट्स समय-समय पर यहां अध्ययनरत कैडेटों को अपने समय की अच्छी चीजों की जानकारियां दें और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित करें.
रिपोर्ट : साहिल भदानी, झुमरीतिलैया, कोडरमा