Sakat Chauth 2023: माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ या तिलकुटा चौथ का व्रत रखा जाता है. सकट चौथ के दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसके सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. इस साल सकट संकष्टी व्रत10 जनवरी, मंगलवार को रखाा जा रहा है. इस दिन को संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर संकष्टी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, तिलकुट चतुर्थी, संकटा चौथ, माघी चौथ, तिल चौथ जैसे अनेक नामों से जाना और मनाया जाता है. जानें सकट चौथ 2023 व्रत पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय क्या है.
दिल्ली- रात 08 बजकर 41 मिनट
नोएडा- रात 08 बजकर 40 मिनट
कोलकाता- रात 08 बजकर 04 मिनट
गुड़गांव- रात 08 बजकर 42 मिनट
ग्रेटर नोयडा- रात 08 बजकर 40 मिनट
पटना- रात 08 बजकर 13 मिनट
रांची- रात 08 बजकर 15 मनट
लखनउ- रात 08 बजकर 28 मिनट
मेरठ- 08 बजकर 38 मिनट
आगरा- रात 08 बजकर 40 मिनट
मथुरा- रात 08 बजकर 41 मिनट
कानपुर- रात 08 बजकर 31 मिनट
गोरखपुर- रात 08 बजकर 18 मिनट
वाराणसी- रात 08 बजकर 22 मिनट
मुंबई- रात 09 बजकर 13 मिनट
पुणे- रात 09 बजकर 09 मिनट
हैदराबाद- रात 08 बजकर 52 मिनट
चेन्नई- रात 08 बजकर 50 मिनट
इंदौर- रात 08 बजकर 55मिनट
जयपुर- रात 08 बजकर 50 मिनट
सूरत- रात 09 बजकर 10 मिनट
अहमदाबाद- रात 09 बज कर 08 मिनट
कानपुर- रात 8 बजकर 31 मिनट
लुधियान- रात 08 बजकर 43 मिनट
श्रीनगर- 08 बजकर 42 मिनट
अलीगढ़- 08 बजकर 39 मिनट
भुवनेश्वर- 08 बजकर 17 मिनट
बरेली- 08 बजकर 32 मिनट
कोटा- 08 बजकर 52 मिनट
रायपुर- 08 बजकर 33 मिनट
जोधपुर- 08 बजकर 02 मिनट
मैसूर- 09 बजकर 06 मिनट
भोपाल- 08 बजकर 48 मिनट
आगर- 08 जबकर 40 मिनट
बडोदरा- 09 बजकर 07 मिनट
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पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 जनवरी 2023 को दोपहर 12 बजकर 9 मिनट से शुरू होगी.
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अगले दिन 11 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी.
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संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष विधान है.
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चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही व्रत को खोला जाता है.
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सकट चौथ 2023 व्रत 10 जनवरी 2023 मंगलवार को ही रखा जाएगा.
इस बार सकट चौथ पर भद्रा का साया है. भद्रा सुबह 7 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 9 मिनट तक रहेगा. इस समय शुभ कार्यों को करने की मनाही है.
सकट चौथ चंद्रोदय का समय- रात 8 बजकर 50 मिनट (10 जनवरी 2023)
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सुबह स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें.
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सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को मोदक, लड्डू का भोग लगाएं.
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उन्हें दूर्वा अर्पित करें.
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पूजा के दौरान माघी चौथ व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
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शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ देने के बाद व्रत का पारण करें.
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पूजा के समय गणेश स्तुति, गणेश चालीसा और सकट चौथ व्रत का पाठ करना शुभ माना जाता है.
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सकट चौथ का व्रत सभी संकटों को हरने वाला होता है, इसलिए इसे संकटा चौथ भी कहते हैं.
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सकट चौथ का व्रत संतान की सुरक्षा और परिवार की खुशहाली के रखा जाता है.
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इस दिन गणेश जी की पूजा में दूर्वा और मोदक भी अर्पित करते हैं.
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गणेश जी की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं.
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ गं गणपतये नमः
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सकट चौथ यानी संकष्ट चतुर्थी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें गणेश जी का अपने माता-पिता की परिक्रमा करने वाली कथा, नदी किनारे भगवान शिव और माता पार्वती की चौपड़ खेलने वाली कथा, कुम्हार का एक महिला के बच्चे को मिट्टी के बर्तनों के साथ आग में जलाने वाली कथा प्रमुख रूप से शामिल है. आज आपको सकट चौथ पर तिलकुट से संबंधित गणेश जी की एक कथा के बारे में बताते हैं. एक समय की बात है. एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. वे दोनों पूजा पाठ, दान आदि नहीं करते थे. एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई. वहां वह पूजा कर रही थी. उस दिन सकट चौथ थी. साहूकारनी ने पड़ोसन ने सकट चौथ के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि आज वह सकट चौथ का व्रत है. इस वजह से गणेश जी की पूजा कर रही है. साहूकारनी ने उससे सकट चौथ व्रत के लाभ के बारे में जानना चाहा. तो पड़ोसन ने कहा कि गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को पुत्र, धन-धान्य, सुहाग, सबकुछ प्राप्त होता है.
इस पर साहूकारनी ने कहा कि वह मां बनती है तो सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ व्रत रखेगी. गणेश जी ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी. वह गर्भवती हो गई. अब साहूकारनी की लालसा बढ़ गई. उसने कहा कि उसे बेटा हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी. गणेश जी की कृपा से उसे पुत्र हुआ. तब उसने कहा कि यदि उसके बेटे का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पांच सेर तिलकुट करेगी. गणेश जी के आशीर्वाद से उसके लड़के का विवाह भी तय हो गया, लेकिन साहूकारनी ने कभी भी न सकट व्रत रखा और न ही तिलकुट किया. साहूकारनी के इस आचरण पर गणेश जी ने उसे सबक सिखाने की सोची. जब उसके लड़के का विवाह हो रहा था, तब गणेश जी ने अपनी माया से उसे पीपल के पेड़ पर बैठा दिया. अब सभी लोग वर को खोजने लगे. वर न मिलने से विवाह नहीं हुआ.
एक दिन साहूकारनी की होने वाली बहू सहेलियों संग दूर्वा लाने जंगल गई थी. उसी समय पीपल के पेड़ पर बैठे साहूकारनी के बेटे ने आवाज लगाई ‘ओ मेरी अर्धब्याही’. यह सुनकर सभी युवतियां डर गईं और भागकर घर आ गईं. उस युवती ने सारी घटना मां को बताई. तब वे सब उसे पेड़ के पास पहुंचे. युवती की मां ने देखा कि उस पर तो उसका होने वाला दामाद बैठा है. उसने यहां बैठने का कारण पूछा, तो उसने अपनी मां की गलती बताई. उसने तिलकुट करने और सकट व्रत रखने का वचन दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया. सकट देव नाराज हैं. उन्होंने ही इस स्थान पर उसे बैठा दिया है. यह बात सुनकर उस युवती की मां साहूकारनी के पास गई और उसे सारी बात बताई. तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.
तब उसने कहा कि हे सकट महाराज! उसका बेटा घर आ जाएगा तो ढाई मन का तिलकुट करेगी. गणेश जी ने उसे फिर एक मौका दिया. लड़का घर आ गया और उसका विवाह पूर्ण हुआ. उसके बाद साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और सकट व्रत रखा. उसने कहा कि हे सकट देव! आपकी महिमा समझ गई हूं, आपकी कृपा से ही उसकी संतान सुरक्षित है. अब मैं सदैव तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत रहूंगी. इसके बाद से उस नगर में सकट चौथ का व्रत और तिलकुट धूमधाम से होने लगा.