सकट चौथ पर जरूर पढ़ें गणेश जी की व्रत कथा, नहीं तो आपकी पूजा रह जाएगी अधूरी

Sakat Chauth Katha: सकट चौथ का व्रत महिलाएं अपनी संतान के लिए रखती हैं. सकट चौथ का यह व्रत भगवान गणेश और माता सकट के लिए रखा जाता है. हर साल माघ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के रूप में सकट चौथ मनाई जाती है.

By Radheshyam Kushwaha | January 29, 2024 7:18 AM

Sakat Chauth 2024 Katha: माघ मास की कृष्ण चतुर्थी तिथि आज 29 जनवरी दिन सोमवार को है, इस दिन सकट चौथ का व्रत रखा जाता है. सकट चौथ के दिन माताएं संतान की सुरक्षा और उनके सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, इस दिन शुभ मुहूर्त में विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि सकट चौथ की व्रत के दौरान यह कथा बिना सुने या पढ़ें पूजा अधूर रह जाती है. महिलाएं पूरे दिन उपवास रखकर रात के समय में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पारण करती हैं. सकट चौथ को तिलकुट चैथ, तिलकुट चतुर्थी, माघ संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है.

सकट चौथ की व्रत कथा-1

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवता गण संकट में घिरे हुए थे. सभी देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की शरण में पहुंचे. वहां पर भगवान गणेश और कार्तिकेय जी उपस्थित रहे. भगवान भोलेनाथ ने अपने पुत्रों कार्तिकेय और गणेश से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवाताओं के संकट को दूर करेगा. दोनों ने ही कहा कि वे देवताओं को संकट से उबार सकते हैं. भगवान महादेव ने कहा कि तुम दोनों में से जो पहले धरती की परिक्रमा करके आएगा, उसे ही देवताओं के संकट को दूर करने का अवसर मिलेगा. यह सुनते ही कार्तिकेय मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए. गणेश जी का वाहन मूषक था और उससे पृथ्वी की परिक्रमा जल्दी कर पाना संभव नहीं था.

गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करनी शुरू कर दी. 7 बार परिक्रमा करने के बाद वे अपने माता-पिता को प्रणाम करके एक तरफ खड़े हो गए. कुछ देर में कार्तिकेय वहां आ गए और स्वयं को विजेता बताने लगे. तब शिव जी ने गणेश जी से पूछा कि उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा करने की जगह माता-पिता की परिक्रमा क्यों की? गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक होता है. यह सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और गणेश जी को विजयी घोषित किया और गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने का आदेश दिया. गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति चौथ के दिन व्रत रखकर तुम्हारी पूजा करेगा और चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके सभी संकट दूर होंगे और पाप मिटेंगे, इसके साथ ही उसे पुत्र, धन, सुख, समृद्धि आदि की प्राप्ति होगी.

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दूसरी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक बुढ़िया थी. वह गणेश जी की परम भक्त थी. हमेशा चतुर्थी का व्रत रखती और गणेश जी की पूजा करती थी. एक दिन गणेश जी प्रकट हुए और उससे बोले कि आज तुम जो चाहो मांग लो. मन की मुराद पूरी होगी. इस पर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा कि उसे तो मांगना नहीं आता. वह कैसे कुछ मांगे? तब गणेश जी ने कहा कि तुम अपने बेटे और बहू से सलाह लेकर मांग ले. इस पर बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा कि गणेश जी ने कुछ मांगने को कहा है, क्या मांग लूं? उसने कहा कि धन मांग ले, उसकी पत्नी ने कहा कि नाती मांग ले. बुढ़िया ने पड़ोस के लोगों से भी इस बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि धन और नाती का तुम्हें क्या लाभ है. तुम अंधी हो, अपने लिए गणेश जी से आंखों की रोशनी मांग लो. बुढ़िया ने गणेश जी से कहा कि आप प्रसन्न हैं तो 9 करोड़ की माया दो, निरोगी काया दो, अखंड सुहाग दो, आंखों की रोशनी दो, नाती और पोता दो, सुख और समृद्धि दो और जीवन के अंत में मोक्ष दो. इस पर गणेश जी ने कहा कि बुढ़िया मां, तुमने तो मुझे ठग लिया, लेकिन जाओ तुम्हारी सब मनोकामनाएं पूरी हों. उसके बाद गणेश जी वहां से चले गए. बुढ़िया को सबकुछ प्राप्त हो गया.

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