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Salaar Movie Review: केजीएफ वाला जादू है सालार से मिसिंग, लेकिन यह मास एंटरटेनर मनोरंजन करती है

प्रभास की सालार आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई. प्रशांत नील की इस फ़िल्म में भी पॉवर के साथ-साथ मां बेटे का इमोशन भी है, लेकिन पर्दे पर इमोशन उस तरह से नहीं आ पाया है. किरदार कई बार लाउड और सींस में ड्रामा की अति हो गयी है.

फ़िल्म – सालार

निर्देशक- प्रशांत नील

निर्माता- होंबले फिल्म्स

कलाकार- प्रभास, श्रुति हसन,पृथ्वीराज सुकुमारन, जगपथि बाबू, श्रिया रेड्डी और अन्य

प्लेटफार्म- सिनेमाघर

रेटिंग- तीन

पिछले कुछ सालों से सिनेमा में वीभत्स, भयानक और रौद्र रस को प्राथमिकता दी जा रही है . साउथ सिनेमा की भागीदारी के बाद से यह हर फ़िल्म के साथ बढ़ता जा रहा है. एनिमल की अभी चर्चा ख़त्म भी नहीं हुई है कि केजीएफ फेम प्रशांत नील ने अपनी फ़िल्म सालार पार्ट वन से खूनी मारपीट के खेल को एक लेवल और बढ़ा दिया है. सालार की घोषणा के साथ ही इसका कनेक्शन केजीएफ़ से जोड़ना शुरू हो गया था. दोनों में कोई कनेक्शन नहीं है और ना ही यश की मौजूदगी है लेकिन हां हैरतअंगेज एक्शन वाली इस कहानी में भी मां के इमोशन को कहानी से जोड़ा गया है, लेकिन पर्दे पर केजीएफ वाला जादू नहीं आ पाया है. हालांकि खामियों के बावजूद यह मास एंटरटेनर फ़िल्म मनोरंजन करती है .

दो दोस्तों की है कहानी

फ़िल्म की कहानी काल्पनिक शहर ख़ानसार के बैकड्रॉप पर है. खानसार हिंसा से भरा है. वहां देवा (प्रभास) और वर्धा (पृथ्वीराज) करीबी दोस्त हैं.जब दोस्ती इतनी करीबी है, तो वर्धा मुसीबत में होगा तो देवा किसी की जान लेने से भी नहीं हिचकेगा. हालांकि परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती है कि वर्धा अपने सबसे अच्छे दोस्त को खानसार छोड़ने के लिए कहता है, लेकिन देवा वादा करता है कि जब भी वर्धा को उसकी ज़रूरत होगी वह वापस आ जाएगा. खानसार से दूर होने पर देवा हिंसा से भी दूर हो जाता है. दूसरी ओर, वर्धा के पिता, राजा मन्नार (जगपति बाबू) अपने बेटे को खानसार में अपना उत्तराधिकारी बनाने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कइयों को ये मंज़ूर नहीं है. सत्ता की लड़ाई में वर्धा को मारने की योजना बनाते हैं. 25 साल बाद वर्धा अपने दोस्त देवा को मदद के लिए बुलाता है. इसके बाद खूनी खेल शुरू हो जाता है. कहानी का सिरा दूसरे भाग के लिए भी खुला छोड़ा गया है.

फ़िल्म की खूबियां और खामियां

प्रशांत नील की इस फ़िल्म में भी पॉवर के साथ-साथ मां बेटे का इमोशन भी है, लेकिन पर्दे पर इमोशन उस तरह से नहीं आ पाया है. किरदार कई बार लाउड और सींस में ड्रामा की अति हो गयी है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ जरूरत से ज्यादा खींच गया है. फ़िल्म का सेकेंड हाफ बहुत कन्फ्यूजिंग है. समुदायों की इतनी डिटेलिंग कन्फ्यूजन को बढ़ाती है. जो फ़िल्म को कमजोर कर गया है. संगीत की बात करें तो सूरज ही छांव बनके कुछ हद तक प्रभाव डालता है. फ़िल्म का बीजीएम कमजोर रह गया है. कई बार यह शोर मचाता हुआ सुनायी देता है. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, और हर फ्रेम को देखते समय कहीं ना कहीं केजीएफ की भी याद आती है. एक्शन और उन्होंने फिल्म की भव्यता को बहुत अच्छी तरह से कैद किया है. एक्शन दृश्यों को अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया गया है, विशेष रूप से प्रभास का कुल्हाड़ी वाला सीन दिलचस्प है.

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प्रभास का स्वैग अन्दाज़ है ख़ास

अभिनय की बात करें तो प्रभास एक्शन अवतार में जंचे हैं. उन्होंने अपने किरदार को पूरे स्वैग के साथ जिया है. पृथ्वीराज ने अपने किरदार से जुड़ी हर चुनौती को बखूबी जिया है. श्रुति हसन को स्क्रीन टाइम बहुत कम मिला है. उनको फ़िल्म में जोड़ने को कुछ ख़ास नहीं था.. जगपथी बाबू, टीनू आनंद सहित बाक़ी के किरदारों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. बाकी के एक्टर्स भी अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं.

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