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बरेली: सपा का सदस्यता अभियान टला, बगावत का ख़ौफ या विधानसभा चुनाव में हार का फिक्र नहीं? उठने लगे सवाल

यूपी विधानसभा चुनाव में जीत और हार मिलने के बाद भाजपा,कांग्रेस और बसपा कुछ महीने बाद होने वाले नगर निकाय की तैयारी में जुटे हैं. भाजपा ने मंत्रियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक को जिम्मेदारी बांट दी. मगर,सपा दो महीने गुजरने के बाद भी चुनाव में मिली हार की समीक्षा भी नहीं कर पाई है.

बरेली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में करारी हार मिलने के बाद भी समाजवादी पार्टी गंभीर नहीं हो पा रही है. यह बात पुराने सपा नेता दबीं जुबां से कह रहे हैं. उनका कहना है कि सपा हर विधानसभा चुनाव के बाद 01 मई से अपने कुनबे को बढ़ाने के लिए सदस्यता अभियान चलाती है. यह अभियान 2012 और 2017 के चुनाव के बाद 01 मई से शुरू हुआ था. इस बार भी संग़ठन से लेकर कार्यकर्ताओं को 01 मई से शुरू होने वाले सदस्यता अभियान की उम्मीद थी. वह पूरी तैयारी में थे. मगर, सपा के सदस्यता अभियान का आगाज 10 मई तक नहीं हो पाया है.

इस अभियान के शुरू करने को लेकर लखनऊ के सपा कार्यालय से भी कोई फरमान जारी नहीं हुआ है. जिसके चलते सदस्यता अभियान एक दो महीने टलने की उम्मीद जताई जाने लगी है.मगर, सदस्यता अभियान टलने को लेकर तमाम सवाल उठने लगे हैं.कुछ का कहना है कि पार्टी में विरोध के स्वर उठने लगे हैं.इसका असर सदस्यता अभियान पर भी पड़ेगा.इसलिए आगे बढ़ाया जा रहा है, तो वहीं कुछ लोग प्रसपा अध्यक्ष एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के बढ़ते कद से नुकसान की बात कह रहे हैं.उनका कहना है कि सपा के सदस्यता अभियान के दौरान बड़ी संख्या में सपाई शिवपाल यादव और भाजपा की तरफ जा सकते हैं.इससे सपा को नुकसान की उम्मीद है.इसलिए वक्त को काटा जा रहा है.

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सपा निष्क्रिय, लेकिन अन्य पार्टी निकाय-लोकसभा की तैयारी में

यूपी विधानसभा चुनाव में जीत और हार मिलने के बाद भाजपा,कांग्रेस और बसपा कुछ महीने बाद होने वाले नगर निकाय की तैयारी में जुटे हैं.भाजपा और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं.भाजपा ने मंत्रियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक को जिम्मेदारी बांट दी. यह लोग जिलों में जनता के बीच पहुंच रहे हैं. सरकार की नीतियों और योजनाओं से अवगत कराने में जुटे हैं. मगर,सपा दो महीने गुजरने के बाद भी चुनाव में मिली हार की समीक्षा भी नहीं कर पाई है.जिलों में सपा नेताओं से लेकर संगठन भी निष्क्रिय है.उनको यह उम्मीद तो है कि संगठन भंग होगा. जिसके चलते वह काम नहीं कर पा रहे हैं, तो वही नए नए लोगों जिम्मेदारी न मिलने के कारण खामोश हैं. मगर, सियासी जानकारों का कहना है कि इस फैसले से सपा को बड़ा नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है.

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बढ़ाई सक्रियता, आजम खां से दूरी

कुछ दिन से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सियासी सक्रियता को बढ़ाया है.पिछली बार विधानसभा चुनाव की हार के बाद दो-तीन साल बाद सक्रियता बढ़ाई थी.दो-तीन साल तक कार्यालय तक सीमित रहे थे.मगर, इस बार चुनाव में हार के डेढ़ महीने बाद सक्रिय हो गए हैं. मगर, पार्टी के प्रमुख नेता मुहम्मद आजम खां से दूरी बनाएं हुए हैं.वह उनसे मिलने लखनऊ से 65 किमी दूर स्थित सीतापुर जेल तक नहीं गए हैं. इसको लेकर भी पुराने सपाई सवाल उठा रहे हैं.

रिपोर्ट – मोहम्मद साजिद

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