Sandeep Aur Pinky Faraar Review
फिल्म : संदीप और पिंकी फरार
निर्देशक:दिबाकर बनर्जी
कलाकार: अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा, नीना गुप्ता,रघुवीर यादव और अन्य
रेटिंग : दो स्टार
तीन साल से अधिक समय से रिलीज को तैयार फ़िल्म संदीप और पिंकी फरार आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो ही गयी है. निर्देशक दिबाकर बनर्जी की फिल्में मनोरजंन करने के साथ साथ दर्शकों को शिक्षित करने की भी कोशिश करती है. मूल रूप से यह फ़िल्म बैंकिंग सेक्टर में हो रही लूट की कहानी कह रहा है. जिससे किस तरह से एक आम आदमी की ज़िंदगी प्रभावित होती है. फ़िल्म का प्लॉट दमदार है लेकिन फ़िल्म की कमज़ोर कहानी और उसका स्लो ट्रीटमेंट इसे बेअसर कर गया है.
संदीप (परिणीति चोपड़ा) परिवर्तन नामक बैंक में उच्च पद पर कार्यरत है. उसने अपने बैंक को बचाने के लिए अपने बॉस जो उसका बॉयफ्रेंड भी है. उसके साथ मिलकर एक बड़ा स्कैम किया है. स्कैम में अपना नाम फंसते देख प्रेग्नेंट संदीप सभी को सच्चाई बताने की धमकी देती है जिसके बाद बॉस परिचय संदीप को मारने की सुपारी भ्रष्ट पुलिस वाले त्यागी (जयदीप) को देता है.
त्यागी ये काम सस्पेंड पुलिस वाले पिंकी (अर्जुन कपूर) को दे देता है. मालूम पड़ता है कि इसमें भी एक गेम है. त्यागी संदीप के साथ साथ पिंकी को भी मार देना चाहता है. उसके बाद शुरू होती है लुका छुपी का खेल. क्या पिंकी संदीप और खुद को बचा पाएगा यही आगे की कहानी है. क्या रास्ता वो अपनाएंगे.
फ़िल्म के शीर्षक किरदारों के नाम में ही नहीं कहानी में काफी ट्विस्ट हैं. कौन कब ग्रे है. कब नहीं. यह अनुमान लगा पाना कठिन है. यह सब फर्स्ट हाफ में रोमांचित भी करता है लेकिन सेकेंड हाफ में मालूम पड़ता है कि जो कुछ भी आकर्षित कर रहा था वो खोखला था. फ़िल्म का जो भी सस्पेंस सामने आता है. वो आपको रोमांचित नहीं करता है. फ़िल्म अपने शुरुआत के आधे घंटे बांधे रखती है लेकिन उसके बाद कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती जाती है. बिखरने लगती है।कहानी बहुत अधिक स्लो है जिससे बोझिल वाला मामला बन गया है.
अभिनय की बात करें तो अर्जुन कपूर ने किरदार को लेकर काफी मेहनत की है. अपने बॉडी लैंग्वेज से लेकर अपनी संवाद अदायगी तक, उनकी मेहनत दिखती है. परिणीति ने भी में अपने किरदार के अलग अलग भावों को बखूबी व्यक्त किया है. जयदीप के लिए करने को कुछ खास नहीं था. नीना गुप्ता और रघुवीर यादव अपने किरदार के साथ एक बार फिर रंग भरते नज़र आए हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी उम्दा है. पिथौरागढ़ की खूबसूरती परदे पर खास लगती है. फ़िल्म का गीत संगीत प्रभावित नहीं करता है. फ़िल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं लेकिन कहीं कहीं संवाद सुनाई नहीं पड़ते हैं. कुलमिलाकर संदीप और पिंकी फरार निराश करती है.