बांग्लादेशी घुसपैठियों व रोहिंग्या को पश्चिम बंगाल से निर्वासित करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं संगीता
बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल से निर्वासित करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं संगीता चक्रवर्ती
कोलकाता/नयी दिल्लीः पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों व अवैध रूप से प्रवेश करने वाले रोहिंग्या की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ पर लगाम लगाने व घुसपैठियों को निर्वासित करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को दाखिल जनहित याचिका में केंद्र और राज्य सरकार को एक साल के भीतर पश्चिम बंगाल में अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का पता लगाने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
सामाजिक कार्यकर्ता संगीता चक्रवर्ती द्वारा दाखिल याचिका में केंद्र और राज्यों को उन सरकारी कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों और सुरक्षा बलों की पहचान करने और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई किये जाने का अनुरोध किया है, जिनके ‘घुसपैठ माफिया’ से संबंध हैं. याचिका में ऐसे लोगों की आय से अधिक संपत्तियों को जब्त करने का भी अनुरोध किया गया है.
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है कि लोगों को हुआ नुकसान बहुत बड़ा है, क्योंकि दो करोड़ रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों ने न केवल बंगाल की जनसांख्यिकी को बदल दिया है, बल्कि ये कानून के शासन और आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
याचिका में कहा गया है कि यह किसी धार्मिक समूह से निबटने की बात नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की पहचान करने की बात है, जिन्होंने अवैध रूप से सीमा पार की और बंगाल में रहना जारी रखा और यह कानून तथा संविधान के खिलाफ है.
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बंगाल में 2 करोड़ बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये
याचिका में कहा गया है कि घुसपैठियों की संख्या पांच करोड़ तक पहुंच गयी है और वे देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं. दो करोड़ रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठिये सिर्फ बंगाल में हैं. संविधान के अनुच्छेद 19 का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया है कि ‘भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार’ के साथ-साथ ‘भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार’ केवल भारत के नागरिकों के लिए उपलब्ध है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) में स्पष्ट है.
Posted By: Mithilesh Jha