Sankashti Chaturthi 2021: इस दिन है साल का आखिरी संकष्टी चतुर्थी, बन रहें हैं विशेष योग
Sankashti Chaturthi Vrat 2021: इस बार पौष माह में 22 दिसंबर के दिन चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. संकष्टी चतुर्थी का व्रत इस साल का आखिरी व्रत है.
Sankashti Chaturthi 2021: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद पौष माह की शुरुआत हो गई है. पौष माह की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. संकष्टी चतुर्थी भगवान श्री गणेश जी (Lord Ganesha Puja) को समर्पित बहुत पुण्य से भरा दिन होता है. इस बार पौष माह में 22 दिसंबर के दिन चतुर्थी का व्रत (Chaturthi Vrat) रखा जाएगा. संकष्टी चतुर्थी का व्रत (Sankashti Chaturthi Vrat 2021) इस साल का आखिरी व्रत है.
Sankashti Chaturthi 2021 : संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त
चतुर्थी तिथि- 22 दिसंबर 2021, बुधवार
पूजा मुहूर्त- रात्रि 08 बजकर 15 मिनट से, रात्रि 09 बजकर 15 मिनट तक (अमृत काल)
चंद्र दर्शन मुहूर्त- रात्रि 08 बजकर 30 मिनट से, रात्रि 09 बजकर 30 मिनट तक
Sankashti Chaturthi 2021 : संकष्टी चतुर्थी 2021 के दिन चंद्रोदय समय
22 दिसंबर को होने वाली संकष्टी चतुर्थी में चंद्रमा रात 08:12 बजे उदय होगा. इन दिन चंद्र देव का दर्शन करना बहुत ही पुनीत माना जाता है. कहते हैं कि बिना चंद्र दर्शन के ये व्रत अधूरा रहता है. इस दिन चंद्रमाको जल अर्पित करने के बाद ही पारण किया जाता है. संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.
Sankashti Chaturthi 2021: पूजा विधि
संकष्टी चतुर्थी के दिन आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ़ और धुले हुए कपड़े पहनें. कहते हैं कि अगर इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं तो ये बेहद शुभ होता है. इसके बाद गणपति की पूजा कीजिए और इस समय आपको अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए. गणपति को फल और फूल चढ़ाएं. पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धूप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें.
पूरे दिन भगवान को याद करते हुए व्रत रखें और फिर शाम के समय चांद के निकलने से पहले गणेश जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें, फिर चंद्रमा को जल समर्पित करके व्रत को पूरा करें.
Sankashti Chaturthi 2021: इस मंत्र का करें जाप
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।