Santaan Prapti ke Jyotish Upay: संतान प्राप्ति के लिए व्यक्ति क्या-क्या नहीं करता है. लेकिन फिर भी संतान का सुख भोगने में नाकाम रहते हैं. कुंडली में संतान योग एक ऐसा योग है जो ग्रहों द्वारा निर्मित होता है और प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में उसको एक अच्छी और संस्कारी संतान की प्राप्ति हो. कुछ लोगों की तो यह इच्छा समय रहते पूरी हो जाती है और कुछ को पूरे जीवन इंतजार करना पड़ता है तथा कुछ लोगों को विलंब से संतान की प्राप्ति होती है. यह सब कुछ कुंडली में बनने वाले संतान योग पर निर्भर करता है कि आपकी संतान कब, कैसे और किस समय पर हो सकती है.
ऐसे में एस्ट्रोलॉजर संजीत कुमार मिश्रा जी से जानिए क्या आपकी किस्मत में है संतान का सुख साथ ही जानिए संतान सुख पाने के लिए क्या करें और व्यक्ति को कब नहीं मिलता है संतान का सुख. कुंडली में ग्रह जनित कुछ विशेष स्थितियां होती हैं, जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार के योग कुंडली में निर्मित हो रहे हैं.
(1)जन्म कुंडली का पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा मित्र राशि में हो कर यदि जन्म कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से युक्त ना हो तो उत्तम संतान सुख मिलता है.
(2)जन्म कुंडली में बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो और कुंडली का पंचमेश भी मजबूत अवस्था में हो तथा ये दोनों एक दूसरे को देखते हों या एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाएं तो संतान सुख की प्राप्ति होती है.
(3)यदि कुंडली के पंचम भाव में शुभ ग्रह विराजमान हो अथवा पंचम भाव का स्वामी वर्गोत्तम हो या पंचम भाव में ही विराजमान हो अथवा पूर्ण दृष्टि से पंचम भाव को देखता हो तो संतान सुख मिलता है.
(4)यदि स्वराशि के बृहस्पति अथवा शुभ अंशों के बृहस्पति नवम भाव में बैठकर पंचम भाव को दृष्टि देते हो और पंचम भाव का स्वामी अच्छी अवस्था में हो तो संतान सुख की प्राप्ति की संभावना अधिक होती है. यदि कुंडली का लग्न और पंचम भाव गुरु और शुक्र के वर्गों में स्थित हो और शुक्र और चंद्रमा से युक्त हो तो अच्छी संतान का सुख मिलता है.
(5)यदि कुंडली में पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो अथवा श्रापित दोष से युक्त हो या फिर पितृदोष से युक्त हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है.
यदि पंचम भाव में सूर्य देव वृषभ राशि, सिंह राशि, कन्या राशि और वृश्चिक राशि में स्थित हों तथा कुंडली के अष्टम भाव में शनि देव विराजमान हों और लग्न में मंगल विराजित हो तो संतान सुख में विलंब हो सकता है.
(6)यदि पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि हो अथवा राहु का प्रभाव हो तो संतान सुख में विलंब और कष्ट हो सकता है.
(7)यदि कुंडली के सप्तम भाव में लग्न भाव का स्वामी और नवम भाव का स्वामी युति करें तो संतान सुख की प्राप्ति होती है.
यदि कुंडली के एकादश भाव में बुध, शुक्र अथवा बली चंद्रमा शुभ स्थिति में हो और वह पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखें तो उत्तम संतान सुख होता है.
(8)यदि कुंडली के पंचम भाव में केतु विराजमान हो तो भी संतान सुख मिल सकता है.
(9)यदि कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति अथवा शुक्र ग्रह पंचमेश के साथ विराजमान हों तो अच्छी संतान मिलती है.
(10)उपरोक्त ग्रहों की स्थिति के अतिरिक्त कुंडली में अच्छा शुक्र गर्भधारण में मदद करता है तो वहीं शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा का धर्म देव गुरु बृहस्पति निभाते हैं और इसलिए देव गुरु बृहस्पति का लग्न अथवा भाग्य स्थान में बैठना अत्यंत शुभ परिणाम प्रदान करता है.
(11)बृहस्पति के अतिरिक्त यदि शुक्र ग्रह भी पंचम भाव में विराजमान हो या पंचम भाव से संबंध बना रहे हों तो उनकी दशा भी संतान प्राप्ति में उत्तम परिणाम प्रदान करती है.
(12)यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव पर मंगल अथवा राहु की दृष्टि पड़ रही हो तो यह दृष्टि संतान को हानि पहुंचाने वाली मानी जाती है और उन ग्रहों की दशा आने पर संतान को समस्या होने की स्थिति बनती है.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594 /9545290847