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Santhal Painting : झारखंडी चित्रकार चुना राम हेम्ब्रम की दिल्ली में सोलो प्रदर्शनी आयोजित, संताली संस्कृति का दर्शन कराती है पेंटिंग्स

Santhal Painting : प्रदर्शनी को नाम दिया गया गया है लोबान. यह चित्रकार के बचपन का नाम है. प्रदर्शनी का आयोजन गैलरी RPR लाडो सराय ने किया है.

Santhal Painting : मेरी रुचि चित्रकारी में बचपन से ही थी. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब पेंटिंग करने लगा और वो लोगों को पसंद भी आने लगी. हां इतना मुझे याद है कि जब मैं पहले दिन स्कूल गया था और मेरे टीचर ने मुझे स्लेट पर ‘अ’ लिखकर दिया था और कहा था कि इसे ठीक से लिखना सीखो और फिर मुझे लिखकर दिखाओ, तो मैंने उसे मिटाकर एक इंसान की तस्वीर बनाकर उन्हें दिखाई थी. यह कहना है झारखंड के प्रसिद्ध चित्रकार चुना राम हेम्ब्रम का.

झारखंड से जुड़ा है पेंटिंग का थीम

चुना राम हेम्ब्रम की चित्र प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली में किया गया है. खास बात यह है कि वे किसी झारखंडी कलाकार की सोलो प्रदर्शनी पहली बार दिल्ली में लगी है. इस प्रदर्शनी का आयोजन 28 जुलाई से आठ अगस्त तक दिल्ली में किया गया है. प्रदर्शनी का उद्‌घाटन इंडियन क्रिएटिव माइंड पत्रिका के संपादक मनोज त्रिपाठी ने किया. चुना राम हेम्ब्रम ने बताया कि मनोज त्रिपाठी ने उनकी चित्रकारी को देखकर कहा कि इन चित्रों का विषय भले ही झारखंड से जुड़ा हो, लेकिन आपकी तकनीक बिलकुल वेस्टर्न है. यानी कि चित्रकारी और उसके रंग बिलकुल सामयिक हैं.

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प्रदर्शनी का नाम है लोबान

Painting
Paper boat

प्रदर्शनी को नाम दिया गया गया है लोबान. यह चित्रकार के बचपन का नाम है. प्रदर्शनी का आयोजन गैलरी RPR लाडो सराय ने किया है. उद्‌घाटन अवसर पर मनोज त्रिपाठी ने कहा कि देश में आदिवासी समुदाय की संस्कृति की तस्वीर बहुत कम देखने को मिलती है. जब बाहरी लोग उसकी समीक्षा या चित्रण करते हैं तो उसमें आत्मीयता का अभाव रहता है. लेकिन जब उसी समुदाय का कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति का वर्णन करता है तो उस चित्रण में संस्कृति की आत्मा का दर्शन होता है. ऐसा होना एक सौभाग्य की बात है. चुनाराम हेम्ब्रम ने अपनी संस्कृति को राष्ट्रीय पटल पर लाकर संतालों की सोच से लोगों को परिचित कराया है. इस चकाचौंध की दुनिया से उनके लिए अपनी संस्कृति को बचाना भी एक चुनौती है.

नवोदय विद्यालय के शिक्षक थे चुना राम

झारखंड के कला जगत में चुना राम हेम्ब्रम एक जाना पहचाना नाम, जो वास्तविकता के साथ उठा और कल्पनिकता के साथ उड़ान भरी. चुना राम हेम्ब्रम घाटशिला के रहने वाले हैं. उनके गांव का नाम गंधनिया है. वे 1994 में नवोदय विद्यालय में ड्राइंग के शिक्षक बन गए थे और पिछले साल रिटायर हुए हैं. चुना राम अपनी मां को अपनी पहली शिक्षिका मानते हैं, क्योंकि वे घरों में दीवारों पर चित्रकारी करती थीं और वे उसे देखते थे. चुना राम ने पटना से बीएफए ( बैचलर ऑफ फाईन आर्ट्स) की शिक्षा पूरी की और उसके बाद उन्होंने बड़ौदा से मास्टर इन फाइन आर्ट का कोर्स किया. फिलहाल वे रांची के डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में गेस्ट फैक्लिटी हैं.

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