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Sardar Ka Grandson movie review : विषय अलहदा ट्रीटमेंट घिसा पिटा

Sardar Ka Grandson movie review Arjun Kapoor Neena Gupta Kumud Mishra Rakul Preet Singh Soni Razdan John Abraham bud : अर्जुन कपूर और नीना गुप्ता की इस फ़िल्म का विषय बहुत रोचक है. फ़िल्म का विषय जितना रोचक है उसके स्क्रीनप्ले में रोचकता ही गायब है. कहानी में ट्विस्ट एंड टर्न है ही नहीं जो कहानी को रोचक बनाए रख पाए.

Sardar Ka Grandson movie review

फ़िल्म : सरदार ग्रैंडसन

निर्देशक : काशवी नायर

प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

कलाकार : अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, नीना गुप्ता, अदिति राव हैदरी, जॉन अब्राहम, कुमुद मिश्रा, कंवलजीत और अन्य

रेटिंग : डेढ़

अर्जुन कपूर और नीना गुप्ता की इस फ़िल्म का विषय बहुत रोचक है. फ़िल्म का विषय जितना रोचक है उसके स्क्रीनप्ले में रोचकता ही गायब है. कहानी में ट्विस्ट एंड टर्न है ही नहीं जो कहानी को रोचक बनाए रख पाए. रही सही कसर इस फ़िल्म का धीमा नरेशन कर देता है.

अलजजीरा चैनल की एक डॉक्युमेंट्री से प्रभावित इस फ़िल्म की कहानी है. दादी सरदार(नीना गुप्ता)बीमार है, उसे ट्यूमर है. उसकी जिंदगी के कुछ ही समय बचे हैं. उसकी एक ही ख्वाइश है कि वह पाकिस्तान जाकर अपने पुश्तैनी घर को देखना चाहती हैं जिसे उसने और उसके पति गुरशेर(जॉन अब्राहम)ने बहुत प्यार से बसाया था लेकिन विभाजन की त्रासदी उससे ना सिर्फ उसका पति बल्कि मुल्क भी छीन लेती है.

पोते अमरीक (अर्जुन कपूर) को जब मालूम पड़ता है तो वह तय करता है कि वह अपनी दादी की इस आखिरी ख्वाइश को ज़रूर को पूरा करेगा. उसे संरचनात्मक स्थानांतरण के बारे में मालूम होता है. जिसमें बहुत से लोगों ने एक घर को एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट किया है. अमरीक जद्दोजहद करके पाकिस्तान पहुँच जाता है और लाहौर में अपनी दादी का घर भी ढूंढ लेता है लेकिन जब वहां पहुँचता है तो देखता है कि कुछ लोग उस घर को गिराने वाले हैं. इसके बाद क्या होता है वही फ़िल्म की आगे की कहानी है.

फ़िल्म हल्की फुल्की कॉमेडी बनाने की कोशिश है जो आपके दिल को छू पाए लेकिन फ़िल्म में कुछ एक दृश्यों को छोड़ दें तो हंसी मुश्किल से आती है और कहानी में इमोशन भी जो है वो वेरी वेरी फिल्मी टाइप हो गया है, जो दिल से जुड़ ही नहीं पाता हैं. टिपिकल बॉलीवुड वाला पंजाबी परिवार है. दादी शराब पीती है और भी सभी किरदार परिचित से लगते हैं.

सिनेमा का मतलब सिनेमैटिक लिबर्टी है और इसका फ़िल्म में जमकर इस्तेमाल हुआ है. सरदार का घर सात दशकों बाद भी जस का तस है. पाकिस्तान में जिस तरह से अमरीक परेशानी में आता है और फिर कुछ ही मिनटों में उसकी परेशानी खत्म भी हो जाती है. भारत और पाकिस्तान की राजनीति , ब्यूरोक्रेसी पर भी फ़िल्म सरसरी तौर पर ही छू पायी है.

अभिनय की बात करें तो नीना गुप्ता शीर्षक भूमिका में हैं. आमतौर पर उनसे परदे पर जिस जादू की उम्मीद की जाती रही वह जादू इस बार बेअसर नज़र आया है. रही सही कसर उनके प्रोस्थेटिक मेकअप ने कर दी है. अर्जुन कपूर,रकुल प्रीत सिंह सहित बाकी के किरदारों का काम भी औसत ही है हां अदिति राव हैदरी ने दमदार तरीके से परदे पर अपनी उपस्थिति दर्शायी है. वह पूरी तरह से अपने किरदार में रची बसी नज़र आईं हैं. यही बात कुमुद मिश्रा के परफॉरमेंस के लिए भी कही जा सकती है. जॉन अब्राहम कैमियो रोल में नज़र आए हैं.

फ़िल्म के संवाद भी निराश करते हैं. एक संवाद है आपके देश में चायवाले को अंडर एस्टीमेट करते हैं. यह संवाद समझ से परे लगता है. कुलमिलाकर फ़िल्म के विषय में संजीदा दिल को छू लेने वाली कहानी का पूरा दमखम था लेकिन जो परदे पर नज़र आया है वो निराश करता है.

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