सरहुल : धरती और सूर्य की शादी का उत्सव, सरना मां के चरणों में नयी सब्जियां अर्पित कर की गयी पूजा, आज होगा उपवास

Sarhul festival of jharkhand : केंद्रीय आदिवासी सेना के अध्यक्ष शिवा कच्छप ने प्रकृति महापर्व सरहुल की पूजा अर्चना सादगी से की. सरना मां का चरणों में नयी सब्जियां अर्पित की और पूरे देश के लोगों के लिए प्रार्थना की कि लोग कोरोना वायरस की चपेट मे न आयें. सब कुछ कुशल मंगल रहे. उन्होंने लोगों से कहा कि लॉकडाउन का सख्ती से पलान करें. खुद सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित करें.

By Rajneesh Anand | March 27, 2020 12:08 PM
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रांची : केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा है कि प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है. चैत्र शुक्ल पक्ष में सरहुल पूजा के साथ आदिवासी नये साल के आगमन का उत्सव मनाते हैं. आदिवासी आदिकाल से प्रकृति के उपासक रहे हैं. जल, जंगल, जमीन, पहाड़, पर्वत, नदी नाले, धरती, सूरज, आकाश पाताल आदि की पूजा करते हैं. सरहुल को धरती और सूर्य के विवाह के रूप में मनाया जाता है. इस महीने धरती संपूर्ण प्राकृतिक शृंगार में होती है. पेड़ों में नये-नये पत्ते, फल फूल से पूरी धरती हरी भरी और मनमोहक हो जाती है.

उन्होंने बताया कि सरहुल पूजा में आदिवासी समाज के लोग घर-आंगन की साफ-सफाई करते हैं. घरों की लिपाई-पुताई होती है. दीवारों पर चित्र बनाते हैं. उपवास के दिन घर के पुरुष सदस्य जंगलों से सुखवा पत्ता और फूल लाते हैं. केकड़ा व मछली पकड़ते हैं. पूजा पाठ कर केकड़ा को घर के चूल्हे के पास टांग दिया जाता है. धान बुआई के समय केकड़ा को चूर्ण करके उड़द दाल, मडुआ आदि में मिश्रित कर खेत में डाला जाता है. इस तरह बुआई करने से फसल में वृद्धि होती है. सरहुल में आदिवासी अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें सबसे पहले नये फल फूल, जैसे उड़द दाल, कटहल, डहु, फुटकल आदि सात या नौ प्रकार की सब्जी चढ़ाते हैं. उसके बाद ही परिवार के लोग अन्न ग्रहण करते हैं. गांव के पहान सरना स्थल में सुखवा के पेड़ के समक्ष पूजा पाठ कर रंगुवा, चरका, लुपुंग मुर्गे की बलि देकर गांव की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. पहान द्वारा सरना स्थलों में दो घड़े में पानी रखकर मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है. पूजा के बाद गांव मौजा के लोग सामूहिक रूप से ढोल, नगाड़े, मांदर बजाकर नाचते गाते और उत्सव मनाते हैं.

सादगी से की सरहुल की पूजा नयी सब्जियां अर्पित की : केंद्रीय आदिवासी सेना के अध्यक्ष शिवा कच्छप ने प्रकृति महापर्व सरहुल की पूजा अर्चना सादगी से की. सरना मां का चरणों में नयी सब्जियां अर्पित की और पूरे देश के लोगों के लिए प्रार्थना की कि लोग कोरोना वायरस की चपेट मे न आयें. सब कुछ कुशल मंगल रहे. उन्होंने लोगों से कहा कि लॉकडाउन का सख्ती से पलान करें. खुद सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित करें.

सफेद झंडे को पुनर्स्थापित करने की जरूरत : झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति धुर्वा के अध्यक्ष मेघा उरांव, उप सचिव बिरसा भगत व संरक्षक जयमंत्री उरांव ने कहा है कि हमें अपने पूर्वजों का इतिहास और पहचान को नहीं भूलना चाहिए. उरांव समाज को रोहतासगढ़ का इतिहास नहीं भूलना चाहिए. सफेद झंडा हमारे पूर्वजों की देन है, जो शांति और शुद्धता का प्रतीक है. इसे लोग भूलते जा रहे हैं. हम इसे फिर से सरना स्थलों में, अपने-अपने घरों में स्थापित कर पुनर्स्थापित कर रहे हैं. रांची के पश्चिमी क्षेत्र गुमला, लोहरदगा आदि जगहों के पुराने इलाकों के पूजा स्थलों में और घरों में सफेद झंडा ही पाया जाता है. यह समिति शुरू से अपने पूर्वजों की पूजा पद्धति, परंपरा, संस्कार और संस्कृति की रक्षा और सुरक्षा की बात करती है.

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