वाराणसी के ‘सर्व सेवा भवन’ को नहीं मिली हाईकोर्ट से राहत, ध्वस्तीकरण के आदेश पर रोक लगाने से किया इनकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के मुताबिक, सर्व सेवा भवन, महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण और विनोभा भावे की विरासत है. इसे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित किया गया था.
Prayagraj : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के सर्व सेवा भवन के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ किसी तरह की राहत से सोमवार को इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को निचली अदालत में इस मामले से संबद्ध लंबित वाद में अपनी शिकायत रखनी चाहिए. ये याचिका अखिल भारत सर्व सेवा संघ संगठन के द्वारा दायर की गई थी. जिसमें 27 जून को उत्तर रेलवे प्रशासन द्वारा ध्वस्तीकरण के नोटिस पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था.
अखिल भारत सर्व सेवा संघ संगठन द्वारा दायर इस रिट याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर विचार करते हुए हम इस रिट याचिका को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं. याचिकाकर्ता के पास निचली अदालत में लंबित मूल वाद में यह आवेदन दाखिल करने का विकल्प खुला है.
कोर्ट ने किया आदेश देने से इनकार
अखिल भारत सर्व सेवा संघ ने अदालत से जिलाधिकारी, वाराणसी द्वारा 26 जून, 2023 को पारित आदेश और 27 जून, 2023 को उत्तर रेलवे प्रशासन द्वारा जारी ध्वस्तीकरण का नोटिस रद्द करने का अनुरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले पर आदेश देने से इनकार कर दिया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, 1948 में स्थापित सर्व सेवा भवन, महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण और विनोभा भावे की विरासत है.
इसे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित किया गया था. महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए वाराणसी के राजघाट में सर्व सेवा संघ के भवन का निर्माण विनोबा भावे की देखरेख में किया गया था. हालांकि, बाद में जिस जमीन पर यह भवन स्थित है, उसकी मिल्कियत को लेकर याचिकाकर्ता और उत्तर रेलवे के बीच विवाद पैदा हो गया. वाराणसी के जिलाधिकारी ने भी यह कहते हुए उत्तर रेलवे के पक्ष में निर्णय किया कि जिस जमीन पर भवन स्थित है वह उत्तर रेलवे का है, इसलिए ध्वस्तीकरण का आदेश उत्तर रेलवे द्वारा पारित किया गया.