Sarva Pitru Amavasya 2022: अपने वंशजों पर कृपा करने और उनकी श्रद्धा पाने धरती पर आते हैं पितर

Sarva Pitru Amavasya 2022: पितरों के आशीर्वाद से ही हमारे जीवन में खुशहाली आती है. चूंकि आश्विन कृष्ण पक्ष में हमारे समस्त पितर यमलोक छोड़ सूक्ष्म रूप से अपने वंशजों पर कृपा करने और उनकी श्रद्धा पाने धरती पर आते हैं, इसलिए इस पक्ष को पितृपक्ष, प्रेतपक्ष व महालय, महालया भी कहा गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2022 7:12 AM
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Sarva Pitru Amavasya 2022: पौराणिक कथा के अनुसार, जब दिव्य ज्ञान-संपन्न देवता ब्रह्माजी के मन के विपरीत आचरण करने लगे तो उन्हें ज्ञानशून्य होने का शाप दे दिया. बाद में उनके अनुनय-विनय पर उन्होंने कहा कि तुम लोग जाकर अपने पुत्रों से शिक्षा ले प्रायश्चित्त करो. वे देवपुत्र ऋषियों के पास गये. उन्होंने पुत्र कह कर देवताओं को संबोधित किया, तो वे सब सोच में पड़ गये कि ये हमारे पुत्र हैं और हमें ही पुत्र कह रहे हैं. जब वे ब्रह्माजी के पास गये, तो अपना संशय भी रखा. विधाता ने बताया कि आप सब उनके जन्मदाता पिता हैं, जबकि वे आपलोगों के ज्ञानदाता पिता हैं. अज्ञानी व विद्यार्थी ज्ञानी व गुरु का पुत्र ही होता है, इसलिए आप सब परस्पर एक-दूसरे के पितर हैं.

पितरों के आशीर्वाद से ही हमारे जीवन में खुशहाली आती है

वस्तुत: देवताओं में दिव्यताएं अधिक हैं और पितरों में सीमित. फिर भी दोनों हमारी कामनाएं सिद्ध करनेवाले हैं. इसलिए दोनों ही हमारे लिए आराध्य हैं. पितरों के आशीर्वाद से ही हमारे जीवन में खुशहाली आती है और संसार छोड़ने पर नरक नहीं, स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति होती है.
चूंकि आश्विन कृष्ण पक्ष में हमारे समस्त पितर यमलोक छोड़ सूक्ष्म रूप से अपने वंशजों पर कृपा करने और उनकी श्रद्धा पाने धरती पर आते हैं, इसलिए इस पक्ष को पितृपक्ष, प्रेतपक्ष व महालय, महालया भी कहा गया है.

पार्वण श्राद्ध अवश्य करना चाहिए

यों तो पूरे पख में ही नित्य तर्पण का विधान है, परंतु किसी कारणवशी संभव न हो तो एक दिन भी तर्पण और पार्वण श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. इससे उन्हें परम तृप्ति होती है.
कहा भी गया है –
यो वै श्राद्धं नर: कुर्यात् एकस्मिन्नेव वासरे।
तस्य संवत्सरं यावत् संतृप्ता: पितरो ध्रुवम्।।
दूसरी ओर, मान्यता है कि इस समय बिना किसी कारण पितृपक्ष न करना, उन्हें निराश करनेवाला है. उन्हीं के बीज के हम वृक्ष हैं, अत: उन्हें निराशा नहीं देनी चाहिए. यही तो अपनी नींव के प्रति कृतज्ञता है हमारी.

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– मार्कण्डेय शारदेय
ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र विशेषज्ञ

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