Sawan 2022: शिव को प्रिय है बिल्व पत्र, पौराणिक कथाओं के अनुसार कुछ ऐसी है बेल वृक्ष के उत्पत्ति की कहानी

Sawan 2022: सावन का पवित्र महीना चल रहा है. आज, 25 जुलाई को सावन की दूसरी सोमवारी है. मान्यता के अनुसार भगवान शिव को तीन पत्तियों वाले बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं. स्कंदपुराण में बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में अत्यंत रोचक कथा है. जानें..

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 25, 2022 6:42 AM

Sawan 2022: भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं. भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं. सावन मास बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है. तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं. सावन का पवित्र महीना चल चला है आज यानी 25 जुलाई को सावन 2022 की दूसरी सोमवारी है. इस शुभ दिन पर पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यता के अनुसार जान लें कैसे हुई बेल वृक्ष की उत्पत्ति, बेलपत्र तोड़ते समय कौन से मंत्र बोलने चाहिए और कब बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए.

देवी पार्वती के पसीने की बूंद से उत्पन्न हुआ बेल वृक्ष

बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ. इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है.

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र

बिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए. पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-

अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा.

गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥

अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है. भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं.

बिल्व-पत्र कब न तोड़ें ?

बेल की पत्तियां कब न तोड़ें

विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है. शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-

सोमवार के दिन चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को. संक्रांति के पर्व पर.

अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे .

बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥

(लिंगपुराण)

अर्थ

अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594/9545290847

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