Sawan First Somvar 2023 Vrat Katha: सावन के पहले सोमवार को ऐसे पढ़ें व्रत कथा, पढ़ें सरल विधि

Sawan First Somvar 2023 Vrat Katha: सावन के दौरान सोमवार को उपवास करना महत्वपूर्ण है.ऐसा माना जाता है कि अपने व्रत को फलदायी बनाने के लिए सोमवार के दिन भगवान शिव की कथा का पाठ करना और सुनना वास्तव में महत्वपूर्ण है.

By Shaurya Punj | July 10, 2023 9:04 AM

Sawan First Somvar 2023 Vrat Katha: सावन का पहला सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) आज 10 जुलाई को है. सावन (Sawan 2022) का सोमवार व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए उत्तम माना जाता है. जो लोग सालभर सोमवार व्रत रखना चाहते हैं, सावन सोमवार व्रत से इसका प्रारंभ कर सकते हैं. हिंदू मान्यताओं में उपवास का बड़ा धार्मिक महत्व है.हर देवता को समर्पित एक कथा है, जिसे पढ़े बिना उपवास का महत्व समाप्त हो जाता है.सोमवार भगवान शिव को समर्पित है और इस प्रकार, सावन के दौरान सोमवार को उपवास करना महत्वपूर्ण है.ऐसा माना जाता है कि अपने व्रत को फलदायी बनाने के लिए सोमवार के दिन भगवान शिव की कथा का पाठ करना और सुनना वास्तव में महत्वपूर्ण है.

ये है व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक नगर में एक साहूकार रहता था. वो महादेव का अनन्य भक्त था. नगर में सभी लोग उसका सम्मान करते थे. उसके जीवन में सारे सुख थे, लेकिन कोई संतान नहीं थी, इस कारण वो काफी दुखी रहता था. पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वह व्यापारी हर सोमवार भगवान शिव की विशेष पूजा किया करता था. उसका समर्पण और ईश्वर के प्रति विश्वास देखकर एक बार माता पार्वती ने शिव जी से कहा कि ‘हे प्राणनाथ, ये साहूकार आपका सच्चा भक्त है. हर सोमवार पूरी श्रद्धा के साथ आपका व्रत रखता है व पूजन करता है, तो आप इसकी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते.’ तब शिव जी ने कहा कि इसकी किस्मत में कोई संतान नहीं है, इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता.

ऐसे में माता पार्वती ने शिव जी से विनती की कि वो किसी भी तरह साहूकार को संतान दे दें. तब शिव जी साहूकार को संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि ये पुत्र केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा. कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हो गई और उसके एक पुत्र पैदा हुआ. लेकिन साहूकार पुत्र होने के बाद भी बहुत खुश नहीं हुआ, क्योंकि वो जानता था कि उसका पुत्र सिर्फ 12 साल तक ही जीवित रहेगा. लेकिन उसने इसके बारे में किसी को नहीं बताया.

जब बालक की आयु 11 वर्ष की हो गई तो साहूकार की पत्नी ने साहूकार से बालक का विवाह करने के लिए कहा. लेकिन साहूकार ने कहा कि वो अभी उसे पढ़ने के लिए काशी भेजेगा. इसके बाद साहूकार ने बालक को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया. जाते समय कहा कि काशी के रास्ते में जिस भी स्थान पर रुकना, वहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना. मामा और भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था. जिस राजकुमार से राजकुमारी का विवाह होना था, वो एक आंख से काना था. उसके पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उनके मन में आया कि क्यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर शादी के सारे कार्य संपन्न करा लिए जाएं. उन्होंने इसके लिए साहूकार के बेटे के मामा से बात की तो वो इसके लिए राजी हो गए.

साहूकार का बेटा विवाह की बेदी पर बैठा और जब विवाह कार्य संपन्न हो गए तो जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुंदरी के पल्ले पर लिखा कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है, लेकिन ये जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वो एक आंख का काना है. इसके बाद साहूकार का बेटा मामा के साथ काशी के लिए चला गया. राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर जब वो लिखा हुआ देखा तो राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया. बारात वापस लौट गई और मामा और भांजा भी उधर काशी पहुंच गया.

एक दिन जब मामा ने यज्ञ रखा था, तो भांजे को अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी और वो कमरे से बाहर नहीं आया. मामा ने कमरे के अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे. लेकिन मामा ने ये बात किसी को नहीं बताई और यज्ञ का सारा काम समाप्त किया और ब्राह्मणों को भोजन कराया. इसके बाद रोना-पीटना शुरू किया. उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तभी उन्हें पता कि ये तो साहूकार का वही बेटा है, जिसकी आयु 12 वर्ष तक ही थी.

तब माता पार्वती ने शिव जी से साहूकार के बेटे को जीवनदान देने के लिए कहा. महादेव ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका है. लेकिन माता पार्वती नहीं मानीं और बार बार आग्रह करती रहीं. तब शिव जी ने उसे जीवित कर दिया. इसके बाद मामा-भांजे दोनों अपनी नगरी की ओर लौटे. रास्ते में वही नगर पड़ा, जहां साहूकार के बेटे का विवाह हुआ था. वहां पहुंचकर दोनों की खूब खातिरदारी हुई. राजकुमारी के पिता ने अपनी कन्या को साहूकार के बेटे के साथ खूब सारा धन देकर विदा किया.

उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर बैठे थे. उन्होंने सोचा था कि अगर उनका पुत्र वापस नहीं लौटा तो वो छत से कूदकर प्राण दे देंगे. तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया. लेकिन वे नहीं मानें तो मामा ने शपथ पूर्वक कहा. इसके बाद साहूकार और उसकी पत्नी बेहद खुश हुए और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्वागत किया और शिव जी को धन्यवाद दिया. इसके बाद रात में शिव जी साहूकार के स्वप्न में आए और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ हूं. आज के बाद जो भी सोमवार की इस कथा को पढ़ेगा, उसकी मनोवांछित कामना जरूर पूरी होगी और सारे दुख दूर हो जाएंगे.

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