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Prabhat Special: सावन में ये पूजन सामग्री चढ़ाने से भगवान शिव होते हैं प्रसन्न, लेकिन भूल से भी न चढ़ाएं चीजें

इस माह में श्रद्धालु शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव स्रोत का पाठ और जलाभिषेक करते हैं, ताकि बाबा प्रसन्न हों. शिवजी को कुछ चीजें विशेष प्रिय हैं, जिन्हें अर्पित करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं.

सावन भगवान शिव की पूजा व उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे उत्तम महीना माना गया है. मान्यता है कि इस माह में विधि-विधान व पूरी भक्ति से महादेव की आराधना विशेष फलदायक होती है. इस माह में श्रद्धालु शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव स्रोत का पाठ और जलाभिषेक करते हैं, ताकि बाबा प्रसन्न हों. शिवजी को कुछ चीजें विशेष प्रिय हैं, जिन्हें अर्पित करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं.

जल

शिव पर जल चढ़ाने की मान्यता भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है. समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, पर विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया. विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया. इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है.

लाभ :

शिवजी पर एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं जल्द पूरी करते हैं. महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अच्छा उपाय है. कई गंभीर बीमारियों, संकटों व रुकावटों को दूर करने में ये असर करता है.

बिल्वपत्र

शिवपुराण में बिल्वपत्र को भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक माना गया है. अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिवजी को अत्यंत प्रिय है. महादेव की पूजा में अभिषेक और बिल्वपत्र का प्रमुख स्थान है. ऐसी मान्यता है कि भोलेशंकर को बिल्वपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल प्राप्त होता है. इसके अलावा यह भगवान के अस्त्र त्रिशूल का भी प्रतिनिधित्व करता है.

लाभ :

मान्यता है कि सावन महीने में बिल्वपत्र से पूजा करने वाले भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है. साथ ही बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से वे काफी प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा बिल्व वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से ज्ञान की प्राप्ति होती है.

धतूरा

भगवान शिव को धतूरा भी अत्यंत प्रिय है. पुराणों में जहां धार्मिक इसके पीछे कारण बताया गया है, वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है. भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं. यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है, जहां ऐसे आहार और औषधि की जरूरत पड़ती है, जो शरीर को गर्मी प्रदान करे. वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाये, तो औषधि का काम करता है. वहीं, देवी भागवत पुराण में इसके धार्मिक महत्व को रेखांिकत किया गया है. इस पुराण के अनुसार, शिव जी ने जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया, तब वह व्याकुल होने लगे. तब देवताओं ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिवजी की व्याकुलता दूर की. उस समय से ही शिवजी को धतूरा प्रिय है.

लाभ : घर में सुख-शांति बनाये रखने के लिए या फिर धन में वृद्धि के लिए धतूरे की जड़ को रखने से लाभ मिलता है. साथ ही घर में किसी ऊपरी हवा का साया भी नहीं रहता है. इससे घर-परिवार से नकारात्मक ऊर्जा भी कम होती है. धतूरे का पौधा या पत्ता शिवजी पर चढ़ाने से वह प्रसन्न होते हैं.

भस्म

मान्यता है कि शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं. मान्यतानुसार, मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के बाद बची हुई राख में उसके जीवन कोई कण शेष नहीं रहता. ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है. इसलिए वह राख पवित्र है. ऐसी राख को शिवजी अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं. एक कथा यह भी है कि सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया, तो शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया, जिससे सती भस्म के जरिये हमेशा उनके साथ रहें.

लाभ : मान्यता है कि भस्म को यदि कोई इंसान धारण करता है, तो वह सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है. शिवपुराण के अनुसार, ऐसी भस्म धारण करने से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है. समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है. अत: शिवजी को अर्पित की गयी भस्म का तिलक लगाना चाहिए.

चंदन

चंदन का संबंध शीतलता से है. भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं. चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खूशबू से वातावरण और खिल जाता है. यदि शिवजी को चंदन चढ़ाया जाये, तो इससे समाज में मान-सम्मान यश बढ़ता है.

लाभ : शिवलिंग पर चंदन लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि सावन में शिवलिंग पर चंदन लगाकर पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली सारी मुसीबतें खत्म हो जाती हैं. दरअसल, भोलेनाथ को चंदन अत्यंत प्रिय है.

रुद्राक्ष

भगवान भोलेनाथ ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है. एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्षों तक समाधि लगायी. समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं. तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे. उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गये. उन वृक्षों पर जो फल लगे, वे ही रुद्राक्ष हैं.

लाभ : पुराणों में ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के आंसुओं से पैदा हुए रुद्राक्ष में दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की असीम ताकत होती है. इसे ना सिर्फ भगवान शिव को अर्पित किया जाता है, बल्कि इसे धारण भी किया जा सकता है. इसे धारण करने से जीवन की तमाम समस्याओं, बीमारियाें, शोक और भय से मुक्ति मिलती है.

न चढ़ाएं ये पूजन सामग्री, नहीं तो नाराज हो जाएंगे भोलेनाथ

हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं की उपासना के तौर-तरीके अलग-अलग हैं. भगवान शिव की आराधना का भी एक खास नियम है. मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए लोग भगवान भोलेनाथ का ध्यान एवं पूजन करते हैं. लोग शिव जी की पूजा के दौरान शिवलिंग पर पूजन सामग्रियां चढ़ाते हैं. मगर उनको ये नहीं पता होता कि अनजाने में अर्पित की गयी कुछ चीजें शुभ की जगह अशुभ फल दे सकती हैं, जिससे भगवान नाराज हो सकते हैं. इसलिए इसका ख्याल रखना जरूरी है.

हल्दी

कई कई देवी-देवताओं की पूजा में हल्दी का प्रयोग होता है, पर शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाना वर्जित है. चूंकि, हल्दी स्त्रियोचित यानी स्त्री से संबंधित वस्तु होती है. शिवलिंग को पुरुष तत्व का प्रतीक माना जाता है.

तिल

शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय दूध व जल में काले तिल डालकर कभी नहीं चढ़ाना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है. इसलिए इसे शिवजी को अर्पित नहीं करना चाहिए.

टूटे चावल

भगवान शिव को हमेशा अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित करें. भूलकर भी टूटा हुआ चावल ना चढ़ाएं, क्योंकि टूटा चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है. इसलिए ये शिव जी को नहीं चढ़ता है.

नारियल पानी

शिवजी की पूजा में नारियल चढ़ा सकते हैं, पर शिवलिंग पर नारियल पानी नहीं चढ़ाना चाहिए. ध्यान रखें कि शिवजी को चढ़ाये गये नारियल को प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए.

तुलसी पत्ता

तुलसी जी की पत्तियों का प्रयोग कभी भी भगवान शिव की पूजा नहीं करना चाहिए. इसके दो कारण हैं. एक ये कि तुलसी के पति असुर जालंधर का वध भगवान शिव ने किया था. इसलिए भगवान शिव को उन्होंने अपने आलौकिक और देवीय गुणों वाले तत्वों से वंचित कर दिया. दूसरा कारण ये है कि भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया है. इसलिए भी शिवलिंग पर तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए.

केतकी के फूल

शिवजी पर कभी भी केतकी के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए. कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के झूठ में जब केतकी ने साथ दिया तो शिव नाराज हो गये और उन्होंने श्राप देते हुए कहा कि उनकी पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जायेगा.

कुमकुम या सिंदूर

सिंदूर या कुमकुम से शिवजी की पूजा ना करें. शिवपुराण में महादेव को विनाशक बताया गया है. कारण यह है कि शिव वैरागी हैं और वैरागी लोग अपने माथे पर राख डालते हैं, कुमकुम नहीं.

शंख जल

महादेव को कभी भी शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए, क्योंकि शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था और शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान विष्णु का भक्त था.

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