लोकगीतों में होते हैं शिव के दर्शन, उनके स्वभाव और प्रवृत्ति का मिलता है साक्षात प्रमाण
भोलेनाथ की भक्ति का सबसे खास महीना है सावन. सावन मास में देवाधिदेव महादेव की आराधना का अपना विशेष महत्व है. कहा जाता है कि सृष्टि के कर्ता-धर्ता स्वयं शिव शंकर हैं. वह तीनों लोक और नव ग्रहों पर अपना आधिपत्य रखते हैं.
प्रेम रंजन सिंह
लोकगायक, आकाशवाणी पटना
लोकगीतों में माटी की सौंधी महक होती है. इन गीतों से मनुष्य के समस्त संस्कार, पर्व-त्योहार, सुख-दुख, हास्य-परिहास, रीति-रिवाज के दिग्दर्शन होते हैं. यह लोक कंठ के धरोहर होते हैं. सामान्य जन में इन गीतों का व्यापक प्रचार-प्रसार है. बिहार के लोकगीतों में मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका और बज्जिका प्रमुख हैं. ये गीत विभिन्न तीज-त्योहार, विभिन्न संस्कारों के आराधना में गाये जाते हैं. इन लोकगीतों का कोई शास्त्र नहीं है, बल्कि आमजनों की हृदयगत अनुभूति के भाव हैं.
लोकगीतों में देवी-देवताओं के गीत खूब प्रचलन में हैं. इन देवी-देवताओं के गीत में लगभग सभी लोकभाषाओं और बोलियों में सबसे ज्यादा गीत महादेव शिव के गाये जाते हैं. शिवजी महाकल्याणकारी हैं. कहते हैं कि वे तो केवल एक लोटा जल से ही खुश हो जाते हैं. जहां वह एक ओर महायोगी हैं, वहीं दूसरी तरफ माता पार्वती से प्रेम-विवाह भी किया है. जब भी किसी जोड़े को आशीर्वाद दिया जाता है, तो उन्हें ‘शिव-पार्वती’ की उपमा से भी सुशोभित किया जाता है.
देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना वैदिक और लौकिक, दोनों विधियों से होती है. भगवान शिव औघड़दानी हैं. उनके गले में सर्प की माला है. तन में भस्म लगाये रहते हैं. नंदी की सवारी करते हैं. बेलपत्र उनको अत्यंत प्रिय है. सहजता और सरलता से रीझने वाले शिव को भांग, धतूरा और बेलपत्र के जरिये ही लुभाया जा सकता है, लेकिन उनकी उपासना करने वाली महिलाओं में उत्सुकता है कि आखिर बेलपत्र में ही वह कौन-सा गुण है कि भोला बाबा उस पर रीझ जाते हैं. वे उन्हीं से इस गीत के माध्यम से पूछती हैं-
बेल के पतिया में कौन गुनवा हो
भोला रहलऽ लुभाय
कोठा अटारी शिव के मनहू न भावे
टुटली मड़ैया में कौन गुनवा हो
भोला रहलऽ लुभाय
मेवा-मिठाई शिव के मनहू न भावे
भंगिया के गोला में कौन गुनवा हो
भोला रहलऽ लुभाय
शाला-दुशाला शिव के मनहू न भावे
मृगा के छाला में कौन गुनवा हो
भोला रहलऽ लुभाय
शिवजी के फक्कड़ी स्वभाव, घुमक्कड़ी प्रवृत्तियों और निहंग होने का जितना प्रमाण लोकगीतों में मिलता है, उतना प्रमाण कहीं मिल पाना मुश्किल है. महादेव शिव के विवाह और उनके अद्भुत बरातियों का वर्णन भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, बज्जिका समेत विभिन्न लोकभाषाओं में खूब देखने को मिलता है. शिवजी के बारात के आगमन के समय का एक मनोहारी गीत, जिसमें उनके अद्भुत सौंदर्य का वर्णन है. गांव की महिलाएं जब दूल्हा के रूप में शिव को देखती हैं, तो पार्वती जी के भाग्य को कोसती और कहती हैं-
बसहा बईल शिव पालकी बनवलन
नाग ही सपवा के मौरी सजवलन
भूत बैताल बरियात
की दूल्हा कमाल कइलन न.
परिछन चललन गउरा के माई हो
दूल्हा के रूप देखी, गइलन घबराई हो
नाग छोड़ले फूं फूंकार
कि नगवे बवाल कइले न.
कइसन नसीब गउरा हमरो के पईलन
पर्वत, पहाड़ शिव धूमियां रमइलन
कइसे रहब शिव के साथ
कि गउरा इ का काम कइल ना.
मैथिली में एक बहुत चर्चित गीत है, जो लोगों की जुबान पर रहता है, जिसमें मैया पार्वती की मां शिवजी के अद्भुत रूप को देखकर चिंतित हो जाती हैं और कहती हैं कि ऐसे वर से शादी करने बेहतर है कि मेरी गौरा कुंवारी रह जाये और मैं जहर खाकर मर जाऊं, लेकिन इस अद्भुत वर से गौरा की शादी न हो-
शिव से गौरी न बियाहब, हम जहरवा खइबे न
लौटे जोन देहिया पर नगवा नगीनिया
भूत बेताल जेकर संगिया संगीनिया
सेकरा जमाई करके कैइसे उतारब
हम जहरवा खइबे न.
बसहा सवार कोई दुल्हा न सूनली
रूप-रंग देखली त डरे आंख मूंदली
बुढ़वा के सौंप गौरी कुइयां में ना डालब
हम जहरवा खइबे न.
शिव शंकर का व्यक्तित्व सभी देवताओं से अलग और विशिष्ट है. वे आशुतोष हैं. वे शीघ्र रीझ जाने वाले देवता हैं. वे शंकर अर्थात् कल्याणकारी हैं. उन्हें सावन मास अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि भोले भंडारी श्रद्धापूर्वक एक लोटा शुद्ध जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. प्रात:काल का समय अत्यंत मनभावन और कष्टों को हरने वाला होता है, लेकिन जैसे-जैसे धूप तेज होती है, कावंरियों की व्याकुलता भी बढ़ जाती है. ऐसे में प्रस्तुत है उनके मनोभावों को चित्रित करता यह गीत-
केता दूर लागे अहां के नगरिया हो
भोलेबाबा भेल दुपहरिया
जलबा हम बोझी-बोझी लइली
कांधे पर कांवर लटकएल चली भइली
अहां के दर्शनिया हो
भोजपुरी क्षेत्रों में कोई त्योहार हो, चाहे संस्कार का मौका हो. उपनयन संस्कार हो, मुंडन हो, या विवाह संस्कार. चाहे वर पक्ष का घर हो या कन्या पक्ष का, शिवजी के इसी गीत के साथ ही कोई शुभ कार्य की शुरुआत होती है-
गाई के गोबरा महादेव अंगना लिपाई
गजमति आहो महादेव चउका पुराई
सुनी ए शिव, शिव के दोहाई
ताहि चऊका बईठले महादेव, गईनी अलसाई
हुदुकनी मारि गउरा देई लिहनीं जगाई
सुनी ए शिव, शिव के दोहाई
हुदुकी के मरले महादेव गइनीं रोसिआई
बहियां लफाई गउरा देई लिहनीं मनाई
सुनी ऐ शिव, शिव के दोहाई.
शिव औघड़दानी हैं. वह भांग की मस्ती में मगन रहते हैं. गले में सर्प फूंफकार मारते रहता है. नंदी बैल की सवारी करते हैं. डमरू बजाते हैं. एक भक्त शिवजी को भांग-धतूरा चढ़ाती है और भोले बाबा को मनाती है. यह गीत भोजपुरी क्षेत्रों में खूब लोकप्रिय है-
खोली ना ई मातल हो नयनवा शिवशंकर दानी
भांग भरपूर बाटे टटका धतुर बाटे
खाड़ बानी कबसे अगवा रही रही लपके नगवा
डरे मोरा कांपेला परनवा शिव शंकर दानी
कई लिंहि रउआ जलपनवा शिवशंकरदानी
बोले ला नन्दी बैला देरी भईले पहिर भईला
सेवकन के दीही दर्शनवा शिव शंकर दानी
कमर ई फेकाइल बाटे जटा अझुराइल बाटे
सुर नर करेले भजनवा शिव शंकर दानी
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता और दानव ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिससे हलाहल विष निकला. विष के प्रभाव से पूरी सृष्टि में हलचल मच गयी. ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए शिवजी विष को अपने कंठ में उतार लिए और ‘नीलकंठ’ बन गये. इसका भी मनोहारी वर्णन लोकगीतों में देखने को मिलता है-
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही,
पुरी कचौड़ी से शिव के मनहू ना भावे
भांग धतूरा कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही
शाला दुशाला शिव मन हू ना भावे
मृगा के छाल कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही
कोठा अटारी शिव के मनहू ना भावे
टुटली मडइया कहा पाइब हो शिव मानत नाही.
एक लोकगीत में वर मांगने के संबंध में सीता, राधा व पार्वती की चर्चा है. सीता बेला-चमेली के और राधा चंपा के फूल चुनती हैं, पर शिवजी को पाने के लिए गौरा बेलपत्र-धतूरा तोड़ती हैं और इससे उनको मांगती हैं-
सीता लोढ़े बेला, राधिका लोढ़े चंपा
गौरी चुने बेल पाती-धतूरा संग लिये सखिया
सीता मांगे रामचंद्र, राधा मांगे कान्हा
गौरा मांगे औघरनिया, संग लिये सखिया.
शिव और पार्वती अपने पारिवारिक जीवन में साधारण लोक की ही तरह जुड़े हैं. एक लोकगीत में दिखाया गया है कि एक सामान्य अभावग्रस्त गृहिणी की तरह गौरा परेशान हैं. सामान्य दंपती की भांति वे आपस में रूठते हैं और एक-दूसरे को मनाते भी हैं-
गले रुदर माला, कमर मृगछाला, डम-डम डमरू बजाय
तोरबौं महादेव डमरू रुदरमाला, टूक-टूक करौं मिरगाछाल
जोड़बौं महादेव डमरू और रुद्रमाला टूक-टूक जोरौं मृगछाल
फोरबौं कमंडल, फोरबौं लंगोटिया, कुंचि देबौं संपवा के मुंह
जोरबौं कमंडल जोरबौं लंगोटिया, जोड़ि देबौं संपवा के मुंह
शिव-पार्वती की पूजा में किसी धन की जरूरत नहीं पड़ती. लोक में मिट्टी व बालू के शिव-पार्वती बन जाते हैं. अच्छत, फूल, बेलपत्र, भांग-धतूरा यानि प्रकृति में ही उनकी भोग की वस्तुएं हैं. उनकी पूजा के लिए कोई मंत्र की जरूरत नहीं. बस चुटकी बजा हर-हर महादेव का जयकारा लगा दिया, बस इतने में ही वे खुश हो जाते हैं. एक मैथिली लोकगीत में इसका भाव देखने को मिलता है-
पूजा के हेतु शंकर आयल ही हम चुन्नरी
गाबइ ही हम नचारी
जानी न मंत्र जप-तप पूजा के विधि नै जानी
तइयो हमर मनोरथ पूरा करू हे दानी
चुप मए किए बइसल छी खोलू ने कने केबारी
आयल छी हम पुजारी
बाबा अहां के महिमा बच्चे से हम जनइ छी
दुख की कहब अहां के सबहा अहां जनै छी
दर्शन दिअ ए दिगंबर दर्शन केर हम भिखारी
आयल छी हम पुजारी
इस तरह शिव देवताओं के आदिगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं. वे एक मात्र देवता हैं, जो लोक एवं वेद, दोनों में पूजे जाते हैं और इनकी इस छटा का दिग्दर्शन लोकगीतों में देखने को मिलता है.
मैथिली गीत
सभहक दुख अहां हरै छी भोला
हमरा किये बिसरै छी यौ
हमहूं सेवक अहीं के भोला
कोनो विधि निमहै छी यौ
कपारो फूटल, बेमायो फाटल
किंतु हम चलै छी यौ
द्वारे ठाढ़ अहांके हमहूं
पापी जानि टारै छी यौ
हमहूं सेवक अहीं के भोला
कोनो विधि निमहै छी यौ
सेवक अहांक पुकारि रहल अछि
दूर झारखंड बैसल छी यौ
आबो कृपा करू प्रभु हमरा पर
दुखिया देखि भुलै छी यौ
हमहूं सेवक अहीं के भोला
कोनो विधि निमहै छी यौ
त्रिभुवन नाथ दिगंबर भोला
सभटा अहां जनै छी यौ
सभहक दुख अहां हरै छी भोला
हमरा किये बिसरै छी यौ
हमहूं सेवक अहीं के भोला
कोनो विधि निमहै छी यौ.
केतक दिनमा हो, केतक दिनमा हो, कतेक दिनमा
शिव हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
माटी के कोड़ि कोड़ि बनायल महादेव
सुख के कारण शिव पूजत महेश, हो कतेक दिनमा
बाबा हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
काशी में ताकल, ताकल प्रयाग
ओतहि सुनल शिव गेला कैलाश, केतक दिनमा
बाबा हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
सबहक बेर शिव लिखि पढि देल
हमरहि बेर कलम टुटि गेल हे, कतेक दिनमा
बाबा हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
भनहि विद्यापति सुनू हे महेश
दरिद्रहरण करू मेटत कलेश, कतेक दिनमा
बाबा हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
शिव हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा
भोजपुरी गीत
जटा जूट बरवा लहरे गंगा के लहरवा
हो राम जहरवा पियल ना
सोहे चंद्रमा लिलरवा हो राम
जहरवा पियल ना
गरवा में लटके अजगरवा विषधरवा
हो राम जहरवा पियल ना
लिहल मोरिये जहरवा
हो राम जहरवा पियल ना
घरवा ना दुअरवा ना बड़का
बाटे एगो बरवा
हो राम जहरवा पियल ना
भस्म गतरे गरतवा हो राम
जहरवा पियल ना
एक वन महरतवा फूल
धतूरे के फरवा हो राम
जहरवा पियल ना
लहरी लेल बेल पतरवा
हो राम जहरवा पियल ना
भोला के देखेला बेकल भइले जियरा
के चढ़ावे आछत चंदन, के बेल पतिया
के चढ़ावे आहो भोला धतूरा के पतिया
भोला के देखेला बेकल भइले जियरा
पंडित चढ़ावे पान फूल, पुजारिन बेलपतियां
हम चढ़ाइब आहो भोला, धतूरा के पतिया
भोला के देखेला बेकल भइले जियरा
के मांगे अन्न धन, के मांगे नेहिया
के मांगे आहो भोला दर्शन देबह कहिया
भोला के देखेला, बेकल भइले जियरा
पंडित मांगे अन्न-धन, पुजारिन मांगे नेहिया
हम मांगी आहो भोला, दर्शन देबह कहिया
भोला के देखेला, बेकल भइले जियरा