फ़िल्म -सेल्फी
निर्माता -धर्मा प्रोडक्शन
निर्देशक -राज मेहता
कलाकार -अक्षय कुमार, इमरान हाशमी, नुसरत बरुचा, डायना पैंटी, अभिमन्यु सिंह और अन्य
रेटिंग -तीन
पिछले हफ्ते साउथ की हिंदी रीमेक फ़िल्म शहजादा के बाद इस शुक्रवार टिकट खिड़की पर रिलीज हुई फ़िल्म सेल्फी (Film Selfiee) भी साउथ की फ़िल्म ड्राइविंग लाइसेंस का हिंदी रिमेक हैं. निर्देशक राज मेहता ने ओरिजिनल फ़िल्म से इसे ज्यादा कमर्शियल बनाया है. फ़िल्म के किरदार ओरिजिनल के मुकाबले थोड़े कमज़ोर भी रह गए हैं, जिससे यह लंबे समय तक याद रखने वाली फ़िल्म भले ही ना बन पायी हूं, लेकिन फ़िल्म मनोरंजन पूरा जरूर दे जाती है.
आरटीओ ऑफिसर ओम प्रकाश अग्रवाल (इमरान हाशमी) और उसका बेटा, सुपरस्टार विजय कुमार (अक्षय कुमार) के बहुत बड़े वाले फैन हैं. उनके शहर भोपाल में उनका यह सुपरस्टार शूटिंग के लिए पहुंचता है, तो उसकी ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत उसे ओम प्रकाश से मिलवाती है. यह ओम प्रकाश के लिए किसी सपने के पूरे होने जैसा होता है, लेकिन यह ओम प्रकाश का सबसे बुरा अनुभव बन जाता है, जिसके बाद आम आदमी यानि आरटीओ ऑफिसर ओम प्रकाश बनाम खास यानि सुपरस्टार विजय कुमार की जंग शुरू हो जाती है. विजय कुमार को अपनी फ़िल्म की शूटिंग के लिए ड्राइविंग लाइसेंस चाहिए और ओम प्रकाश ने तय कर लिया है कि वह किसी भी कीमत पर यह ड्राइविंग लाइसेंस बनने नहीं देगा. किसकी होगी जीत.. यही आगे की कहानी है.
जिन्होंने ओरिजिनल फ़िल्म देखी हैं. उन्हें यह फ़िल्म सेल्फी फ़िल्म कई लिहाज से कमजोर नजर आ सकती है. किरदारों को जिस तरह से इस फ़िल्म में दिखाया गया है. उसका ट्रीटमेंट इस फ़िल्म में काफी अलग है. फ़िल्म की कहानी सेकेंड हाफ में बेहद कमज़ोर हो गयी है. ओम प्रकाश का किरदार एक जबरा फैन से बदला लेने वाला पिता कैसे बन गया है. यह पहलू कहानी में उस इमोशन के साथ नहीं आ पाया है, जैसे उसकी जरूरत थी साथ ही क्लाइमेक्स में हृदय परिवर्तन अचानक से होना भी अखरता है. वो भी बिना रिकॉर्डिंग के सुने हुए. बेटे के साथ उनके इमोशनल बॉन्डिंग भी स्क्रीनप्ले में सही ढंग से नहीं आ पायी है. फ़िल्म की कहानी में नयापन या ट्विस्ट और टर्न की जबरदस्त कमी है. जरूरत से ज्यादा सिनेमेटीक लिबर्टी ली गयी है,लेकिन सबसे अच्छी बात फ़िल्म का ट्रीटमेंट है. जो आपको शुरुआत से अंत तक हंसाता रहता है. फ़िल्म में लगातार हल्के -फुल्के पलों को जोड़ा गया है. जिस वजह से कमजोर कहानी के बावजूद मामला बोझिल नहीं हो पाया है.
फ़िल्म मीडिया ट्रायल के सर्कस और बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड पर बखूबी तंज कसती है. गौरतलब है कि फ़िल्म में विजय कुमार के किरदार को ऐसे लिखा गया है. जैसे अक्षय कुमार की ही बात हो रही है, लेकिन मेकर्स एक जगह चूक गए.उन्होने फ़िल्म के ड्राइविंग लाइसेंस फॉर्म में विजय कुमार का जन्म साल 1980 दिखाया है और वह फ़िल्म के संवाद में किरदार तीस सालों का अभिनय का अनुभव बता रहा है, जो कि अक्षय कुमार का है. फ़िल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म की यूएसपी इसके संवाद हैं. गीत-संगीत में मामला कमज़ोर रह गया है, जबकि फ़िल्म से कई संगीतकारों कि टोली जुड़ी हुई है, लेकिन एक भी गीत यादगार नहीं बन पाया है. फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. वह कहानी और किरदारों को पूरा सपोर्ट करती है.एडिटिंग पर थोड़ा और काम किया जा सकता था.
सेल्फी रिव्यू
: अभिनय में अक्षय और इमरान हैं चमके
अभिनय की बात करें, तो अक्षय कुमार अपने ही अंदाज में नजर आए हैं.जो वह ऑफ स्क्रीन हैं. वह लोगों को हंसाने में कामयाब हुए हैं. उन्होंने इमोशनल सीन में भी अपनी छाप छोड़ी है. इमरान हाशमी एक बार फिर स्क्रीन पर कुछ अलग करते नज़र आए हैं. वे अपनी भूमिका में जमे हैं. उन्होंने संवाद में भोपाल के एक्सेन्ट को अच्छे से पकड़ने की कोशिश की है. फ़िल्म में अभिनेता दो हैं, तो अभिनेत्रियां भी दो ही होंगी. इस फ़िल्म में नुसरत और डायना को यह जिम्मेदारी मिली है, लेकिन फ़िल्म में उनके करने को कुछ खास नहीं मिला है.नगर सेविका की भूमिका में मेघना मलिक जरूर याद रह जाती हैं, तो अभिमन्यु जब -जब स्क्रीन पर दिखे हैं. वह हंसी बिखेर गए हैं. एक अरसे बाद महेश ठाकुर को परदे पर देखना अच्छा लगता है बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.
सेल्फी मूवी रिव्यू
: देखें या ना देखें
अगर आपने साउथ की ओरिजिनल फ़िल्म नहीं देखी है, तो यह फैमिली एंटरटेनर आपको पूरा मनोरंजन देगी.