Aligarh : जेरुशलम से अलीगढ़ ईसाई धर्म कैसे पहुंचा. इस पर अलीगढ़ के रहने वाले सीनियर एडवोकेट आसमंड चार्ल्स ने अपनी लिखी किताब ‘येरुशलम टू अलीगढ़’ में खुलासा किया है. ईसाई धर्म का हिंदुस्तान में आगमन और खासतौर से अलीगढ़ जैसे छोटे से जिले में ईसाइयत के प्रसार पर फोकस किया है. हालांकि ईसाइयों के इतिहास पर कम लिखा गया है. 88 पेज की इस किताब में उन्होंने ईसाई धर्म के इतिहास पर प्रकाश डाला है. वहीं सर सैयद अहमद खान के ब्रिटिश क्रिश्चियनिटी के संबंधों का खुलासा भी किया है.
एडवोकेट आसमंड चार्ल्स कहते हैं कि ज्यादातर लोगों को क्रिश्चियनिटी के बारे में नहीं मालूम और इसे विदेशी धर्म समझते हैं. ईसाई धर्म के लोग भी अपने इतिहास को नहीं जानते. उन्होंने बताया कि जीसस क्राइस्ट के शिष्य सेंट थॉमस 52 AD में सबसे पहले इंडिया आए थे. सेंट थॉमस साउथ इंडिया में पहले पहुंचकर ईसाई धर्म का प्रचार किया. इनके बाद ईसा मसीह के शिष्य बरथोलोमियो भारत आया और मालाबार कोस्ट से प्रचार शुरू किया. गोवा, मद्रास, केरल में चर्च बनाए गए. त्रिशूर में सबसे पुराना चर्च बना है. जो सेंट थॉमस के समय में बनाया गया था, फिर धीरे-धीरे कन्याकुमारी से जम्मू कश्मीर तक ईसाई धर्म फैला.
वहीं सर सैयद अहमद खान का क्राइस्ट चर्च से क्या रिलेशन था. इस पर बारीकी से अध्ययन किया और आसमंड चार्ल्स बताते हैं कि जब सर सैयद अहमद खान ने MAO कॉलेज की नींव रखी. तब उनके पास फंड की कमी थी. सर सैयद अहमद खान ने मुसलमानों के लिए बहुत काम किया. सर सैयद शिक्षा को आधुनिक स्तर पर ले जाना चाहते थे. उस समय ब्रिटिश हुकूमत थी .अलीगढ़ में क्राइस्ट चर्च 1835 में बना था. सर सैयद अहमद खान हर रविवार को क्राइस्ट चर्च जाते थे और यहां पूजा करने आने वाले ईसाइयों से चंदा इकट्ठा करते थे. क्राइस्ट चर्च का एएमयू के साथ करीबी रिश्ता बताया है.
सर सैयद अहमद खान ने जब कॉलेज को खोला तो उनके सामने अंग्रेजी शिक्षा का संकट था. वे एमएओ कॉलेज में अंग्रेजी शिक्षा दिलाना चाहते थे. सर सैयद अहमद खान ब्रिटेन गए और वहां के ईसाई प्रोफेसर और लेक्चरर को लेकर आये. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने तो जमीन दी, लेकिन शुरू की अंग्रेजी प्राइमरी एजुकेशन को ब्रिटिश ईसाइयों ने स्थापित किया, जिसमें हेनरी मार्टिन, थियोडोर मॉरिशन शामिल है. थियोडोर मॉरिशन के नाम से हॉस्टल भी बना है. जिसे सर सैयद अहमद खान ब्रिटेन से लेकर आए थे. क्राइस्ट चर्च में पढ़े-लिखे क्रिश्चियंस आते थे. जिनके संपर्क में सर सैयद अहमद खान रहते थे. एक समय एएमयू में कई ईसाई टीचर हुआ करते थे.
पास्टर विल्सन जब हिंदुस्तान में आए. तब उन्होंने लाहौर से लेकर कोलकाता तक बहुत से चर्च बनवाएं. जिसमें अलीगढ़ का क्राइस्ट चर्च भी शामिल है. 1835 के जमाने में फ्रेंच आर्मी के लोग चर्च में आते थे. वही एएमयू में सुलेमान हॉस्टल में फ्रेंच जनरल पैरान की कोठी हुआ करती थी. वही 1868 में पास्टर एस डब्ल्यू सैकल ने चर्च ऑफ द एसेंशन की बुनियाद रखी. उन्होंने बताया कि क्राइस्ट चर्च में इंग्लिश स्पीकिंग के लोग आते थे. जबकि चर्च ऑफ एसेंशन में हिंदी भाषी ईसाई लोग पहुंचते थे. अलीगढ़ में सबसे पुराना गिरजाघर क्राइस्ट चर्च है. इसके बाद घंटाघर पर चर्च ऑफ एसेंशन बना. इसके बाद बन्नादेवी क्षेत्र में मैथिडिस्ट चर्च बना. फिर मिशनरीज ने चर्च का निर्माण कराया. अलीगढ़ में क्रिश्चियनिटी का 300 साल पुराना इतिहास है. उसी समय तस्वीर महल पर ईसाइयों का कब्रिस्तान भी बनाया गया. जहां 1780 से अंग्रेजों की कब्र है. इसकी देखरेख चर्च आफ नॉर्थ इंडिया करता है, लेकिन आज बदहाल पड़ा है.
रिपोर्ट- आलोक, अलीगढ़