सरायकेला-खरसावां में दीवाली को लेकर बढ़ी चाक की रफ्तार, बाजार में उपलब्ध होंगे मिट्टी के दीये
प्रकाश का पर्व दीपावली को अब एक सप्ताह से भी कम समय बचा हुआ है. सरायकेला-खरसावां में प्रकाश का पर्व दीपावली की तैयारी जोरों पर है. दीपावली पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है मिट्टी के दीये व मूर्ति बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग भी शीघ्रता से अपना कार्य पूरा करने में जुट गए हैं.
शचिंद्र कुमार दाश
Saraikela Kharsvan: प्रकाश का पर्व दीपावली को अब एक सप्ताह से भी कम समय बचा हुआ है. सरायकेला-खरसावां में प्रकाश का पर्व दीपावली की तैयारी जोरों पर है. दीपावली पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है मिट्टी के दीये व मूर्ति बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग भी शीघ्रता से अपना कार्य पूरा करने में जुट गए हैं. कुम्हार समाज के लोगों में अधिक से अधिक दीये बनाकर बेचने की होड़ है. दीपावली को लेकर लोगों में उत्साह दिखने लगी है. दीपावली को लेकर खासकर कुम्हार समुदाय तैयारी में जुट गयी है. मिट्टी का दीया व कलश बनाने का काम जोरों पर हो रहा है. अक्तृबर माह में पहले व दूसरे सप्ताह रुक रुक कर हुई बारिश से कुम्हार समुदाय के लोगों को दीया बनाने के कार्य में एक तरह से ब्रेक लग गया था.
बारिश ने पहुंचाया नुकसान
बारिश के कारण कुम्हार समुदाय के लोगों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा था. अब आसमान से बादल छंटने व धूप खीलने के साथ ही मंद पड़े कुम्हारों के चाक की गति अब दीपावली को लेकर भी तेज हो गयी है. कुम्हार समुदाय के लोग पहले ही मिट्टी के दीये बना कर सुखाने में जुटे हुए है. मिट्टी से दीया बनाने के बाद उन्हें सुखा कर आग में तपाया जा रहा है. फिर इस पर रंग डाला जायेगा. इस काम में कुम्हार समुदाय के लोग जुटे हुए है. कुम्हार समुदाय के लोगों के लिये यह कमाई का एक अच्छा अवसर माना जाता है. क्षेत्र के कुम्हार मिट्टी का दीया तैयार करने में जुट गये है. मिट्टी के दीये के साथ साथ रंग-बिरंगी खिलौना भी बाजार में बिक्री हेतु उतारे गये है. 5 रुपये से लेकर 50 रुपये तक के मिट्टी के साधारण दीये तथा 20 से 50 रुपये तक के खिलौना दिये बाजार में उपलब्ध है. इसके अलावे दीपावली पर पूजा जाने वाले लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति 50 से लेकर दो सौ रुपये तक उपलब्ध है. साइज के अनुसार बाजार में दाम तय किया गया है.
क्या कहते हैं पेशे से जुड़े लोग
दीपावली पर ही कुम्हार समुदाय के लोगों को कुछ रोजगार मिल जाती है. इस माह के पहले व दूसरे सप्ताह हुई बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ. बारिश के कारण भट्टी का आग बुझ गया, जिससे आधे से अधिक दीये व मिट्टी के बर्तन खराब हो गये. मौसम साफ होने के साथ ही फिर से दीया बनाने का कार्य शुरु हो गया है.
विनोद प्रजापति, खेलारीसाही, खरसावां
आसमान से बादल छंटने के साथ ही दीपावली को लेकर मिट्टी के दीये, कलश व खिलौना बनाने का कार्य जोरों पर चल रही है. दीपावली के समय में कुम्हार समुदाय को कुछ रोजगार की उम्मीद रहती है. इस बार दीपावली में कुछ रोजगार होने की उम्मीद है.
कामेश्वर प्रजापति, खरसावां
पहले के मुकाबले चाइनिज सामानों का उपयोग कम होने के कारण पिछले एक-दो साल से कुम्हारों द्वारा निर्मित मिट्टी के दीया, कलश समेत अन्य सामानों की मांग बढ़ी है. त्योहार के इस मौसम में लोगों को रुझान भी मिट्टी के सामानों की दिख रही है. इस बार दीपावली में कुछ रोजगार होने की उम्मीद है.
धनेश्वर कुम्हार, खरसावां
लोगों को दीपावली जैसे त्योहारों में पारंपरिक मिट्टी के दीयों का उपयोग करना चाहिये. इससे हमारी संस्कृति व परंपरा भी बची रहेगी. दीपावली को लेकर मिट्टी के दीये बनाने का कार्य चल रहा है. बाजार में पांच रुपया से लेकर 50 रुपये तक के दिये उपलब्ध है.
गोपाल प्रजापति, खरसावां
तेज हुई कुम्हारों के चाक की गति, पर नहीं बदले हालात
दीपावली का त्योहार नजदिक पहुंचते ही कुम्हार का चाक तो तेजी से सरपट घूम रहा है, लेकिन उनकी जिंदगी की गाड़ी गतिहीन होकर रह गई है. आरंभिक मानव जीवन को गति देने वाला यह चाक भविष्य में इतना शिथिल या मंद पड जाएगा,तब इस तथ्य की किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. कालांतर में मानव जीवन की शुरुआत में इस चाक के अनूठे योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है. आधुनिकता की चकाचौंध ने भारतीय पुश्तैनी धंधों को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है. भारतीय आर्थिक नीति में इन्हें घरेलू धंधे का दरजा मिलने के बावजूद हाशिये पर धकेल दिये गये. सरकारी योजनाओं की ‘पटकथा ‘में सबकुछ उलझ कर रह गया. कोई भी सरकारी सहायता इन्हें नहीं मिली कि इनसे जुडे लोग अपना जीवन संवार सके. लोगों का अपने पुश्तैनी धंधों से मोहभंग होता जा रहा है. इन सामाजिक सरोकारों को समझने का वक्त हाथ से निकल जाए, जरुरत है कि मिट्टी की महक फैलाने वाले इन कुम्हारों को प्रोत्साहित करने की.
बाजार में पारंपरिक रंगों की हो रही है बिक्री
सरायकेला-खरसावां के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली, सोहराय, बांदना, काली पूजा की तैयारी जोरों पर चल रही है. इन त्योहारों में खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरिक मिट्टी के रंगों से घरों की रंगाई करने की परंपरा है. घरों की साफ-सफाई के साथ साथ रंगाई-पुताई का कार्य किया जा रहा है. बाजार में पारंपरिक रंगों की बडे पैमाने पर बिक्री हो रही है. आदिवासी समुदाय के लोग घरों में पारंपरिक मिट्टी के रंगों का प्रयोग करते है. संथाल समुदाय के लोग अपने घरों को सोहराय पेंटिंग के जरीये रंग-रौंगन कर रहे है. लोग हाट बाजारों से रंगों की खरीददारी कर घरों को रंग-रौंगन करने में जुटे हुए है.