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Shabari Jayanti 2022: कब है शबरी जयंती, जानिए क्या है इस दिन का महत्व और पूजा विधि

Shabari Jayanti 2022: शबरी जयंती का महत्व शबरी जयंती भगवान राम के प्रति आस्था का पर्व है. इस दिन भगवान राम के साथ शबरी की भी पूजा अर्चना की जाती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2022 9:16 AM

Shabari Jayanti 2022: हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है.इस वर्ष फाल्गुन माह में 23 फरवरी को शबरी जयंती है.इस दिन भगवान श्रीराम समेत माता शबरी की पूजा-उपासना की जाती है. कहते हैं कि इसी दिन माता शबरी ने अपने आश्रम में भगवान श्रीराम के स्वागत सत्कार में उन्हें अपने जूठे बेर खिलाए थे. आइए जानते हैं कौन थीं माता शबरी और क्या है इस दिन का महत्व व पूजा की विधि.

शबरी जयंती का महत्व शबरी जयंती भगवान राम के प्रति आस्था का पर्व है. इस दिन भगवान राम के साथ शबरी की भी पूजा अर्चना की जाती है. शबरी को भगवान राम ने मोक्ष प्रदान किया था. यह पर्व आस्था, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही भगवान राम ने शबरी को दर्शन दिए थे और बेर खाए थे.

Shabari Jayanti 2022: पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम भगवान श्रीराम और माता शबरी को स्मरण कर नमस्कार करें.इसके बाद घर की साफ-सफाई कर दैनिक कार्यों से निवृत हो जाए.अब गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर नवीन वस्त्र धारण करें.इसके पश्चात, आमचन कर अपने आप को पवित्र कर व्रत संकल्प लेकर भगवान श्रीराम और माता शबरी की पूजा, पूजा फल, फूल, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, धूप, दीप, अगरबत्ती आदि से करें.धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि शबरी माता और भगवान श्रीराम को प्रसाद में बेर अवश्य भेंट करें.तत्पश्चात आरती और अपने परिवार के कुशल मंगल की कामना करें.दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करें.अगले दिन आप नित्य दिन की भांति पूजा-पाठ के पश्चात व्रत खोलें.

Shabari Jayanti 2022: कौन थी शबरी माता

माता शबरी का नाम श्रमणा था. श्रमणा का जन्म शबरी परिवार में हुआ था और बाल्यकाल से ही श्रमणा भगवान श्री राम की भक्त थीं. ऐसी किदवंती है कि जब शबरी जी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता और भीलों के राजा ने शबरी का विवाह भील कुमार से तय कर दिया. उस समय विवाह के समय जानवरों की बलि देने की प्रथा दी, जिसका माता शबरी ने पुरजोर विरोध किया. जानवरों की बलि प्रथा को खत्म करने के लिए उन्होंने शादी ही नहीं की. इसके अलावा एक कथा और है, जिसके मुताबिक, पति के अत्याचार से कुंठित होकर श्रमणा घर त्यागकर वन चली जाती हैं. वन में श्रमणा ने भगवान श्री राम का विधि-विधान से पूजन, जप और तप किया. कालांतर में वनवास के दौरान भगवान श्री राम और माता शबरी की मुलाकात हुई.

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