नवरात्रि में कन्या पूजन करना बहुत शुभ माना गया है. विशेष रूप से देवी उपासना के इन पावन दिनों में किसी भी दिन कन्या पूजन कर पुण्य प्राप्त किया जा सकता है परंतु अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करना और भी फलदाई माना गया है.
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि की पूजा बिना कन्या पूजन की अधूरी मानी जाती है. मां दुर्गा की पूजा में हवन, तप, दान से उतना प्रसन्न नहीं होती हैं जितना कन्या पूजन कराने से होती हैं. कन्या पूजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करती हैं.
अष्टमी कन्या पूजा : 13 अक्टूबर दिन बुधवार को पूजा के मुहूर्त : अमृत काल- 03:23 AM से 04:56 AM तक और ब्रह्म मुहूर्त– 04:48 AM से 05:36 AM तक है.
दिन का चौघड़िया मुहूर्त :
लाभ – 06:26 AM से 07:53 PM तक।
अमृत – 07:53 AM से 09:20 PM तक।
शुभ – 10:46 AM से 12:13 PM तक।
लाभ – 16:32 AM से 17:59 PM तक।
किस रूप की पूजा से क्या मिलता है फल
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि दुर्गा पूजन से पहले भी कन्या का पूजन करें , तत्पश्चात ही माँ दुर्गा का पूजन आरम्भ करें। नवरात्रि के नौ दिनों में कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कन्याओं की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से अधिक न हो। दो वर्ष की कन्या अर्थात कुमारी रूप के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है. भगवती त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है.
कन्या पूजन में इन बातों का रखें ध्यान
कन्या पूजन में 2 से 10 साल की कन्याओं को आमंत्रित करें. पूजा से पहले इस बात का ध्यान का रखें कि घर में साफ- सफाई होनी चाहिए. शास्त्रों में दो साल की कन्या को पूजने से दुख और दरिद्रता दूर होती है. 3 साल की कन्या त्रिमूर्ती के रूप में मानी जाती हैं. त्रिमूर्ति कन्या की पूजन करने से घर में धन- धान्य आती है. चार साल की कन्या को कल्याणी माना जाता है. वहीं पांच साल की कन्या रोहिणी कहलाती है. इनकी पूजा करने से रोग- दुख दूर होता है. छह साल की कन्या को कालिका रूप कहा जाता है. कालिका रूप से विद्या और विजय की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या को चंडिका. जबकि आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है. नौ वर्ष की कन्या देवी दुर्गा कहलाती है और दस वर्ष की कन्या सुभद्र कहलाती है.
Posted By: Shaurya Punj